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    Home»कवर स्टोरी»चार्लेविन… कैसे बन गया ‘लबासना’
    कवर स्टोरी

    चार्लेविन… कैसे बन गया ‘लबासना’

    साल था 1958...। वसंत का मौसम था। एक तरफ मसूरी के प्रतिष्ठित चार्लेविल होटल में लोग छुट्टियां मना रहे थे तो दूसरी तरफ, देश की लोकसभा में इस होटल का भाग्य बदलने पर विचार किया जा रहा था। तत्कालीन गृह मंत्री गोविंद बल्लभ पंत एक ऐतिहासिक फैसला लेने पर विचार कर रहे थे। उत्तराखंड को जानने की इस कड़ी में कहानी लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी यानी लबासना और उससे जुड़ी दिलचस्प कहानी की। कैसे मसूरी का एक फेमस होटल देश का ऐसा केंद्र बन गया जहां प्रशासनिक सेवा के अधिकारी तैनात होते हैं। सभी आईएएस-आईपीएस को यहां क्यों भेजा जाता है और यहां से जाने के बाद ये भविष्य के अधिकारी क्या-क्या करते हैं?
    teerandajBy teerandajJune 8, 2025Updated:June 10, 2025No Comments
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    • अतुल्य उत्तराखंड के लिए विकास जोशी

    15 अप्रैल, 1958 को तत्कालीन गृहमंत्री गोविंद वल्लभ पंत ने लोकसभा में एक प्रस्ताव रखा। यह प्रस्ताव था नेशनल एकेडमी ऑफ ट्रेनिंग की स्थापना का। प्रस्ताव रखते समय उन्होंने कहा, हम नेशनल एकेडमी ऑफ ट्रेनिंग की स्थापना करने का प्रस्ताव रख रहे हैं। सिविल सेवा में शामिल होने वाले अधिकारी… फिर चाहे वो प्रशासनिक अधिकारी बनें, अकाउंटेंट बनें या फिर राजस्व अधिकारी… उन्हें पूरी क्षमता के साथ काम करने और जनता के साथ मजबूत संबंध बनाने की ट्रेनिंग देने के लिए ये पहल की जा रही है। लोकसभा में पंत के इस प्रस्ताव को रखने के बाद तुरंत काम शुरू हो गया। गृह मंत्रालय ने दिल्ली स्थित आईएएस ट्रेनिंग स्कूल और शिमला स्थित आईएएस स्टाफ कॉलेज को मिलाकर राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी बनाने का फैसला लिया। इस नई बॉडी का ठिकाना बना मसूरी का वही चार्लेविल होटल, जहां कभी ब्रिटेन की महारानी और प्रतिष्ठित उपन्यासकार, पत्रकार रुडयार्ड किपलिंग भी ठहरे थे। ये वही जगह है जिसे आज आप लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी यानी लबासना के नाम से जानते हैं।

    गोविंद बल्लभ पंत का प्रस्ताव था कि भारत की सिविल सर्विसेस यानी आईएएस, आईपीएस और आईएफएस आदि सेवाओं के लिए चयनित उम्मीदवारों को एक ही जगह ट्रेनिंग दी जाएगी। इस प्रस्ताव को हकीकत में बदलने के लिए दिल्ली में स्थित आईएएस प्रशिक्षण स्कूल और शिमला में स्थित आईएएस स्टॉफ कॉलेज का विलय कर दिया गया। तय किया गया कि प्रशासनिक अकादमी मसूरी में स्थापित की जाएगी। खुद गृह मंत्री पंत ने मसूरी की पैरवी की थी। अब सवाल ये था कि अकादमी की स्थापना कहां पर की जाए? तब इसके लिए मसूरी के सबसे पुराने होटल में से एक चार्लेविल और हैप्पी वैली को चुना गया।

    चार्लेविल की कहानी


    चार्लेविल होटल के इतिहास की शुरुआत तब होती है, जब ये होटल नहीं था। चार्लेविल की पहली बिल्डिंग 1842 में बनाई गई थी। तब ये जमीन श्री गुरु राम राय बहादुर के महंतों की थी। 1854 में जनरल विकिंसन ने महंतों से ये जमीन खरीदी और यहां पर दूसरी इमारतों का निर्माण किया। इन इमारतों के एक हिस्से में लड़कियों के लिए स्कूल चलाया जाता था। हालांकि जनरल विकिंस ने ज्यादा समय तक इस प्रॉपर्टी को अपने पास नहीं रखा और उन्होंने 1861 में इसे बेच दिया। जनरल विकिंसन से इस प्रॉपर्टी को मसूरी बैंक के मैनेजर मिस्टर होब्सन ने खरीदा था। 1877 में होब्सन ने यहां पर एक आलीशान होटल बनाया और इस होटल का नाम अपने दो बेटों- चार्ली और विली के
    नाम से चार्लीविल रखा। स्थानीय लोग इस होटल को चार्ले-बिले नाम से पुकारा करते थे। इसलिए यही नाम प्रचलन में आ गया। होब्सन की मृत्यु होने के बाद 1884 में मसूरी बैंक ने इस प्रॉपर्टी को मेसर्स टी फिच एंड सी स्टोवेल को लीज पर दे दिया था।

