परंपरागत करियर ऑप्शन के अलावा कई ऐसे सेक्टर हैं जहां उत्तराखंड के युवा अपना करियर बना सकते हैं। ऐसा है एक संभावनाओं से भरा क्षेत्र है ऑक्यूपेशन थेरेपी। ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट किसी कारणवश या जन्मजात शारीरिक या मानसिक तौर पर अक्षमता से ग्रस्त लोगों को सामान्य तरह से काम करने में सक्षम बनाते हैं। यही कारण है कि भारत में इनकी मांग तेजी से बढ़ रही है।
भारत सहित विश्व के अन्य देशों में बड़ी संख्या में लोग दुर्घटनाओं (सड़क, रेल एवं अन्य हादसे) का शिकार होते हैं। इनमें हताहत होने वालों की काफी बड़ी संख्या होती है। ऐसे लोगों की संख्या भी लाखों में होती है, जो किसी दुर्घटना के कारण शारीरिक/मानसिक अपंगता (आंशिक अथवा पूर्ण) के कारण रोजमर्रा की जिन्दगी के सामान्य काम भी करने में असहाय हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में कमाई करने की उम्र में ही वे बेरोजगार की श्रेणी में शामिल होने को विवश हो जाते हैं। ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट ऐसे लाचार लोगों के जीवन में आशा की किरण बनकर आते हैं और विभिन्न प्रकार के शारीरिक व्यायाम तथा ऑक्यूपेशनल थेरेपी आधारित उपचारों के जरिये दुर्घटना से प्रभावित उनके अंगों को कार्यशील बनाने का भरसक प्रयास करते हैं। इनकी मेहनत की बदौलत ऐसे असहाय लोग काफी हद तक दूसरों पर निर्भर नहीं रहते और सामान्य जीवन की ओर बढ़ने लगते हैं। इनमें से अधिकांश दोबारा आजीविका अर्जन के लिए भी सक्षम हो जाते हैं।
क्या है ऑक्यूपेशनल थेरेपी
यह पैरामेडिकल क्षेत्र की एक महत्वपूर्ण शाखा है, जिसमें दुर्घटना अथवा रोग के कारण अक्रियाशील/शिथिल हो गए मानव अंगों में जान डालने का काम ऑक्यूपेशनल थेरेपी में ट्रेंड लोगों द्वारा किया जाता है। इस ट्रेनिंग में चोटिल अंगों की मालिश, संबंधित एक्सरसाइज सहित अन्य प्रकार के मेडिकल साइंस से सम्बंधित तौर-तरीके आजमाए जाते हैं। इन थेरेपी में मशीनों और अन्य उपकरणों का भी इस्तेमाल किया जाता है। ऐसी पद्धतियां प्रत्येक रोगी की जरूरत के अनुसार विशिष्ट तरह की होती है। ये थेरेपिस्ट स्वयं को परिस्थितियों के अनुरूप ढालने का प्रयास कर रोगियों का उपचार करने का प्रयास करते हैं। लक्ष्य इतना ही होता है कि ये रोगी दोबारा अपने पैरों पर खड़े होकर न सिर्फ अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में आत्मनिर्भर हो सकें, बल्कि दोबारा प्रोफेशनल के तौर पर काम भी कर सकें।
स्किल्स
– रोगियों/विकलांगों/अपंग लोगों के प्रति आदर और स्नेह की भावना होना जरूरी
– थेरेपी के दौरान सेवा भावना का होना महत्वपूर्ण, मेहनती होना आवश्यक
– वैज्ञानिक सोच चाहिए, क्योंकि इस प्रोफेशन में कई उपकरणों का संचालन करना पड़ता है
– दुर्घटना की चोट के उपचार के साथ रोगियों के साथ अत्यंत कोमलता से पेश आने का स्वभाव
