देवभूमि में जन्में महान कवि सुमित्रानंदन पंत हिंदी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में एक हैं। उत्तराखंड में जन्म लेने के कारण ही शायद वह प्रकृति के सुकुमार कवि के रूप में विख्यात हुए। उनकी जन्मभूमि उत्तराखंड थी मगर कर्मभूमि उन्होंने इलाहाबाद (अब प्रयागराज) को बनाया। पंत को लेकर अनेक किस्से हैं, जिन्हें साहित्य की दुनिया में बड़े चाव के साथ कहा व सुना जाता है। आज यानी 20 मई को जयंती के अवसर पर पंतजी से जुड़ा एक रोचक किस्सा-
पूरी दुनिया को मालूम है कि सदी के महानायक अमिताभ बच्चन का नामकरण पंत जी ने ही किया था। लेकिन, बहुतों को यह नहीं पता है कि उनके मुंबई स्थित बंगले का नाम भी उन्हीं के इंतजार में रखा गया। अमिताभ के पिता हरिवंश राय बच्चन के पारिवारिक मित्र थे पंत जी। अमिताभ ने अपने पिता की सलाह पर ही इस बंगले का नाम प्रतिक्षा रखा।
1940 के आसपास वह इलाहाबाद आए तो अपने करीबी नरेंद्र शर्मा के साथ नया कटरा स्थित दिलकुशा में रहने लगे। वहीं हरिवंश राय बच्चन भी रहते थे। कुछ दिनों में ही बच्चन से इतनी नजदीकी हो गई कि फिर वह बच्चन के साथ ही रहने लगे। हरिवंश राय बच्चन ने अपनी आत्मकथा नीड का निर्माण फिर में भी पंत से अपने संबंधों को बताया है।
सुमित्रानंदन पंत
वह लिखते हैं कि पहली मुलाकात में ही पंत जी ने तेजी को और तेजी ने पंत जी को समझ लिया था। उनकी कविताओं और उनके अपने पूर्व संबंधों के बारे में तेजी को मैं पहले ही बता चुका था। वह लिखते हैं कि पंत का इरादा इलाहाबाद में रहने का था। लेकिन, उनकी आर्थिक स्थिति आड़े आ रही थी। तब तेजी ने उनको हमारे घर में आकर रहने का निमंत्रण दिया। पंत ने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया। वे दूसरे दिन अपने सामान के साथ मेरे घर आ गए। हमने उनके लिए बाहरी बरामदे के एक ओर का छोटा कमरा ठीक कर दिया था। उसके ठीक दूसरी और मेरा अध्ययन कक्ष था।
बच्चन लिखते हैं कि पंत और तेजी में खूब प्रगाढ़ता हो गई थी। कविताएं सुनी- सुनाई जातीं, हंसी-मजाक भी खूब होता था। बाद में जब तेजी ने पुत्र को जन्म दिया तब पंत उन्हें देखने गए। नवजात बालक को देखकर पंत ने बालक का नामकरण अमिताभ किया। बाद में दूसरे पुत्र (बंटी) का नामकरण अजिताभ के रूप में पंत ने ही किया था। पंत और बच्चन के बीच प्रगाढ़ता यहीं तक सीमित नहीं रही।
अमिताभ बच्चन ने जब जंजीर, दीवार, शोले जैसी फिल्मों से हिंदी सिनेमा में अपनी जमीन बनाई और लोकप्रियता हासिल की तब उन्होंने मुंबई में अपना बंगला बनवाया। बंगले का नामकरण करने के लिए जब उन्होंने अपने पिता हरिवंश राय बच्चन से सलाह ली, तो उन्होंने प्रतीक्षा नाम दिया। बाद में पूछने पर बताया था कि उन्हें अपने एक अजीज मित्र की प्रतीक्षा है। हालांकि, उनकी यह प्रतीक्षा कभी पूरी नहीं हो सकी। क्यों कि पंत जी कभी अमिताभ के बंगले प्रतिक्षा में नहीं पहुंच पाए।
कुमाऊं की पहाड़ियों में बीता बचपन
बागेश्वर जिले के कौसानी गांव में जहां उनका बचपन बीता था। वह घर आज एक संग्रहालय बन चुका है। इसका नाम है सुमित्रा नंदन पंत साहित्यिक वीथिका। यहां उनके कपड़े, चश्मा, कलम आदि व्यक्तिगत वस्तुएं सुरक्षित रखी गई हैं। संग्रहालय में उनको मिले ज्ञानपीठ पुरस्कार का प्रशस्तिपत्र, हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा मिला साहित्य वाचस्पति का प्रशस्तिपत्र भी मौजूद है। साथ ही उनकी रचनाएं लोकायतन, आस्था आदि कविता संग्रह की पांडुलिपियां भी सुरक्षित रखी हैं। कालाकांकर के कुंवर सुरेश सिंह और हरिवंश राय बच्चन से किए गए उनके पत्र व्यवहार की प्रतिलिपियां भी यहां मौजूद हैं।
कठिनाई में बीता था बचपन
सुमित्रानंद पंत का बचपन बड़ी कठिनाई में बीता था। जन्म के छह घंटे बाद ही उनकी मां का निधन हो गया। उनका लालन-पालन उनकी दादी ने किया। उनका बचपन का नाम गोंसाई दत्त रखा गया था। वह अपने माता पिता की आठवीं संतान थे। 1910 में शिक्षा प्राप्त करने के लिए गवर्नमेंट हाईस्कूल अल्मोड़ा गए। यहीं उन्होंने अपना नाम गोसाईं दत्त से बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया। इसके बाद वह 1918 में काशी गए। इसके बाद इलाहाबाद चले गए। फिर वहीं के होकर रह गए। हालांकि, उनका जन्मभूमि को लेकर लगाव जगजाहिर है। उनकी कविताओं में भी यह झलकता है।