Ankita Dhyani की नजरें अब वर्ष 2028 में लांस एजेंलिस में होने वाले ओलंपिक पर जाकर टिक गई हैं, लेकिन उससे पहले वर्ष 2025 की चुनौती सामने है। उनका सपना जापान की राजधानी टोक्यो में होने वाली विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप में मेडल लाने का है। अंकिता ने पेरिस ओलंपिक में हिस्सा लेने की खुशी को समेट लिया है। देश और अपने गृह राज्य उत्तराखंड के लोगों के रिस्पांस से अंकिता गदगद है। उत्तराखंड सरकार ने 50 लाख की धनराशि देकर उसका उत्साह बढ़ाया है, तो वहीं रेलवे विभाग भी अपनी इस खिलाड़ी कार्मिक को प्रमोशन देने की तैयारी में है। अंकिता रेलवे विभाग में टीसी पद पर कार्यरत है।
- अतुल्य उत्तराखंड के लिए विपिन बनियाल
अंकिता ध्यानी को देखते ही उसके खिलाड़ी होने का अंदाजा लग जाता है। बातचीत करो, तो कुछ ही सेकेंड में यह भी पता चल जाता है कि वह एक ठेठ पहाड़ी लड़की है। बोलने में एक खास तरह की टोन और स्वभाव में सरलता, सहजता और शर्मीलापन, सब कुछ एक झटके में बयां कर देता है। उत्तराखंड के लैंसडौन क्षेत्र के मेरूडा गांव निवासी अंकिता ध्यानी पहाड़ की उन तमाम बेटियों के लिए मिसाल है, जो आकाश छूना चाहती हैं, लेकिन संसाधनों का अभाव उनके सामने पसरा पड़ा है। इस स्थिति को कैसे तोड़कर आगे बढ़ा जाता है, अंकिता ध्यानी की कहानी की यही सबसे महत्वपूर्ण बात है। गांव के लोगों ने उन्हें कभी मेरूड़ा गांव में उन लड़कों के साथ दौड़ते देखा था, जो कि सेना में भर्ती के लिए तैयारी कर रहे थे। गांव के इन्हीं लोगों ने पूरे देश के साथ अंकिता को पेरिस ओलंपिक में 5000 मीटर रेस में दौड़ते देखा, तो यह हर किसी को आश्चर्य में भरने वाला था। ‘अतुल्य उत्तराखंड’ से बातचीत में अंकिता कहती हैं, मैं ओलंपिक में जाकर बहुत खुश हूं। मगर यह अहसास भी हुआ है कि ओलंपिक में मेडल लाने के लिए मुझे उस लेवल पर जाना होगा, जहां पर मेडल की गारंटी हो।
पेरिस ओलंपिक से पहले और बाद की अंकिता में आए फर्क के जवाब में वह कहती हैं, ओलंपिक खेल की दुनिया का सबसे बड़ा प्लेटफार्म है। हर खिलाड़ी इसी सपने को लेकर जीता है कि उसे ओलंपिक में अपना हुनर दिखाने का मौका मिले। वह देश के लिए मेडल जीते। मेरा ओलंपिक खेलने का सपना पूरा हो गया, लेकिन मेडल का सपना बाकी है। पेरिस ओलंपिक ने बहुत सारे अनुभव दिए हैं। यह अहसास भी कराया है कि गोल्ड जीतने के लिए किस तरह की मेहनत चाहिए। हम कितने पानी में हैं। इस लिहाज से देखूं, तो ओलंपिक से पहले और बाद की मेरी स्थिति में बहुत फर्क आया है। अब मेरे पास ओलंपिक खेलने का अनुभव है। हालांकि इससे पहले, जब मैंने वर्ष 2023 में थाईलैंड में हुई एशियन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता था, तब भी अनुभव किया था कि बडे़ स्तर की प्रतियोगिताएं आपका दिमाग खोल देती है। ओलंपिक का अनुभव तो आत्ममंथन के लिए सबसे बड़ा है।
जब मैंने ओलंपिक के लिए क्वालिफाई किया तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था। मैंने इसके लिए खूब मेहनत की थी। प्रशिक्षण लिया था और जब यह मेहनत सार्थक हुई, तो खुशी स्वाभाविक थी। मां, पिताजी, भाई-बहन, शिक्षक, शुभचिंतक, सभी बहुत खुश थे। अंकिता का ओलंपिक तक का सफर आसान नहीं था, इसमें संघर्ष का लंबा सिलसिला है। वह बताती हैं, मेरे संघर्ष की लंबी कहानी है, जिसमें संसाधनों का अभाव, आर्थिक दिक्कतें आदि बातें मजबूती से शामिल है। गांव तो छोड़िए, आस-पास के इलाके में भी कोई मैदान ऐसा नहीं था, जहां में प्रैक्टिस कर पाती। परिवार के लोगों ने बहुत साथ दिया। मेरी शिक्षिका रिद्धि सेमवाल भट्ट ने बहुत हौंसला अफजाई की।
