सार्वजनिक स्थलों पर हुए अतिक्रमण पर बुलडोजर कार्रवाई जारी रहेगी। मामले से संबंधित याचिका पर सुनवाई करते हुए Supreme Court ने कहा कि सार्वजनिक स्थलों हुए अतिक्रमण को गिराने पर रोक नहीं लगी है। सार्वजनिक सुरक्षा सर्वोपरि है। अतिक्रमण करने वाले धार्मिक ढांचे को भी हटाना होगा। इस पर कार्रवाई की छूट है। हमारी रोक सिर्फ बदले की कार्रवाई पर है। यानी, अगर कोई व्यक्ति आरोपी है या फिर दोषी साबित हो चुका है, तो उसके खिलाफ बदले के तौर पर बुलडोजर कार्रवाई नहीं की जा सकती है।
संपत्तियों को गिराने के खिलाफ याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम यह स्पष्ट करने जा रहे हैं कि सिर्फ इसलिए कि कोई आरोपी या दोषी है, उसकी संपत्ति को गिराने का आधार नहीं बनाया जा सकता साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सार्वजनिक सड़कों, सरकारी जमीन पर किसी भी अनधिकृत निर्माण को संरक्षण नहीं दिया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उन याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की, जिनमें आरोप लगाया गया है कि कई राज्यों में अपराधियों, आरोपियों और अन्य की संपत्तियों को गिराया जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि वह संपत्तियों को ध्वस्त करने के मुद्दे पर सभी नागरिकों के लिए दिशा-निर्देश तय करेगा, किसी विशेष समुदाय के लिए नहीं। पीठ ने कहा कि हम जो भी तय कर रहे हैं, हम इसे पूरे देश में सभी नागरिकों, सभी संस्थानों के लिए तय कर रहे हैं, किसी विशेष समुदाय के लिए नहीं। हम एक धर्मनिरपेक्ष देश हैं। किसी धर्म विशेष के लिए अलग कानून नहीं हो सकता।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि वह सार्वजनिक सड़कों, सरकारी भूमि या जंगलों पर किसी भी अनधिकृत निर्माण को संरक्षण नहीं देगी। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि हम ये भी सुनिश्चित करेंगे कि हमारी सीमाओं या किसी भी सार्वजनिक संपत्ति पर अतिक्रमण न हो सके।
बरकरार रखी बुलडोजर कार्रवाई पर रोक
बतादें कि न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की। इससे पहले 17 सितंबर के अपने आदेश में अवैध निर्माण पर बुलडोजर चलाने पर रोक लगा दी थी। 17 सितंबर के अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 1 अक्टूबर तक बिना सुप्रीम कोर्ट की पूर्व अनुमति के किसी की भी संपत्तियों को नहीं गिराया जाएगा। अपने निर्देश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अवैध रूप से ध्वस्तीकरण का एक भी मामला संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।
हालांकि, उसी समय सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि उसका आदेश उन मामलों में लागू नहीं होगा, जहां सड़क, गली, फुटपाथ, जंगल, रेलवे लाइन या किसी जल निकाय जैसे किसी सार्वजनिक स्थान पर कोई अनधिकृत संरचना है और उन मामलों में भी लागू नहीं होगा, जहां न्यायालय द्वारा ध्वस्तीकरण का आदेश दिया गया है।
उत्तर प्रदेश, गुजरात और मध्य प्रदेश की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या आपराधिक मामले में आरोपी होना बुलडोजर कार्रवाई का सामना करने का आधार हो सकता है। इस पर मेहता ने जवाब देते हुए कहा कि बिल्कुल नहीं, बलात्कार या आतंकवाद जैसे जघन्य अपराधों के लिए भी नहीं।
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि उन्हें चिंता है कि अदालत कुछ उदाहरणों के आधार पर निर्देश जारी कर रही हैं जिसमें आरोप लगाया गया है कि एक समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है। न्यायमूर्ति गवई ने कहा, अनधिकृत निर्माण के लिए एक कानून होना चाहिए, यह धर्म या आस्था या विश्वास पर निर्भर नहीं है।
अवैध निर्माण वालों को मिले 10 से 15 दिन का समय
जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि अगर निर्माण अवैध है तो भी उसमें रहने वाले लोगों को 10 से 15 दिन का समय दिया जाना चाहिए ताकि वो अपने लिए वैकल्पिक घर की व्यवस्था कर सकें। उन्होंने कहा कि महिलाओं, बच्चों और उम्रदराज लोगों को सड़कों पर देख दुख होता है। जस्टिस गवई ने कहा कि सार्वजनिक जमीन पर अतिक्रमण के मामलों में अदालत कोई हस्तक्षेप नहीं करेगी। कोर्ट ने कहा कि अगर सार्वजनिक सड़क, फुटपाथ इत्यादि पर अवैध संरचना बनी है तो अदालत का ये आदेश कब्जा करने वालों की कोई मदद नहीं करेगा। अदालत की तरफ से कहा गया कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और उसका आदेश हर किसी पर लागू होगा।
उधर, याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने कहा कि बुलडोजर शक्ति प्रदर्शन का जरिया बन गया है, इसका प्रदर्शन किया जाता है, जाने माने टीवी एंकर्स बुलडोजर्स में बैठकर बाइट्स देते हैं। उन्होंने कहा कि एक माहौल बना दिया गया है कि पहले घर गिराए जाएंगे और एक्सप्लेन बाद में किया जाएगा।
सुनवाई के दौरान जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि विध्वंस प्रक्रिया की वीडियोग्राफी की जानी चाहिए ताकि बाद में अदालतें यह पता लगा सकें कि कार्रवाई वैध थी या नहीं। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिनिधि को हस्तक्षेप करने से मना कर दिया। कोर्ट ने कहा कि हमें किसी अंतरराष्ट्रीय संस्था की जरूरत नहीं है, भारत में पर्याप्त विशेषज्ञ मौजूद हैं। कोर्ट ने ये भी कहा कि बुलडोजर एक्शन के मामलों की सुनवाई के लिए किसी विशेष अदालत के गठन की जरूरत नहीं है।