Maharashtra Election में भाजपा को बड़ी जीत मिलती दिख रही है। यहां पर भाजपा अकेले 127 सीट पर आगे दिख रही है। गठबंधन की बात करें तो 222 सीटों पर आगे है। इस चुनाव में सबसे बड़ा झटका उद्धव ठाकरे की पार्टी शिवसेना को लगा है। वह महज 19 सीटों पर लीड करते दिख रही है। कांग्रेस और शरद पवार की एनसीपी की हालत भी यही दिख रही है। हालत यह है कि विपक्षी गठबंधन को शिवसेना शिंदे से भी कम सीटें मिलती दिख रही है। शिंदे की शिवसेना 55 सीटों पर आगे चल रही है। वहीं, महाअघाड़ी महज 54 सीटों पर आगे है।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव को राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में देखा जाए तो यह जीत भाजपा के लिए संजीवनी का काम करेगी। लोकसभा चुनाव के बाद विपक्ष काफी आक्रामक दिखाई दे रहा था। देश में विपक्ष की ओर से कहा जा रहा था कि मोदी की लोकप्रियता गिर रही है। अब विपक्ष की धार कुंद हो सकती है। क्योंकि हरियाणा चुनाव के बाद महाराष्ट्र में भाजपा की दूसरी बड़ी जीत है। इसके अलावा महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव शिव सेना और एनसीपी के लिए भी महत्वपूर्ण है। शिव सेना और एनसीपी दोनों बंट चुकी हैं। अब शिंदे की असली शिवसेना पर दावेदारी और मजबूत हो गई है। इसके अलावा अजीत पवार भी असली एनसीपी के दावेदार हो गए हैं।
मुंबई देश की आर्थिक राजधानी मानी जाती है और जिसकी यहां सरकार बनेगी, उसका आर्थिक राजधानी पर कंट्रोल होगा। लोकसभा चुनाव के बाद हरियाणा के बाद महाराष्ट्र में कांग्रेस की यह दूसरी सबसे बड़ी हार है। इसी साल हुए लोकसभा चुनावों के दौरान बीजेपी 240 सीटें हासिल कर पाई थी। उसके नेतृत्व में एनडीए की सरकार बन पाई। विश्लेषकों ने इस परिणाम को बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए एक झटके की तरह देखा था क्योंकि इसकी वजह से एनडीए के घटक दलों का महत्व काफी बढ़ गया था।
इससे पहले 2014 और 2019 में बीजेपी ने केंद्र में अपने दम पर सरकार बनाई थी। इस बार बहुमत नहीं मिलने को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कम होती लोकप्रियता से जोड़ा गया था। लेकिन हरियाणा में जीत, जम्मू-कश्मीर में अच्छा प्रदर्शन के बाद महाराष्ट्र में जीत के बाद ये कहना मुश्किल हो जाएगा कि पीएम मोदी की लोकप्रियता कम हो रही है।
एनडीए के भीतर बीजेपी का दबदबा और बढ़ेगा। ऐसे में सहयोगी पार्टियों का दखल एनडीए में कमजोर होगा। अगले साल बिहार में विधानसभा चुनाव है और बीजेपी यहां भी नीतीश कुमार के साथ सीटों की साझेदारी में मन मुताबिक डील कर सकती है। नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के भरोसे भले केंद्र में मोदी सरकार चल रही है लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी को मिल रही लगातार जीत से समीकरण बदलेगा। ऐसे में नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू मोदी सरकार से बहुत तोलमोल नहीं कर पाएंगे।
क्या हिंदुओं का एकजुट कर गया योगी का नारा-बंटेंगे तो कटेंगे
सियासी विशेषज्ञ कहते हैं कि भाजपा की बड़ी जीत के पीदे महायुति सरकार की रणनीति है। लाड़ली बहिन योजना, हिंदुत्व और जातियों को एकजुट करने की रणनीति ने बीजेपी को ये कामयाबी दिलाई है। लोकसभा चुनाव के बाद पांच महीनों में बहुत कुछ हुआ। सबसे पहला लाड़ली बहिन योजना लाई गई जिसमें ढाई करोड़ महिलाओं के अकाउंट में चार महीने का पैसा आ गया। इसके साथ ही बंटेंगे तो कटेंगे नारा चलाया गया जिसकी वजह से कुछ हद तक हिंदू वोट एकजुट हुआ।
लोकसभा में उस समय जब कांग्रेस जीती थी तब मराठा आरक्षण का मुद्दा चल रहा था तो उस वक्त मराठा एकजुट हुआ था। साथ ही चुनाव के वक्त कुछ बीजेपी नेताओं ने संविधान बदलने की बात कही थी। उसका असर यहां बौद्ध और दलित वोटों पर पड़ा। 9-10 फ़ीसदी बौद्ध वोट है जो महाविकास अघाड़ी के साथ चला गया। मराठा-दलित वोट एकजुट होने के साथ-साथ मुसलमानों का मतदान भी बढ़ा था।
झारखंड में एक बार फिर हेमंत सरकार, NDA के हाथ लगी निराशा
महाराष्ट्र में जहां बीजेपी को बंपर सीटें मिली हैं वहीं, झारखंड में उसे इंडी गठबंधन से हार का सामना करना पड़ा। यहां झामुमो से हार का सामना करना पड़ा। यहां विपक्षी गठबंधन ने बहुमत हासिल किया।