Almora Accident ने एक बार फिर उत्तराखंडवासियों को हिला कर रख दिया है। पूरा राज्य शोक संतप्त है। यहां एक तथ्य पर ध्यान दिलाना जरूरी है। उत्तराखंड में हर साल तकरीबन एक हजार लोगों की सड़क हादसों में जान जाती है। यानी, औसतन हर घंटे एक की मौत। आंकड़े कितना भयावह हैं। सवाल उठता है, इसकी जिम्मेदारी कौन उठाएगा? क्या इसे नियती मान लिया जाए? या फिर जिम्मेदारी तय की जाए।
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यहां गौर करने वाली बात यह है कि राज्य में 100 दुर्घटनाओं में मृतकों की संख्या, राष्ट्रीय औसत की तुलना में काफी अधिक है। उत्तराखंड परिवहन विभाग की वेबसाइट पर उपलब्ध 2018 से 2022 की अवधि के लिए नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, राज्य में दुर्घटना की गंभीरता की दर 2018 में 71.3 के उच्चतम स्तर से 2021 में 58.36 के निम्नतम स्तर तक गई है। यह अत्यंत चिंताजनक है कि हमारी दुर्घटना की गंभीरता की दर राष्ट्रीय औसत से दोगुनी है।
सड़क हादसे को गंभीरता से नहीं लिया जाता
एसडीसी फाउंडेशन के अनूप नौटियाल कहते हैं, निराशाजनक यह है कि न तो भाजपा और न ही कांग्रेस, किसी भी राज्य सरकार ने उत्तराखंड में सड़क दुर्घटनाओं के मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया है। हाल की अल्मोड़ा दुर्घटना के मामले में निचले स्तर के अधिकारियों को निलंबित करना सिर्फ एक तात्कालिक और अपरिपक्व निर्णय है, जो केवल सुर्खियों को मैनेज करने के लिए है। जब तक राज्य सरकार और इसके विभिन्न विभाग 4E के सिद्धांतों – इंजीनियरिंग, इमरजेंसी केयर, एनफोर्समेंट और एजुकेशन – पर गंभीरता से काम नहीं करेंगे, तब तक हम और अधिक जीवन खोते रहेंगे।
सड़क सुरक्षा के बारे में सभी नगरिकों, ड्राइवरों और टूरिस्ट्स को जागरूक करना बेहद जरूरी है। सड़क सुरक्षा की संस्कृति विकसित करना एक भगीरथ प्रयास है, जिसके लिए सभी विभागों और सभी हितधारकों की सामूहिक कोशिशों की आवश्यकता है; यह केवल पुलिस की जिम्मेदारी नहीं हो सकती।