पहाड़ी गीतों की अपनी चाल, अपनी रवानी होती है, वह झुमाते हैं…एक अलग तरह का आकर्षण होता है पहाड़ी गीतों में…। भले ही आज तेज बीट्स पर बने चलताऊ गीतों की भरमार है और लाइक, व्यूज को ही गीतों की सफलता का पैमाना मान लिया गया है, लेकिन कुछ ऐसे युवा गायक भी हैं, जिन्होंने उस रास्ते को अब भी पकड़कर रखा है, जिसे उन लोक गायकों-गितेरों ने बनाया है, जो सदाबहार हैं, जिनके गीतों में पहाड़ का दर्द, पहाड़ का मर्म और पहाड़ की उम्मीदें और सपने झलकते हैं।
हमारे मां-बाप ने बड़ी मेहनत से इन घरों को पत्थरों से बनाया होगा, कभी गिरे होंगे, चोट लगी होगी, सिर से खून भी बहा होगा, …इसलिए इसे कभी छोड़कर नहीं जाऊंगा।
अभिनव रावत, लोकगायक
कानफोड़ू संगीत के दौर में पौड़ी के बैजरो के लाछी गांव निवासी नवोदित गायक अभिनव रावत को सुनना सुखद लगता है। वो अक्सर पहाड़ों में गाते-गुनगुनाते नजर आते हैं और इन पहाड़ों को छोड़कर ईंट-कंकरीट की दुनिया में बसने वाले लोगों को अपनी माटी की याद दिलाते हैं। अभिनव ऐसे युवाओं के लिए मिसाल हैं, जो सोचते हैं कि कुछ करने के लिए पहाड़ छोड़ना होगा, उन्हें वह बता रहे हैं कि यहां रहकर भी बढ़िया काम किया जा सकता है।
अपनी संगीत यात्रा के बारे में Abhinav Rawat बताते हैं कि मुझे बचपन से ही गाने का शौक था। सोशल मीडिया पर वीडियो बनाकर अपलोड करना अच्छा लगता था। 2014-2015 में मेरे पास पहला मोबाइल फोन आया था। मैंने अपनी मां के रोजमर्रा के कामकाज के कई वीडियो बनाए। मैंने होटल मैनेजमेंट कर रखा है। रमाडा, मोती महल जैसे होटलों में काम कर चुका हूं। जब वहां रहते था, तब भी दोस्तों संग महफिल जमाते थे। फिर सोचा घर चलते हैं। वहीं से कुछ किया जाएगा। इसके बाद जो किताबें बंद कर चुका था, उन्हें पढ़ना शुरू किया।
फेसबुक और इंस्टाग्राम पर अभिनव को बहुत लोग फॉलो करते हैं।
वह अक्सर पहाड़ों से वीडियो बनाकर फेसबुक पर अपलोड करते हैं, जिन्हें उनके फैंस हाथों-हाथ लेते हैं। जब हमने इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, मुझे लगता है, जो मुझे अच्छा लग रहा है वह दूसरों को भी अच्छा लगेगा। ईश्वर की कृपा से अब तक ऐसा होता आया है। अभिनव बचपन से ही गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी के प्रशंसक रहे हैं। वह कहते हैं, मैं बचपन से ही नेगी जी को सुनता आ रहा हूं। मेरी मां भी उनकी बहुत बड़ी प्रशंसक थीं। घर में टेप रिकॉर्डर में उनके बजते रहते थे। मैं उनके गीत गुनगुनाते रहता था। उनसे एक लगाव सा हो गया। मेरा सपना था एक दिन उनके साथ फोटो खिंचाऊंगा। पहली बार सोहन चौहान भाई ने जब उनसे मिलाया था, मैं उनके पैरों में गिर पड़ा था। आंख में आंसू आ गए थे। उस वक्त के जज्बात को मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता हूं।
आज उनकी टीम के कोरस में कभी-कभी गाता हूं। लगता ही नहीं, उनके साथ खड़ा हूं। कभी-कभी गलती कर देता हूं। लेकिन वह इतने विनम्र हैं कि कुछ नहीं बोलते हैं। नरेंद्र सिंह नेगी के सबसे पसंदीदा गाने के बारे में पूछने पर कहते हैं, उनके सभी गाने मुझे पसंद हैं। ‘घास काटी कि प्यारी छैला’ अक्सर जुबान पर आ जाता है। यह ज्यादा करीब लगता है। अभिनव इतने कम गीत क्यों रिकॉर्ड कर रहे हैं, इस सवाल के जवाब में वह कहते हैं, उनके कई गीत लाइन में हैं और एक के बाद एक रिलीज होंगे। इन दिनों वह अपने एक गाने की शूटिंग में व्यस्त हैं। इस गीत का डायरेक्शन अब्बू रावत कर रहे हैं। अभिनव को उनके दो गीतों ‘मि पौड़ी कु बैख’ और ‘गीत लगांदि’ से पहचान मिली। उनके गीतों में गुंजन डंगवाल का संगीत होता था। एक हादसे में गुंजन की मौत के बाद उनके कई गीत अधर में लटक गए, लेकिन अब वह इन गीतों को पूरा कर रहे हैं।
गुंजन की असमय मौत से उत्तराखंडी म्यूजिक इंडस्ट्री को लगे झटके के बारे में अभिनव कहते हैं, हम कई दिनों तक स्तब्ध थे। गुंजन के असमय दुनिया से चले जाने से जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई नहीं की जा सकती है। हमको चमका कर एक सितारा, सितारों के पास चला गया।