    1887 में वुत्जलर नाम के शख्स ने इसे लिया। चार्लेविल होटल जब-जब नए मालिकों के पास गया तब-तब इसका विस्तार हुआ और 20वीं शताब्दी आते-आते इसमें 112 कमरे बन चुके थे। ये होटल मुंबई के बाद पूरे देश में सबसे बड़ा होटल बन चुका था। यहां पर 400 नौकरों के लिए आउट-ऑफिस एकोमेडेशन था और यहां के अस्तबल में 50 से ज्यादा घोड़े थे। ये कुल 25 एकड़ में फैला था। ये होटल कितना प्रतिष्ठित था, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसके नाम से यहां पर पोस्ट ऑफिस भी था। 1904 में मसूरी के शराब व्यापारी वीए मैकिनन ने यहां नजदीक प्रॉपर्टी को भी खरीद लिया और इसमें टेनिस कोर्ट, जिमखाना समेत दूसरी कई सुविधाएं तैयार कर लीं। देश की आजादी के बाद भारत सरकार ने इसका अधिग्रहण कर लिया। 1959 में जब सवाल उठा कि राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी के लिए मसूरी की किस जगह का चयन किया जाए तो चार्लेविल को सबसे मुफीद पाया गया। इसका एक कारण ये भी था कि यहां पर एक अकादमी के लिए काफी जगह थी। शुरुआत में जब चार्लेविल को प्रशासनिक अकादमी के लिए तैयार किया जा रहा था तो यहां पर कई तरह की दिक्कतें आईं। हालांकि धीरे-धीरे इन सबसे पार पा लिया गया। आज लबासना का जो स्वरूप आपको दिखाई देता है, वो कमोबेश वैसा ही है जैसा 1959 में था।

    1 सितंबर, 1959 को चार्लेविल होटल का नाम और पहचान बदल चुकी थी और अब ये राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी बन चुका था। 1959 में सबसे पहले यहां पर डायरेक्टर्स ऑफिस, लैंग्वेज ब्लॉक जिसका नाम बाद में चार्लेविल कर दिया गया। सरदार पटेल हॉल और हैप्पी वैली गेस्ट हाउस बनाया गया। 1960 में यहां आईएएस, आईएफएस और अन्य केंद्रीय सेवाओं के लिए एक कॉमन फाइनेंशियल सर्विस कमीशन की शुरुआत की गई। उस वक्त ये अकादमी नेशनल अकादमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन के नाम से जानी जाती थी। जिस साल मसूरी में इस अकादमी की शुरुआत की गई थी, उसी साल 13 जुलाई को दिल्ली स्थित आईएएस ट्रेनिंग स्कूल में 115 अधिकारियों के साथ एक कंबाइंड कोर्स की शुरुआत की गई। ये वही कोर्स है जिसे आज फाउंडेशन कोर्स के नाम से जाना जाता है और तभी से अकादमी में पढ़ाया जा रहा है।

    1973 में नाम पड़ा लबासना
    1972 में इस संस्थान का नाम नेशनल एकेडमी ऑफ़ एडमिनिस्ट्रेशन से बदलकर लाल बहादुर शास्त्री एकेडमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन कर दिया गया। 1973 में इस नाम के साथ नेशनल जोड़ दिया गया और ये बन गया लबासना। यानी लाल बहादुर शास्त्री नेशनल एकेडमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन लबासना। अपनी स्थापना यानी 1960 से लेकर 1970 तक गृह मत्रालय के अधीन था। उसके बाद 1970 से 1977 तक अकादमी ने कैबिनेट सचिवालय के अधीन काम किया लेकिन 1977 से 1985 तक अकादमी वापस से गृह मंत्रालय के अधीन काम करने लगी थी और फिर 1985 से अकादमी ने भारत सरकार के कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय के अधीन काम करना शुरू कर दिया। इस बीच, लबासना के सामने दो संकट भी खड़े हुए। एक तो 1984 में हुआ, जब अचानक इसकी मेन बिल्डिंग में आग लग गई जिसमें अधिकारी मेस, लाइब्रेरी, वीआईपी गेस्ट हाउस, निदेशक आवास आदि प्रभावित हुए थे।

