Almora Bus Accident : क्या 36 लोगों के मरने का इंतजार कर रहे थे? हादसे के बाद अब आए हैं, गड्ढे भरने। सड़क किनारे झाड़ियां काटने। यह काम पहले क्यों नहीं किया? यह सवाल मरचूला के स्थानीय लोगों के हैं…सामने विभाग के अधिकारी-कर्मचारी थे। वह सोमवार को हुए हादसे के बाद सड़क किनारे हुए गड्ढे में मिट्टी डालने आए थे। मजदूर सड़क किनारे उगी झाड़ियों को काट रहे थे। यह वाकया मरचूला का है, जहां हुए हादसे में 36 लोगों ने अपनी जान गंवा दी। कितने बच्चों ने अपने माता-पिता, सुहागिनों ने अपने सुहाग, किसी ने अपना बच्चा खो दिया।
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स्थानीय लोगों का आक्रोश चरम पर है। हो भी क्यों न ! किसी भी इंसान को झकझोर देने वाला दृश्य था। 36 लोगों की लाशें, दर्जनों कराहते लोगों को देखने वाले इन लोगों की आंखों से नींद गायब है। बाहर से कोई आ रहा है या जा रहा है मन में अनहोनी की आशंका उन्हें घेर ले रही है। मंगलवार सुबह घटना स्थल पर काम होते देख स्थानीय लोग जमा हो गए। उन्हें गुस्सा इस बात पर भी था कि यहां का जेई भंडारी नहीं आया था।
36 लोगों की जान चले जाने के बाद आई रोड सेफ्टी की याद। आज मरचूला में घटनास्थल पर गड्ढे भरवाने पहुंचे अधिकारी। मरचूला से सारण बैंड तक ही बवाल टाल के चले गए। ये है ‘गड्ढा मुक्त’ उत्तराखंड की हकीकत। गजब करते हो ‘सरकार’ ! #AlmoraBusAccident pic.twitter.com/VVwUeKnnk3
— Arjun Rawat (@teerandajarjun) November 5, 2024
स्थानीय लोगों ने जब यहां पर काम रहे एक अधिकारी से पूछा, यहां क्यों आए हैं? तो जवाब आया कि आपके लिए आए हैं… लोगों ने कहा- इतनी बड़ी दुर्घटना के बाद ही यह गड्ढे-झाड़ियां क्यों दिखीं। यह काम तो पहले भी कराया जा सकता था। तो सामने से जवाब आया कि रोड सेफ्टी के लिए आए हैं। आक्रोशित लोगों ने जब कहा कि क्या आप हादसे का इंतजार कर रहे थे, लोग मर जाए तब हम काम करने चलें। इस पर वहां मौजूद अधिकारी हकबकाने लगा। लोगों ने कहा कि यहां से 100 मीटर आगे चलिए, हम आपको दिखाते हैं कि एक पुस्ता (पहाड़ पर सड़कों के किनारे बनी दीवार) की हालत इतनी जर्जर है कि यहां पर कभी भी दुर्घटना हो सकती है। लेकिन, आप लोग इस पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। क्या तीन साल से विभाग के पास बजट भी नहीं आया है। आप लोग एक और हादसे का इंतजार कर रहे हैं।
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मरचूला हादसे ने कई सवालों को फिर सामने लाकर खड़ा कर दिया है। साल दर साल कोई न कोई बड़ा हादसा लोगों को आजीवन बना रहने वाला दर्द दे रहा है। इसके बावजूद सड़क सुरक्षा कभी मुद्दा नहीं बना। चाहे जिस पार्टी की सरकार रही हो। इसपर कभी गंभीरता से काम नहीं किया गया। आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में 100 दुर्घटनाओं में मृतकों की संख्या, राष्ट्रीय औसत की तुलना में काफी अधिक है। यहां पर हर आठ घंटे