सहयोगी व विपक्षी दलों के दबाव में आकर केंद्र सरकार ने सीधी भर्ती (Lateral Entry) के सभी पदों पर आरक्षण लागू कर दिया है। इसी के साथ यूपीएससी ने केंद्र सरकार के आग्रह पर 45 पदों पर सीधी भर्ती का विज्ञापन निरस्त कर दिया है। केंद्रीय कार्मिक राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने आयोग अध्यक्ष प्रीति सूदन को पत्र लिखकर विज्ञापन रद्द करने का आग्रह किया था।
विपक्ष के साथ ही उसके सहयोगी दल भी लेटरल भर्ती का विरोध कर रहे थे। हालांकि, प्रशासन में अनुभवी लोगों की सुवाएं लिया जाना कोई नई-अनोखी बात नहीं है। इसका सिलसिला प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के समय ही शुरू हो गया था। बाद की सरकारों ने भी इस सिलसिले का जारी रखा। अनेक ऐसे उच्च पदों पर विशेषज्ञों को लाया गया जिन्हें आइएएस आइएफएस आदि संभालते थे। मनमोहन सिंह मोंटेक सिंह अहलूवालिया आदि लेटरल एंट्री के जरिये ही उच्च पदों पर आए।
कहा जा रहा है कि अगामी चुनावों व सहयोगी दलों के लेटरल एंट्री के खिलाफ आ जाने से सरकार दबाव में आ गई। चंद्रबाबू नायडू ने तो लेटरल एंट्री के जरिये अनुभवी लोगों की भर्ती की पहल का समर्थन किया, लेकिन चिराग पासवान खुलकर विरोध में आ गए। एक अन्य प्रमुख सहयोगी दल जदयू के नेताओं ने भी लेटरल एंट्री का विरोध कर दिया।
इसी तरह अनेक राजदूत भी गैर-आइएफएस नियुक्त किए गए। प्रशासन के साथ शासन में भी अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ लोगों की सेवाएं ली गईं। आधार की पहल को अंजाम देने के लिए नंदन नीलकणी को लाया गया था। विपक्षी नेता और विशेष रूप से राहुल गांधी इस सबसे अनजान नहीं हो सकते, लेकिन वह नकारात्मक और विभाजनकारी राजनीति का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। यह उनकी मौकापरस्ती ही है कि एक समय वह खुद लेटरल एंट्री के जरिये प्रशासन में पूर्व सैन्य अधिकारियों की भर्ती का वादा कर रहे थे, लेकिन अब उसके खिलाफ खड़े हो गए और वह भी तब, जब यह कहीं नहीं कहा गया था कि आरक्षित तबकों के लोग लेटरल एंट्री का हिस्सा नहीं बन सकते।
कांग्रेस के शशि थरूर ने लेटरल एंट्री का किया समर्थन
पार्टी लाइन से विपरीत कांग्रेस के सांसद शशि शरूर ने लेटरल एंट्री का समर्थन किया। उन्होंने कहा-सरकार को अल्पावधि कुछ पदों पर विशेषज्ञों की जरूरत पड़ती है। इसलिए यह देश के प्रशासनिक ढांचे के लिए जरूरी है।
आइए जानते हैं, क्या है लेटरल एंट्री
वर्ष 2005 में दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने सिफारिश की थी कि कुछ सरकारी दायित्वों के लिए विशेषज्ञ ज्ञान की जरूरत होती है, जो पारंपरिक लोक सेवा आयोग में उपलब्ध नहीं होता। इसलिए बाहर से विशेषज्ञों की सीधी नियुक्ति की जाए। इस व्यवस्था में आरक्षण का विधान नहीं है। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने जब यह मुद्दा उठाया तो भाजपा के केंद्रीय मंत्री अश्विन वैष्णव मैदान में आए। उन्होंने कहा पलटवार करते हुए कहा कि 1976 में मनमोहन सिंह की वित्त सचिव पद पर नियुक्ति किस व्यवस्था के तहत हुई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आर्थिक विशेषज्ञ के रूप में मनमोहन सिंह को सीधे वित्त सचिव बनाया था। जो बाद में वित्त मंत्री और प्रधानमंत्री भी बने। इसके अलावा आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन, सैम पित्रोदा, विमल जालान समेत कई नाम गिनाए। अश्विनी वैष्णव ने कहा कि इन्फोसिस के सह-संस्थापक नंदन नीलेकणि को 2009 से भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण का प्रमुख नियुक्त किया गया था। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि एनडीए सरकार ने लेटरल एंट्री को लागू करने के लिए एक पारदर्शी तरीका बनाया है। यूपीएससी के माध्यम से पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके से भर्तियां की जाएंगी। इस सुधार से प्रशासन में सुधार होगा। अब तो इस विवाद में तमाम क्षेत्रीय दल भी कूद गए हैं।