    फिर 1991 में आए भूकंप में भी इसे नुकसान झेलना पड़ा। इसमें अकादमी का महिला ब्लॉक और जीबी पंत ब्लॉक को भारी नुकसान हुआ और यही वो दो स्थान हैं जहां पर बाद में ध्रुवशिला और कालिंदी गेस्ट हाउस का निर्माण किया गया। आज एकेडमी के पास विशालकाय कैंपस है। इसमें आधुनिक सुविधाएं और तकनीक से लैस इमारतें हैं। कर्मशिला, ध्रुवशिला, ज्ञानशिला अब पुराने जीबी पंत ब्लॉक और एएन झा ब्लॉक की जगह बनाए गए हैं। एएन झा मसूरी स्थित एकेडमी के पहले डायरेक्टर थे और जहां पहले लेडीज ब्लॉक था, वहां पर अब कालिंदी गेस्ट हाउस है। इसके अलावा यहां पर 1975 से 1978 के बीच चार्लेविल कैंपस में गंगा, कावेरी और नर्मदा हॉस्टेल भी बनाए गए। 2012 में यहां महानदी एग्जिक्यूटिव हॉस्टल भी जोड़ा गया। ये होस्टल मिड-करियर ट्रेनिंग, सिल्वर जुबिली और री-यूनियन प्रोग्राम के लिए बनाया गया। 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए हॉस्टल का शिलान्यास किया था। यहां पर घोड़ों का अस्तबल भी है, जो 1959 से ही यहां पर है।

    ड्रेस कोड सही नहीं तो नो एंट्री
    ऑफिसर्स मेस सुनकर आप सोच रहे होंगे जैसी मेस सब जगह होती है, वैसी ही मेस अधिकारियों की भी होगी लेकिन लबासना में ऐसा नहीं है। ऑफिसर्स मेस अपने आप में एक संस्थान है। जब आप यहां पर होते हो तो आपका ड्रेस कोड प्रॉपर होना चाहिए। आप किसी से यहां पर ऊंची आवाज में बात नहीं कर सकते। जब आप लबासना में जाते हैं तो इंट्रोडक्टरी सेशन में ये बात बता दी जाती है। कोई भी अधिकारी मेस में प्रॉपर ड्रेस कोड के बिना प्रवेश नहीं कर सकता और अगर किसी ने ऐसा किया तो उस पर फाइन लगाया जाता है। लबासना नियमों के उल्लंघन करने वालों पर काफी सख्त है।

    कैसे होती है लबासना में ट्रेनिंग?
    सिविल सर्विसेज के लिए चुने जाने वाले अधिकारियों को लबासना आना होता है। यहां पर कैंडिडेट्स को बेसिक एडमिनिस्ट्रेटिव स्किल्स सिखाई जाती हैं। यहां कैंडिडेट्स की फिजिकल फिटनेस से लेकर मेंटल हेल्थ को मजबूत करने पर ध्यान दिया जाता है। ट्रेनिंग के दौरान हिमालय में ट्रैकिंग कराई जाती है और हर ट्रेनी को इसमें शामिल होना होता है। इसके अलावा रूरल डेवलपमेंट, एग्रीकल्चर और इंडस्ट्री डेवलपमेंट की ट्रेनिंग होती है।… ताकि ऑफिसर रैंक मिलने से पहले यहां सभी को हर क्षेत्र में सक्षम बनाया जा सके। यहां 2 साल की ट्रेनिंग होती है। जिसकी शुरुआत 15 हफ्ते के फाउंडेशन कोर्स से होती है। फाउंडेशन कोर्स में प्रशासन से लेकर समाज, देश की राजनीति, अर्थव्यवस्था आदि की मूलभूत जानकारी दी जाती है और साथ ही साथ सिविल सर्विसेज में आने वाली चुनौतियों के बारे में भी बताया जाता है। फाउंडेशन कोर्स में पर्सनैलिटी डेवलपमेंट की ट्रेनिंग भी दी जाती है। फाउंडेशन कोर्स पूरा होने के बाद आईएएस ट्रेनी लबासना में ही रहते हैं जबकि आईपीएस ट्रेनी अफसरों को अगले पड़ाव के लिए हैदराबाद में स्थित सरदार वल्लभभाई पटेल नेशनल पुलिस एकेडमी भेज दिया जाता है। इसे आईपीएस ऑफिसर ट्रेनी का प्रीमियम संस्थान माना जाता है। यहां उन्हें 11 महीनों की ट्रेनिंग दी जाती है। पुलिस एकेडमी में ट्रेनिंग पीरियड खत्म होने के बाद इन ट्रेनी अफसरों को ड्यूटी निभाने के लिए अलॉट किए गए काडर में भेज दिया जाता है। इन्हें 6 महीने तक अपने काडर के किसी जिले में ट्रेनिंग करनी होती है। इन्होंने अभी तक लबासना और एसवीपीएनपीए में जो भी सीखा-समझा होता है, उसे अब प्रैक्टिकली करके दिखाना होता है| ट्रेनिंग पूरी होने के बाद उन्हें औपचारिक रूप से आईपीएस अधिकारी के रूप में नियुक्त किया जाता है।
    बात करें इंडियन फॉरेन सर्विसेज की तो लबासना से फाउंडेशन कोर्स पूरा करने के बाद आईएफएस ट्रेनी को अगले इंडक्शन ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए सुषमा स्वराज इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेन सर्विस नई दिल्ली भेजा जाता है। यहां आईएफएस ऑफिसर ट्रेनी को राजनयिक की जिम्मेदारियों और चुनौतियों का सामना करने के लिए ट्रेनिंग दी जाती है। इंडक्शन ट्रेनिंग के बाद आईएफएस ऑफिसर ट्रेनी को 2 महीने के लिए विदेश मंत्रालय के डिवीजन में नियुक्त किया जाता है। ताकि वहां कैसे काम किया जाता है, ये वो सीख सकें। इसके बाद आईएफए ऑफिसर ट्रेनी को कोई एक विदेशी भाषा सिखाई जाती है। दूसरी तरफ, फाउंडेशन ट्रेनिंग खत्म होने के बाद आईएएस ट्रेनी अफसरों की ट्रैनिंग लबसना में ही होती है… और फेस-1 ट्रेनिंग की शुरुआत ‘भारत दर्शन’ से होती है। इसमें ट्रेनी आईएएस अफसरों को अलग-अलग ग्रुप में बांटकर भारत दर्शन यानी देश की अलग-अलग जगहों की यात्रा कराई जाती है। ये इसलिए किया जाता है ताकि ये ट्रेनी देश की संस्कृति, सभ्यता और विरासत को अच्छे से जानें। इस दौरान इनकी मुलाकात देश के तमाम बड़ी शख्सियतों से भी होती है जैसे राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री आदि।