खेल का मैदान बहुत बाद में नसीब हुआ। गांव की उबड़-खाबड़ सड़क पर मैं दौड़ती थी। सेना में भर्ती की तैयारी कर रहे लड़कों के साथ मुझे दौड़ते देखना लोगों को अजीब भी लगता था, लेकिन मेरा परिवार मेरे साथ डटा रहा। इसके बाद, स्पोट्र्स हॉस्टल रूद्रप्रयाग के लिए ट्रायल दिया। उसमें सफल रही, तो अगस्त्यमुनि-रूद्रप्रयाग से होते हुए साईं सेंटर भोपाल, राष्ट्रीय शिविर बैंगलूरू तक पहुंचने का रास्ता तैयार हुआ। इसके बीच में, पूना में आयोजित खेलो इंडिया खेलो प्रतियोगिता में उत्तराखंड के लिए दो स्वर्ण पदक जीतने की उपलब्धि से मुझे काफी हौंसला मिला।
आठवीं कक्षा में नेशनल इवेंट से बदली कहानी
अंकिता कहती हैं कि न परिवार, न गांव या क्षेत्र में खेल लायक माहौल कभी दिखा। इसलिए यह तो नहीं कहा जा सकता कि शुरू से ही खिलाड़ी बनना चाहती थी। लेकिन जब मैं आठवीं कक्षा में थी, तो एक बार स्कूल की तरफ से नेशनल इवेंट में जाने का मौका मिल गया। वहां मैं खूब जमकर दौड़ी, तो फिर अच्छा लगने लगा। घर-परिवार और स्कूल से सपोर्ट मिलने लगा, तो आगे बढ़ने लगी। धीरे-धीरे समझ में आने लगा कि खेल में ही आगे बढ़ना है। दूसरा कोई रास्ता नहीं है। खेल के लिए खिलाड़ी को अपना जीवन झोंकना पड़ता है। बगैर इसके सफलता नही मिलती। इसीलिए अपना सब कुछ झोंक रही हूं।
पेरिस ओलंपिक के अनुभव साझा करते हुए अंकिता कहती हैं, सभी का मेरे प्रति बहुत अच्छा व्यवहार रहा। चाहे वो खिलाड़ी हों या फिर प्रशिक्षक सभी उत्साह बढ़ाने वाले और अच्छी सलाह देने वाले रहे। विदेशी और भारतीय कोच के सिखाने के तरीकों पर बात करने पर वह कहती हैं, दोनों की अपनी-अपनी खासियत है। खासतौर पर यदि एथलेटिक्स की बात करें, तो तमाम दूसरे देश हमसे कहीं आगे हैं। ऐसे में उन जगहों से आने वाले प्रशिक्षकों पर आपको सिखाने के लिए कई सारी बातें अतिरिक्त होती है। चाहे वो तकनीक का मामला हो या फिर व्यावहारिक अन्य कोई बात। इससे मैने खेल में सुधार भी महसूस किया है, लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं है कि भारत के प्रशिक्षकों का हमें कोई फायदा नहीं मिलता। हम जिस परिवेश से आते हैं, जिस तरह का हमारा मिजाज है, उससे भारत के प्रशिक्षक ज्यादा बेहतर समझकर हमारे खेल में सुधार करते हैं।
पेरिस ओलंपिक में उम्मीद से कम पदक मिलने के सवाल पर अंकिता कहती हैं कि कोई भी खिलाड़ी ऐसा नहीं होगा, जिसने अपना सौ फीसदी लगाने में कमी की होगी। जो जीते हैं, निश्चित तौर पर उनकी तैयारी बेहतर रही होगी। मैने अपने शुरूआती दिनों में भले ही संसाधनों का अभाव देखा हो, लेकिन अब मुझे महसूस होता है कि सरकार खेल के विकास में कोई कमी नहीं कर रही है। खेलो इंडिया खेलो के अच्छे रिजल्ट आ रहे हैं। इसके अलावा, यदि हम देखें, तो अब हम ओलंपिक जैसे बडे़ इवेन्ट में भाग लेने के लिए ज्यादा खिलाड़ियों को भेज रहे हैं। एथलेटिक्स में बहुत बडे़ दल को भारत ने इस बार ओलंपिक में भेजा था। आने वाले दिनों में खेलों में और अच्छे परिणाम आएंगे, ऐसी उम्मीद है।
2028 ओलंपिक अगला लक्ष्य
अपने आगामी लक्ष्यों का जिक्र करते हुए अंकिता कहती हैं, सबसे पहले तो अगले साल की विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप के लिए फोकस करना है। इसके बाद, 2028 का ओलंपिक है। मेरी उम्र अभी 22 वर्ष है। लंबी दूरी की धाविका होने के कारण मेरे पास आने वाले वर्षों में बेहतर परिणाम देने के लिए पूरी संभावनाएं हैं। अनुभव और ऊर्जा दोनों के समन्वय के साथ अब जी-तोड़ मेहनत करनी है, ताकि देश के लिए मेडल जीत सकूं।