उत्तराखंड में Election Results वैसे ही रहे हैं, जैसा भाजपा उम्मीद कर रही थी। यहां पार्टी ने हैट्रिक लगाते हुए तीसरी बार सभी 5 सीटें जीती हैं। हरिद्वार से पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत, पौड़ी से अनिल बलूनी और टिहरी से माला राज्यलक्ष्मी शाह ने शानदार जीत दर्ज की है। अल्मोड़ा से अजय टम्टा और नैनीताल लोकसभा से केंद्रीय मंत्री अजय भट्ट रिकॉर्ड मतों से विजयी हुए हैं।
हरिद्वार सीट से जीत दर्ज करने वाले त्रिवेंद्र सिंह रावत के लिए यह जीत कई तरह से खास है। मुख्यमंत्री के पद से हटने के बाद मीडिया और सियासी गलियारों में त्रिवेंद्र सिंह रावत के राजनीतिक भविष्य को लेकर कई तरह के सवाल पूछे जाने लगे थे। एक बड़ा वर्ग ये मान चला था कि उनकी सियासी पारी अब समाप्त हो गई है, लेकिन ‘अकारण’ सीएम पद से हटाये गए त्रिवेंद्र सिंह ने लंबी अनदेखी के बावजूद अपनी सक्रियता कम नहीं होने दी। पार्टी की ओर से भले ही उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी गई, लेकिन उन्होंने खुद कुछ दायित्व संभाल लिए। फिर चाहे प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में पौधे-वृक्षारोपण की मुहिम हो या फिर लोगों को ब्लड डोनेशन और अंग प्रत्यारोपण के प्रति जागरुक करना। इसके दो फायदे हुए, एक तो वह कार्यकर्ताओं से संवादहीनता की स्थिति में नहीं आए और दूसरा केंद्रीय लीडरशिप को यह जताते रहे कि अभी उन्हें लंबी पारी खेलनी है।
उनकी सक्रियता का असर ये हुआ कि लोकसभा चुनाव 2024 के लिए पार्टी ने उन पर भरोसा जताया। यह बात सही है कि त्रिवेंद्र सिंह पौड़ी सीट से लड़ना चाहते थे, क्योंकि वह पहाड़ के लिए ऐसा बहुत कुछ करना चाहते थे, जो सीएम पद से हटने के कारण अधूरा रह गया, लेकिन पार्टी ने उनके सामने हरिद्वार से चुनाव लड़ने का विकल्प रखा। उन्हें पूर्व सीएम और सांसद रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ के बदले चुनाव लड़ने के लिए कहा गया। एक अनुशासित कार्यकर्ता की तरह उन्होंने पार्टी का फैसला माना और हरिद्वार सीट से ताल ठोक दी। उत्तराखंड की अन्य चार सीटों के मुकाबले हरिद्वार थोड़ा ट्रिकी सीट थी…। एक तो यहां कांग्रेस ज्यादा मजबूत थी और दूसरा मुस्लिम बहुल सीटों पर बसपा भी इतिहास में काफी मजबूती से लड़ती रही। वहीं टिकट न मिलने से खफा भाजपा नेताओं को लेकर भी हरिद्वार में काफी खुसर-पुसर सुनने को मिलता। बहरहाल, तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद त्रिवेंद्र सिंह ने सबसे पहले संगठन को भरोसे में लिया और हरिद्वार से चुनाव जीतकर पार्टी के फैसले को सच साबित किया।
हरिद्वार में उनका मुकाबला कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व सीएम हरीश रावत के बेटे वीरेंद्र रावत से था। इसके अलावा बसपा के जमील अहमद और खानपुर से निर्दलीय विधायक समेत 12 अन्य लोग भी मैदान में थे। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 1 लाख 64 हजार से ज्यादा वोटों से हरिद्वार सीट जीती है। उन्हें कुल 6 लाख 53 हजार से ज्यादा वोट मिले। वहीं वीरेंद्र रावत को 4 लाख 97 हजार से ज्यादा वोट मिले। हरिद्वार सीट पर उलटफेर का दम भरने वाले उमेश कुमार 91 हजार वोटों के आसपास ठहर गए। वहीं जमील अहमद को कुल 42 हजार 323 वोट मिले।
हरीश रावत के मैदान में न उतरने से कई लोगों ने यह कहना शुरू कर दिया था कि त्रिवेंद्र सिंह के लिए मुकाबला आसान हो गया है। बावजूद इसके उन्होंने कोई ढिलाई नहीं बरती। वीरेंद्र की दावेदारी को हलके में न लेने का उनका फैसला सही साबित हुआ। वीरेंद्र सिंह को हरिद्वार सीट पर 4 लाख 89 हजार से ज्यादा वोट मिले हैं। एक तरह से इस सीट से हरीश रावत ही चुनाव लड़ रहे थे।
चुनाव के बाद भितरघात और मुकाबला कड़ा होने की थ्योरी भी खूब फिजाओं में तैराई गईं, लेकिन कम मतदान के बावजूद त्रिवेंद्र सिंह हमेशा अपनी जीत को लेकर आश्वस्त दिखे। अपनी जीत से गदगद हरिद्वार के लोगों के नाम एक संदेश में उन्होंने कहा, आज मैं आपके स्नेह और विश्वास से भावनात्मक रूप से अभिभूत महसूस कर रहा हूं। यह जीत मेरे प्रयासों से अधिक आपके सम्मान की जीत है। यह जीत मेरे हौसले से अधिक आपके विश्वास की जीत है। इस कार्यकाल का प्रत्येक क्षण आपकी सेवा में समर्पित रहेगा, ऐसा विश्वास दिलाता हूं।
प्रिय हरिद्वार लोकसभा वासियों,
आज मैं आपके स्नेह और विश्वास से भावनात्मक रूप से अभिभूत महसूस कर रहा हूँ।
यह जीत मेरे प्रयासों से अधिक आपके सम्मान की जीत है। यह जीत मेरे हौसले से अधिक आपके विश्वास की जीत है। इस कार्यकाल का प्रत्येक क्षण आपकी सेवा में समर्पित रहेगा, ऐसा विश्वास… pic.twitter.com/1o88itzcep— Trivendra Singh Rawat ( मोदी का परिवार) (@tsrawatbjp) June 4, 2024