मोदी सरकार ने जाति गणना कराने का बड़ा फैसला लिया। विपक्ष के हाथ से एक बड़ा मुद्दा छीन लिया। बड़ा सवाल यह है कि आखिर भाजपा ने जाति जनगणना का फैसला किन परिस्थितियों में लिया। क्या यह संघ के इशारे पर हुआ। पिछले महीने ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बतौर पीएम पहली बार नागपुर स्थित संघ मुख्यालय गए थे। उसे दौरान संघ सर संचालक भागवत से उनकी लंबी बात भी हुई थी। सियासी जानकार मानते हैं कि बिना संघ की सहमति के इतना बड़ा निर्णय नहीं लिया जा सकता है। क्योंकि भाजपा इस मामले में कभी खुलकर नहीं बोली। वह इससे इन्कार भी नहीं की न ही इसकी वकालत की। बिहार में जब नीतीश सरकार ने जाति गणना कराई तब भी भाजपा ने इसका विरोध नहीं किया था।
2024 सितंबर में आरएसएस की एक बैठक के बाद कहा गया कि जाति जनगणना को लेकर उसे कोई आपत्ति नहीं है लेकिन इसका राजनीतिक फ़ायदा नहीं लिया जाना चाहिए। हालांकि, निश्चित तौर पर राजनीतिक दल इसका फायदा उठाना चाहते हैं। दरअसल, सितंबर 2024 में आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने एक बयान देकर इसका समर्थन किया था लेकिन ये भी कहा था कि ये संवदेनशील मामला है और इसका इस्तेमाल राजनीतिक या चुनावी उद्देश्यों के लिए नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा था कि इसका इस्तेमाल पिछड़ रहे समुदाय और जातियों के कल्याण के लिए होना चाहिए। साथ ही उन्होंने कहा था कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के उप वर्गीकरण की दिशा में बिना किसी सर्वसम्मति के कोई कदम नहीं उठाया जाना चाहिए। आरएसएस का बयान ऐसे समय में आया था, जब विपक्षी इंडिया गठबंधन जाति आधारित जनगणना को जोर-शोर से मुद्दा बनाए हुए था। इसी के बाद कायस लग रहे थे कि संघ अब अपना रुख बदलने वाला है।
जाति गणना के बाद क्या बदलेगा?
लोगों के जेहन में यह सवाल जरूर उठ रहा होगा कि जाति गणना के बाद आखिर क्या बदल जाएगा। बतादें कि अभी ओबीसी का कोटा 27 फीसदी है। अगर जातिगत गणना हुई तो OBC को 27 फीसदी कोटा बढ़ाने की मांग उठेगी। आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को 2019 में केंद्र के 10 फीसदी आरक्षण देने के बाद से ही इसकी मांग की जा रही है। आरक्षण की सीमा 50 फीसदी इसी कारण तय की गई है, क्योंकि सरकार के पास 19311 के बाद जातिगत गणना के कोई आंकड़े नहीं है। जातिगत गणना होने के बाद यह सीमा हट जाएगी। इसके लिए कानूनी अड़चन भी समाप्त हो जाएगा। कांग्रेस पहले ही आरक्षण की सीमा को 50 फीसदी से बढ़ाने की मांग कर चुकी है।
आजादी के बाद जाति जनगणना क्यों नहीं हुई?
भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान जनगणना करने की शुरुआत साल 1872 में की गई थी। अंग्रेज़ों ने साल 1931 तक जितनी बार भी भारत की जनगणना कराई, उसमें जाति से जुड़ी जानकारी को भी दर्ज किया गया। आजादी हासिल करने के बाद भारत ने जब साल 1951 में पहली बार जनगणना की, तो केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से जुड़े लोगों को जाति के नाम पर वर्गीकृत किया गया।
तब से लेकर भारत सरकार ने एक नीतिगत फैसले के तहत जातिगत जनगणना से परहेज किया और सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मसले से जुड़े मामलों में दोहराया कि कानून के हिसाब से जातिगत जनगणना नहीं की जा सकती, क्योंकि संविधान जनसंख्या को मानता है, जाति या धर्म को नहीं। हालात तब बदले जब 1980 के दशक में कई क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का उदय हुआ जिनकी राजनीति जाति पर आधारित थी।
इन दलों ने राजनीति में तथाकथित ऊंची जातियों के वर्चस्व को चुनौती देने के साथ-साथ तथाकथित निचली जातियों को सरकारी शिक्षण संस्थानों और नौकरियों में आरक्षण दिए जाने को लेकर अभियान शुरू किया। साल 1979 में भारत सरकार ने सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ी जातियों को आरक्षण देने के मसले पर मंडल कमीशन का गठन किया था।
मंडल कमीशन ने ओबीसी श्रेणी के लोगों को आरक्षण देने की सिफारिश की। लेकिन इस सिफारिश को 1990 में ही जाकर लागू किया जा सका। इसके बाद देश भर में सामान्य श्रेणी के छात्रों ने उग्र विरोध प्रदर्शन किए। चूंकि जातिगत जनगणना का मामला आरक्षण से जुड़ चुका था, इसलिए समय-समय पर राजनीतिक दल इसकी मांग उठाने लग गए। आखिरकार साल 2010 में जब एक बड़ी संख्या में सांसदों ने जातिगत जनगणना की मांग की, तो तत्कालीन कांग्रेस सरकार को इसके लिए राजी होना पड़ा। 2011 में सामाजिक आर्थिक जातिगत जनगणना करवाई तो गई, लेकिन इस प्रक्रिया में हासिल किए गए जाति से जुड़े आंकड़े कभी सार्वजनिक नहीं किए गए।
इतनी आसान भी नहीं है जाति गणना
1901 की जनगणना से पता चला कि भारत में 1646 जातियां हैं। 1931 की जनगणना होने तक यह संख्या 4147 जातियों तक पहुंच गई। उसके मुकाबले अब अकेले OBC में हजारों जातियां हैं। 1980 में मंडल आयोग ने बताया था कि उसने 3428 जातियों की पहचान ओबीसी के रूप में की।- 2011 के SECC में गलतियों की बात मोदी सरकार ने लोकसभा में बताई थी। गलतियां इस वजह से हुईं क्योंकि कास्ट सेंसस से पहले यह साफ नहीं किया गया था कि किस जाति को दस्तावेज में किस तरह लिखा जाएगा। लिहाजा एक ही जाति को कुछ कर्मचारियों ने अलग स्पेलिंग में लिखा, कुछ ने दूसरी स्पेलिंग में। ऐसी कई स्पेलिंग एक ही जाति की हो गईं। 2011 के SECC में राष्ट्रीय स्तर पर 46 लाख जातियों, उपजातियों का आंकड़ा बहुत बड़ा पाया गया।- राष्ट्रीय और राज्यों के स्तर पर जातियों के मामले में बहुत घालमेल है। ओबीसी की सेंट्रल लिस्ट में जहां करीब ढाई हजार जातियां हैं, वहीं राज्यों के स्तर पर ओबीसी में 3 हजार से ज्यादा जातियां हैं। कई ऐसी जातियां हैं, जो स्टेट ओबीसी लिस्ट में हैं, लेकिन सेंट्रल ओबीसी लिस्ट में नहीं हैं।- चुनौती इस तरह की भी है कि जहां यूपी में कुछ ब्राह्मण जातियां OBC लिस्ट में हैं, वहीं कुछ राज्यों में वैश्य समुदाय की कुछ जातियां OBC तो कुछ राज्यों में जनरल लिस्ट में हैं। कुछ राज्यों में जाट OBC लिस्ट में नहीं हैं। वहीं, कर्नाटक की ओबीसी लिस्ट में गौड़ सारस्वत ब्राह्मण भी हैं।
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