– धैर्यवान होना भी इस प्रोफेशन का अभिन्न हिस्सा, रोगी से संवाद करने की क्षमता
कोर्स
बीएससी (ऑक्यूपेशनल थेरेपी) कोर्स की अवधि तीन वर्ष की होती है। कई संस्थानों में 4 से साढ़े चार वर्षीय बैचलर ऑफ ऑक्यूपेशनल थेरेपी (बीओटी ) कोर्स भी संचालित किये जाते हैं। इनमें इंटर्नशिप की अवधि भी शामिल होती है। कोर्स में एडमिशन के लिए आवश्यक है कि प्रत्याशी बायोलॉजी सहित अन्य साइंस विषयों से 10+2 पास हो। अधिकांश संस्थानों में एंट्रेंस एग्जाम के माध्यम से इस कोर्स में एडमिशन दिए जाते हैं। कुल छह सेमेस्टर में बंटे इस कोर्स के सिलेबस में ऑक्यूपेशनल थेरेपी, साइकोलॉजी, ह्यूमन एनाटमी, फिजियोलॉजी, पैथोलॉजी, माइक्रोबायोलॉजी, बायो केमिस्ट्री सहित अन्य मेडिकल से सम्बंधित विषयों पर भी जोर रहता है। इनके अलावा ऑर्थोपेडिक, रूमेटोलॉजी, हैंड सर्जरी, साइकाएट्री आदि विधाओं में भी प्रशिक्षित किया जाता है। बैचलर्स डिग्री के बाद मास्टर्स स्तर का कोर्स भी करने के विकल्प देश-विदेश में उपलब्ध हैं।
नौकरियां
ऐसे ट्रेंड थेरेपिस्ट के लिए सरकारी और निजी हॉस्पिटल्स, पॉलीक्लिनिक्स, रिहैबिलिटेशन सेंटर्स, स्पेशल स्कूल्स, साइकाएट्री संस्थान, मेंटल हॉस्पिटल्स, कम्यूनिटी मेंटल हेल्थ सेंटर्स आदि में नौकरी के अवसर हो सकते हैं। इनका कार्यक्षेत्र मुख्य तौर पर ऐसे रोगियों के इर्द -गिर्द रहता है, जो ऑर्थोपेडिक, न्यूरोलॉजिकल, साइकोलॉजिकल/ साइकाएट्री आदि विकारों से पीड़ित होते हैं। इनकी सेवाएं विभिन्न प्रकार के इंडस्ट्रियल इंटरप्राइजेज द्वारा भी एर्गोनॉमिक स्टडीज या कंसल्टेशन आदि के लिए ली जाती हैं, ताकि मशक्कत को कम करने अथवा कार्य के दौरान श्रमिकों के शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव को सीमित किया जा सके।
विदेशों में नौकरी के अवसर
ऑक्यूपेशनल थेरेपी के ऐसे ट्रेंड प्रोफेशनल्स की मांग विदेशों में भी लगातार बढ़ती जा रही है। खासतौर पर ट्रेंड और अनुभवी थेरेपिस्ट के लिए आकर्षक सैलरी और भत्तों के साथ विदेश में नौकरी मिलना अब कोई मुश्किल बात नहीं रह गई है। ऐसे प्रमुख देशों में अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, सिंगापुर आदि का नाम लिया जा सकता है। प्राय: ऐसे विकसित देशों में स्वास्थ्य बजट भी तीसरी दुनिया के देशों की तुलना में कहीं अधिक होता है, संभवत: यही कारण है कि इन देशों के सरकारी रिहैबिलिटेशन सेंटर्स में काफी बड़ी संख्या में ऐसी नौकरियों की उपलब्धता है।
चुनौतियां
– भारत में सरकारी स्वास्थ्य संस्थाओं में वित्तीय संसाधनों की कमी के कारण अभी बहुत ही सीमित संख्या में ऐसे सेंटर्स की उपलब्धता
– प्राइवेट हॉस्पिटल्स में फिलहाल इस प्रोफेशन पर अधिक ध्यान नहीं
– इस विषय में ग्रेजुएशन के बाद सीधे जॉब की चाह रखने वालों के लिए सैलरी बहुत आकर्षक नहीं
