एनएचबी गढ़वाल यूनिवर्सिटी कैंपस में बना एक मकान बरबस अपनी ओर ध्यान खींच लेता है। आवास के परिसर में जगह-जगह रखे गए ढेर सारे रंग-बिरंगे घोंसलें रुकने पर मजबूर कर देते हैं। चिड़ियों की चहचहाहट ऐसी, जैसे कोई मधुर संगीत। पक्षी प्रेमियों को यह जगह किसी जन्नत से कम नहीं लगेगी।

इस परिसर की खूबसूरती में चार चांद लगाने वाले सुभाष चंद्र भट्ट कहते हैं, बचपन से ही पक्षी उन्हें लुभाते रहे हैं। देवभूमि में नौकरी लग गई। यहां का वातावरण अनुकूल होने के कारण अपने इस शौक को पूरा करने का मौका मिल गया। अब तो नींद भी इन्हीं की चहचहाहट के साथ खुलती है। दिन की शुरुआत दाने का प्रबंध करने से होती है। यह सब आदत में कब शुमार हो गया, पता ही नहीं चला। लेकिन, इससे बड़ा सुकून मिलता है।

हमारे आंगन में करीब 30 से 35 तरह की प्रजाति के पक्षी आते हैं। इन सब के नाम भी मुझे नहीं पता हैं। लेकिन, इनसे एक रिश्ता जुड़ गया है। कुदरत का नियम है- हम जो अर्पण करते हैं वही हमको मिलता है। इनसे मैं ही नहीं प्यार करता हूं, ये भी मुझसे प्यार करने लगीं हैं। हमारे आंगन ही नहीं, आपको यह पक्षी घर के अंदर भी दिख जाएंगे। इनके प्यार जताने का अंदाज जुदा है। कभी सिर पर तो कभी कंधों पर बैठ कर अपनी मधुर ध्वनि से बात करने लगती हैं। यह कहते हुए सुभाष मुंह से इन पक्षियों को रिझाने के लिए एक आवाज निकालते है, दर्जनों चिड़ियां इनके इर्द-गिर्द मंडराने लगती हैं और वह दाने डालने में मशगूल हो जाते हैं।
वह बताते हैं, कभी-कभार घर से बाहर होने की स्थिति में उनकी पत्नी पक्षियों के लिए दाने का प्रबंध करती हैं। उनके पक्षी प्रेम का आस पड़ोस पर क्या असर हुआ? यह पूछने पर वह कहते हैं-हमारे आसपास के सभी मकानों में आपकों एक पोटली दिख जाएगी। जिसमें दाने के साथ पानी भी रखा होगा।

इतनी बड़ी संख्या में चिड़ियों के लिए दाने की व्यवस्था के बारे में वह कहते हैं-सरकारी नौकरी है। आर्थिक तौर पर इतनी समर्थ्य है कि इनके लिए दाने की व्यवस्था कर सकूं। माह भर में तकरीबन एक से डेढ़ कुंतल दाने की जरूरत पड़ जाती है। हमारी करीब आधी सैलरी इन्हें में खर्च हो जाती है। कभी-कभार थोड़ी बहुत दिक्कत होती है। मगर, ये पक्षी परिवार का हिस्सा हो गए हैं। जितना खर्च करता हूं उससे कहीं अधिक प्यार, सुकून मिल जाता है इनसे।