लिटरेल एंट्री के तहत प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाला 40 साल का कोई भी योग्य शख्स केंद्र सरकार में सीनियर आईएएस की हैसियत में काम कर सकता है। जरूरी शर्तों में यह है कि उसके पास काम करने का 15 साल का अनुभव हो। इसके लिए कैबिनेट सेक्रेटरी की अगुवाई वाली कमेटी के सामने इंटरव्यू होता है। जो इस इंटरव्यू को पास करता है, वो सीधे तौर पर जॉइंट सेक्रेटरी के पद पर तैनात कर दिया जाता है। ये तैनाती तीन साल के लिए होती है। इसे 2 साल बढ़ाया भी जा सकता है।
कहां से हुई शुरुआत
प्रशासनिक सुधार आयोग देश में अफसरशाही को और कैसे बेहतर बनाया जाए यह बताता है। पांच जनवरी 1966 में इसका गठन किया गया था। इसके पहले अध्यक्ष थे मोरारजी देसाई। यह आयोग तमाम सिफारिशें करता रहता है। 2005 में जब कांग्रेसनीत यूपीए की सरकार थी तो पांच अगस्त 2005 में यूपीए सरकार में मंत्री रहे वीरप्पा मोइली के नेतृत्व में दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन किया गया।
इस आयोग में कई प्रतिष्ठित लोगों को शामिल किया गया था। इसमें केरल के मुख्य सचिव रहे और कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों में बतौर सलाहकार काम कर चुके वी. रामचंद्रन को भी सदस्य बनाया गया था। पूर्व IAS जय प्रकाश नारायण, डॉ एपी मुखर्जी, डॉक्टर ए.एच. कालरो को भी सदस्य बनाया गया। प्रशासनिक सेवा की वरिष्ठ अधिकारी और भारत सरकार की वित्त सचिव रहीं विनीता राय को इस आयोग का सदस्य सचिव बनाया गया था।
इस आयोग को एक सक्रिय, जवाबदेह और अच्छा प्रशासन चलाने के दौरान आ रही खूबियों और खामियों की समीक्षा करने और उसका समाधान खोजने की जिम्मेदारी दी गई। योग ने 2005 में ही भारतीय अफसरशाही में भारी फेरबदल की गुंजाइश की बात कही। आयोग ने सुझाव दिया कि जॉइंट सेक्रेटरी के स्तर पर होने वाली भर्तियों को विशेषज्ञों से भरा जाए। इन विशेषज्ञों को बिना परीक्षा पास किए सिर्फ इंटरव्यू के जरिए जॉइंट सेक्रेटरी बनाया जा सकता है। इसके लिए प्रशासनिक आयोग ने तय किया था कि अधिकारी की उम्र कम से कम 40 साल होनी चाहिए और उसे काम करते हुए कम से कम 15 साल का अनुभव होना चाहिए।
आयोग ने कहा था प्रशासनिक अफसरों को तीन साल के लिए निजी कंपनियों में भेजा जाए
दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने एक और महत्वपूर्ण सिफारिश की थी। इसमें कहा था कि लोक सेवा आयोग ने चुनकर आने वाले अफसरों को तीन वर्ष के लिए किसी निजी कंपनी में काम करने के लिए भेजा जाना चाहिए। इससे काम-काज के तरीकों में सकारात्मक बदलाव आएगा। हालांकि, यूपीए सरकार ने इस सिफारिश को खारिज कर दिया था। जबकि, लिटरेल एंट्री के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।
और भी देशों में है लेटरेल एंट्री
भारत के अलावा कई और भी देश हैं जहां लेटरेल एंट्री के तहत भर्ती होती है। जैसे-ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, बेल्जियम, इटली, जापान, दक्षिण कोरिया और स्पेन जैसे देशों में भी लागू है।