Climate Change : पहाड़ों पर जलवायु परिवर्तन का असर साफ-साफ दिखने लगा है। नवंबर का महीना चल रहा है। मगर, ठंड का अहसास तक नहीं है। जबकि, इस महीने में गुलाबी ठंड पड़ने लगती थी। मौसम की इस बेईमानी का पता लगाया है आर्य भट्ट शोध एंव प्रेक्षण विज्ञान संस्थान (एरीज) ने। मौसम में सतत बदलाव पर नजर रखने वाली इस संस्था ने पिछले 10 वर्षों के दौरान जो अध्ययन किया है उसके परिणाम चौंकाने वाले हैं। इसके मुताबिक, पहाड़ों पर बढ़ा हुआ कार्बन मौसम में आए बदलाव का बड़ा कारण है।
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शरद ऋतु में भी सूर्य देव अपना प्रकोप दिखा रहे हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में खुशनुमा मौसम के बजाय हर रोज धुंध छा रही है। मौसम के इस बेईमान मिजाज के पीछे वैज्ञानिकों ने जो वजह तलाशी, वह है पहाड़ों पर बढ़ा हुआ कार्बन का स्तर। बढ़ते प्रदूषण के साथ ही इसमें लगातार इजाफा हो रहा है जो पर्यावरण के लिहाज से कतई सही नहीं है। पहाड़ों पर इस बार गर्मी ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। गर्मियों में नैनीताल में जहां तापमान 28 डिग्री के आसपास रहता था, अबकी 33- 34 डिग्री पहुंच गया था। नवंबर में गुलाबी ठंड पड़नी चाहिए थी बल्कि गर्मी जाने का नाम ही नहीं ले रही है। वैज्ञानिकों की मानें तो इस साल जाड़ों में भारी सर्दी की संभावना है। यानी मौसम अपने निर्धारित चक्र से हटकर अप्रत्याशित तेवर दिखा रहा है। इसकी वजह एक्सट्रीम रीजनल वेदर कंडीशन हैं जिनका असर उत्तराखंड पर व्यापक रूप से पड़ रहा है और भविष्य में भी अप्रत्याशित मौसम की संभावना है।
…और खराब हो सकती है स्थिति
एरीज के निदेशक व मौसम विज्ञानी डॉ. मनीष नाजा ने मीडिया से बातचीत में बताया कि एरीज में सीआरडी तकनीक के माध्यम से चारों दिशाओं में 100 किमी हवाई दूरी तक के अध्ययन करने पर बहुत बड़ा क्षेत्र कवर हो जाता है। ग्लोबल वार्मिंग के तहत अब रीजनल क्लाइमेट (जलवायु) को प्रभावित करने का द्वितीय चरण शुरू हो चुका है जिसका असर उत्तराखंड में देखने को मिल रहा है। बताया कि क्षेत्र में लगातार बढ़ रही वाहनों की संख्या, औद्योगिकीकरण, कार्बन उत्सर्जन में बढ़ोतरी आदि की वजह से यह रीजनल वार्मिंग के हालात बने हैं। इन्हें इन कारकों पर नियंत्रण करके ही सुधार जा अन्यथा स्थिति और सकती है। इनपर नियंत्रण से ही सवारी किया जा सकता है अन्यथा स्थिति और खराब हो सकती है।
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आर्य भट्ट शोध एवं प्रेक्षण विज्ञान संस्थान (एरीज) क्षेत्र में मौसम के बदलाव पर सतत नजर रखने के साथ ही इसका विश्लेषण कर रहा है। इसके परिणाम चौंकाने वाले हैं। सीआरडी, कैविटी रिंग डाउन स्पेक्ट्रोस्कोपी के माध्यम से 100 किलोमीटर की हवाई दूरी तक वायुमंडल के अध्ययन से पता चला है कि बीते दस वर्षों में पहाड़ों के वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा बहुत बढ़गई है। इसमें कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा इस अवधि में 300 पीपीएम से 35 फीसदी बढ़कर 410 पीपीएम तक पहुंच गई है जो तापमान में बढ़ोतरी के साथ मौसम में अप्रत्याशित बदलाव की भी जिम्मेदार है।
कार्बन की मात्रा रिकॉर्ड स्तर पर
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने अक्तूबर 2024 को अपने एक नए अध्ययन में बताया है कि वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा अपने रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है। इसके मद्देनजर, यूएन एजेंसी ने विश्व के बड़े प्रदूषकों से आग्रह किया है कि जलवायु परिवर्तन की रफ्तार को थामने के लिए कथनी की बजाय करनी पर ध्यान देना होगा। विश्व मौसम विज्ञान संगठन के मुताबिक, कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) जिस रफ्तार से वातावरण में जमा हो रही है, वैसा मानव इतिहास में पहले कभी नहीं देखा गया। कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड, जलवायु परिवर्तन के लिए ज़िम्मेदार तीन मुख्य ग्रीनहाउस गैस हैं। उन्होंने कहा कि वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड लम्बे समय तक बनी रह सकती हैं और इसलिए तापमान में वृद्धि आगामी कई वर्षों तक जारी रहने की सम्भावना है।