– अधिकांश इंडस्ट्रीज में ऐसे प्रोफेशनल्स की उपयोगिता के प्रति जागरूकता का अभाव
– देश के ग्रामीण क्षेत्रों में ऑक्यूपेशनल थेरेपी की सुविधा अत्यंत नगण्य
– फिजियोथेरेपी और ऑक्यूपेशनल थेरेपी के अंतर से अधिकतर आबादी की अनभिज्ञता
– अभिभावकों और टीचर्स में भी इस प्रोफेशन में करियर बनाने सम्बंधित जानकारी का अभाव
स्पेशलाइजेशनः अन्य प्रोफेशन की तरह इस कार्यक्षेत्र में भी कई तरह की विशेषज्ञता हासिल करने के अवसर हैं-
बुजुर्गों की देखरेख करने वाले सेंटर: बुजुर्ग लोगों की शारीरिक क्षमताओं को बढ़ाने से सम्बंधित व्यायाम तथा अन्य थेरेपी देने का काम ऐसे ट्रेंड लोगों द्वारा किया जाता है। इसका उद्देश्य वृद्ध एवं शारीरिक तौर पर असहाय लोगों को अधिक सामान्य जीवन की ओर ले जाना है।
स्कूल: ये स्टूडेंट्स की क्षमताओं का आकलन करने के साथ ही मानसिक या शारीरिक तौर पर कमजोर बच्चों की थेरेपी की सिफारिश करते हैं, ताकि उनमें न सिर्फ इस कमी को दूर किया जा सके, बल्कि उनके आत्मविश्वास को भी बढ़ावा दिया जा सके। स्कूलों के उपकरणों/डेस्क आदि में स्टूडेंट्स की सुविधा के अनुसार बदलाव करने के सुझाव भी समय-समय पर देने का काम ये करते हैं।
मेंटल हेल्थ केयर सेंटर: ऐसे केन्द्रों पर कार्यरत ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट मेंटली रिटार्डेड और मानसिक तौर पर कमजोर रोगियों, भावनात्मक रूप से समस्याग्रस्त लोगों के उपचार पर ध्यान देते हैं।
डिएडिक्शन कंसल्टेशन: शराब और नशीली दवाओं की लत के शिकार लोगों को इन बुराइयों से मुक्ति दिलाने, तनाव में रहने के आदत से निजात दिलवाने आदि में भी इनकी काउंर्संलग और कंसल्टेशन को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।
गुरु मंत्र
इस प्रोफेशन का असल उद्देश्य ऐसे लाखों हुनरमंद/ट्रेंड लोगों की मुख्यधारा में वापसी करवाना है, जो विभिन्न स्वास्थ्य अथवा शारीरिक अपंगता से सम्बंधित कारणों से जॉब छोड़ने को मजबूर हो गए हैं। इस तरह के ट्रेंड मानव संसाधन की राष्ट्र के विकास में अहम भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता है। ऐसे में बड़ी आसानी से ऑक्यूपेशनल थेरेपी प्रोफेशन से जुड़े लोगों के हुनर की अहमियत को समझा जा सकता है। एक व्यक्ति को दोबारा आजीविका अर्जन के लायक बनाने का मतलब है एक परिवार की समृद्धि को लौटाना। इसलिए इस प्रोफेशन को सच्ची लगन और कर्मठता के साथ अपनाने का प्रयास करना चाहिए।
प्रमुख संस्थान
– सीएमसी, वेल्लोर
– मणिपाल कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज, मणिपाल
– पंडित दीन दयाल इंस्टीट्यूट फॉर फिजिकली हैंडीकैप्ड, दिल्ली
– ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ फिजिकल मेडिसिन एंड रिहैबिलिटेशन, मुंबई
– लोकमान्य तिलक म्यूनिसिपल मेडिकल कॉलेज, मुंबई