वर्ष 2022 में NCRB यानी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की एक रिपोर्ट आई थी। इसमें पर्यावरणीय अपराधों में उत्तराखंड नंबर एक की पोजिशन पर था। पर्यावरणीय अपराध का आशय उस प्रत्येक कार्य से है जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है। जैसा कि होता आया है, इस रिपोर्ट को गंभीरता से नहीं लिया गया। इसका परिणाम अब सामने दिखने लगा है। इस गर्मी के मौसम में मैदान तो तप ही रहे हैं, पहाड़ भी इससे अछूते नहीं रह पाए हैं। आलम यह है कि ग्लेशियर पिघलने लगे हैं। नदियों का जलस्तर बढ़ने लगा है। अलकनंदा और मंदाकिनी नदी का जलस्तर बढ़ने से रुद्रप्रयाग में नमामि गंगे परियोजना के तहत बने सभी घाट जलमग्न हो गए हैं। तेज वेग से बह रहीं दोनों नदियों का जलस्तर मई में ही बरसात के मौसम जैसा हो गया है।
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मैदानी इलाकों में जहां तापमान 43 डिग्री को छू रहा है वहीं, पहाड़ी क्षेत्रों में पारा 38 पार कर रहा है। हिमालयी राज्य के लिए यह तापमान काफी मायने रखता है। पर्यावरण वैज्ञानिक इसको खतरनाक संकेत मान रहे हैं। केदारघाटी के गुप्तकाशी, ऊखीमठ, फाटा, सोनप्रयाग और गौरीकुंड में चटक तेज धूप से आमजन और यात्री परेशान हो रहे हैं। गुप्तकाशी के एक वयोवृद्ध बताते हैं कि पहली बार पहाड़ के ऊपरी क्षेत्रों में सूरज की तपन असहनीय हो रही है। इनका कहना है कि पर्यटन और तीर्थाटन के नाम पर पहाड़ में जो मानव जाम लग रहा है वह गर्मी बढ़ने का प्रमुख कारण है। वातानुकूलित होटल, रेस्टोरेंट, लॉज के निर्माण से पहाड़ की ठंडक खत्म हो रही है।
जंगलों की आग से घटी आर्द्रता
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विवि के उच्च शिखरीय पादप शोध संस्थान के निदेशक डॉ. विजयकांत पुरोहित का कहना है कि इस वर्ष गर्मी अपने चरम पर है। यह प्रकृति और पर्यावरण के लिए अच्छा संकेत नहीं है। शीतकाल में पर्याप्त बारिश व बर्फबारी नहीं होने और जंगलों की आग से वातावरण में आर्द्रता कम हो गई है। इस कारण गर्मी का प्रकोप बढ़ रहा है। गर्मी बढ़ने से ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं जिससे नदियों का जलस्तर तेजी से बढ़ रहा है।
केदारनाथ में बदला है मौसम का मिजाज
11750 फीट की ऊंचाई पर स्थित केदारनाथ में भी इस बार मौसम का मिजाज बदला हुआ है। यहां सुबह 9 बजे के बाद धूप की तपन तेज हो रही है। दोपहर तक तापमान 15 से 18 डिग्री तक पहुंच रहा है। गढ़वाल मंडल विकास निगम के कर्मचारी गोपाल सिंह रौथाण ने मीडिया को बताया कि तीर्थयात्री बता रहे हैं कि केदारनाथ में धूप की तपन मैदानी क्षेत्रों से ज्यादा महसूस हो रही है। कई तीर्थयात्री जो पिछले वर्षों में दर्शन के लिए आए थे बताते है-बीते वर्ष की तुलना में इस बार केदारनाथ में मौसम काफी बदला हुआ है। बारिश नाममात्र हो रही है और रात को भी ठंड का असर ज्यादा नहीं है।
पर्यावरण संरक्षण कानूनों की उड़ाई जा रही धज्जियां
देवभूमि में आपराधिक घटनाओं के लिहाज से देश के सबसे शांतिप्रिय राज्यों में एक माना जाता है। मगर, जब बात पर्यावरणीय कानूनों की आती है तो हालात ठीक उलट दिखाई देते हैं। यहां पर्यावरण संरक्षण को लेकर बनाए गए नियमों की जमकर धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। इसीलिए उत्तराखंड देश में पर्यावरणीय अपराधों में अव्वल दिखाई देता है। हिमालयी राज्यों में तुलनात्मक रूप से तो देवभूमि के हालात और गंभीर दिखाई देते हैं।
उत्तराखंड के लिए पर्यावरण एक बहुमूल्य संपदा है। यही कारण है कि पर्यावरण संरक्षण को लेकर राज्य सरकार, केंद्र से ग्रीन बोनस की मांग भी करता रहा है। इसका मकसद राज्य द्वारा बहुमूल्य पर्यावरणीय संपदा का दोहन न करते हुए इसके संरक्षण के एवज में क्षतिपूर्ति लेना है। लेकिन पर्यावरण के संरक्षण और संवर्धन में उत्तराखंड में जो स्थितियां मौजूदा वक्त में है उसे अच्छा नहीं कहा जा सकता है।
उत्तराखंड में वर्ष 2021 में पर्यावरणीय अपराध के 912 केस दर्ज किए गए थे। जबकि, 2020 में 1271 और 2019 में 96 मामले दर्ज हुए थे। NCRB रिकॉर्ड के मुताबिक, उत्तराखंड हिमालयी राज्यों में पहले स्थान पर है। जबकि, देश में छठे स्थान पर है।