में एक की मौत सड़क हादसों में हो रही है। उत्तराखंड परिवहन विभाग की वेबसाइट पर उपलब्ध 2018 से 2022 की अवधि के लिए नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, राज्य में दुर्घटना की गंभीरता की दर 2018 में 71.3 के उच्चतम स्तर से 2021 में 58.36 के निम्नतम स्तर तक गई है। यह अत्यंत चिंताजनक है कि हमारी दुर्घटना की गंभीरता की दर राष्ट्रीय औसत से दोगुनी है। इसके बाद भी इस मुद्दे पर ध्यान न देने को संवेदनहीनता ही कहा जा सकता है। चूंकि, जान गंवाने वाले आम लोग होते हैं। नीति-नियंता तो हेलिकॉप्टरों से सफर करते हैं। इसलिए उन्हें कोई खतरा तो है नहीं। यह लोग ये भी जानते हैं कि ये पब्लिक है…जो कुछ दिनों बाद सब भूल जाती है। चुनाव समय नया मुद्दा थमा देंगे।
धुमाकोट हादसे से भी नहीं लिया सबक
एक जुलाई, 2018 के धुमाकोट बस हादसे से सबक लिया होता तो सोमवार को मरचूला हादसे से बचा जा सकता था। धुमाकोट क्षेत्र में बमेणीसैंण से भौन पीपली मार्ग पर धुमाकोट आ रही जीएमओयू की बस गहरी खाई में जा गिरी थी। तब हादसे में 48 लोगों की मौके पर ही जान चली गई। इस हादसे की वजह तब ओवरलोडिंग और तेज रफ्तार बताई गई थी। इस हादसे के बाद भी धुमाकोट के सुदूरवर्ती क्षेत्र में चलने वाली परिवहन कंपनियों और सरकारी एजेंसियों ने कोई सबक नहीं लिया।
त्योहार व शादी बरात के सीजन में ज्यादातर हादसे
इसके बाद 4 अक्तूबर, 2022 को नैनीडांडा से सटे बीरोंखाल क्षेत्र के सिमड़ी में एक बारात की बस खाई में जा गिरी थी, जिसमें 34 लोगों की जान गई और 19 लोग घायल हुए थे। इस हादसे की वजह भी ओवरलोडिंग और तेज रफ्तार बताई गई। ये इस क्षेत्र के बडे़ हादसे हैं, जिनके कुछ दिनों तक सड़क पर खूब सख्ती दिखी। हर चेकपोस्ट पर चैकिंग चली, लेकिन बाद में जस के तस हालात हो गए। ग्रामीण अंचलों में होने वाले ज्यादातर हादसे त्योहार व शादी बरात के सीजन में ही होते हैं। सोमवार को हुए मर्चूला हादसे के पीछे एक बड़ा कारण ग्रामीण क्षेत्रों में समुचित परिवहन सुविधाओं का अभाव भी है।
त्योहारी सीजन के कारण बस खचाखच भरकर चली
पौड़ी जिले के नैनीडांडा विकासखंड व धुमाकोट तहसील के ज्यादातर लोग रामनगर व कुमांऊ मंडल में निवास करते हैं। जो दीवाली, होली और शादी बरात के सीजन में घर गांव आते जाते हैं। ऐसा ही सोमवार को किनाथ से रामनगर की बस में हुआ। दरअसल, इन दिनों त्योहारी सीजन के कारण बस खचाखच भरकर चली।
रामनगर से किनाथ के लिए एकमात्र बस सेवा
रामनगर से किनाथ के लिए यह एकमात्र बस सेवा है, जो सुबह छह बजे किनाथ से चलकर दस बजे रामनगर पहुंचती है। यही बस शाम को तीन बजे रामनगर से चलकर शाम को करीब साढे़ छह बजे किनाथ गांव पहुंचती है। सुबह की यह बस निकल जाए तो फिर अगले दिन सुबह ही रामनगर के लिए बस मिलती है। यही कारण है कि बस में सवारियां ठस जाती हैं और हादसे का कारण बनती हैं। व्यवस्था बनाना सरकार काम है, उसे ही इस समस्या का निदान खोजना होगा।