    इसके बाद उन्हें थोड़े-थोड़े समय के लिए अलग-अलग कार्यालयों में अटैच कर दिया जाता है, ताकि वहां कैसे काम किया जाता है इस चीज को वो गहराई से समझ सकें। इसके अलावा उन्हें लोकसभा सचिवालय में भी ट्रेनिंग दी जाती है, जो भारत दर्शन का ही हिस्सा होता है| इसके बाद ये वापस लबासना लौटते हैं और यहां पर 4 महीने की एकेडमिक ट्रेनिंग शुरू हो जाती है। एकेडमिक ट्रेनिंग के बाद सभी को एक साल के लिए डिस्ट्रिक्ट ट्रेनिंग पर भेजा जाता है। जहां वो एक साल रहते हैं। इसके साथ फेज 1 की ट्रेनिंग खत्म हो जाती है जिसके बाद सभी आईएएस ट्रेनी लबसना वापस लौटते हैं और उनकी फेज 2 की ट्रेनिंग शुरू होती है। इसमें उन्हें अपनी डिस्ट्रिक्ट ट्रेनिंग के अनुभव और चुनौतियों को साझा करना होता है। इस फेज में स्पेशल सेशन भी आयोजित किए जाते हैं जिसमें अलग-अलग विषयों के विशेषज्ञ उन्हें ट्रेनिंग देते हैं और इसी के साथ खत्म होती है 2 साल की पूरी ट्रेनिंग। ट्रेनी आईएएस आखिरकार स्थायी आईएएस अफसर बन जाते हैं और उन्हें संबंधित कैडर को सौंप दिया जाता है। लबासना में 2 साल की ट्रेनिंग के बाद सभी आईएएस अधिकारियों को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से एमए की डिग्री मिलती है। और इस तरह लबासना वर्षों से देश को बेहतर प्रशासनिक अधिकारी देता आ रहा है। लबासना केवल भारत के प्रशासनिक अधिकारियों को ही नहीं, बल्कि पड़ोसी देशों जैसे बांग्लादेश, भूटान, मालदीव और म्यांमार के चुनिंदा सिविल सर्वेंट्स को भी ट्रेनिंग देता है। इन अंतरराष्ट्रीय अधिकारियों को भारतीय प्रशिक्षुओं के साथ मिलाकर पहले तीन महीनों के फाउंडेशन कोर्स में शामिल किया जाता है। सभी एक साथ रहते हैं और अपने-अपने अपने देश के विचारों को एक दूसरे के साथ साझा करते हैं। आज भी लबासना देश को आईएएस-आईपीएस देने के काम में जुटा हुआ है।

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