उत्तराखंड सरकार दिसंबर के पहले पखवाड़े में होने वाले इन्वेस्टर समिट की तैयारियों में जुटी हुई है। इस इन्वेस्टर समिट से 2.5 लाख करोड़ का निवेश जुटाने का लक्ष्य है। उत्तराखंड सरकार ने निवेश को जुटाने की शुरुआत काफी पहले से कर दी थी। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अलग-अलग देशों का दौरा कर वहां निवेश के करार किए। सिर्फ यही नहीं, अलग-अलग राज्यों में भी निवेशकों से संवाद किया गया। महिंद्रा ग्रुप समेत कई बड़े उद्योग घरानों ने उत्तराखंड में निवेश करने में रुचि दिखाई है। महिंद्रा ग्रुप ने तो 1000 करोड़ के समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर भी कर दिए हैं। इन्वेस्टर समिट में उद्योगपतियों के रुझान से ये भरोसा तो होता है कि सरकार निवेश के लक्ष्य को हासिल करने के प्रति गंभीर है।
उत्तराखंड के अब तक के अनुभव को देखते हुए आगामी इनवेस्टर्स समिट को लेकर कई तरह के सवाल जेहन में उठते हैं। क्या सिर्फ निवेश लक्ष्य हासिल करना निवेश की गारंटी हो जाएगा? क्या ये इन्वेस्टर समिट राज्य के कर्ज के बोझ को कम कर सकेगा? सबसे अहम सवाल तो ये है कि क्या ये लाखों करोड़ों का निवेश पहाड़ चढ़ पाएगा? इन सभी सवालों का जवाब जानने के लिए सबसे पहले हमें उत्तराखंड की आर्थिक स्थिति को समझना होगा।
उत्तराखंड का ‘अर्थ’शास्त्र
उत्तराखंड का वित्त वर्ष 2022-23 का आर्थिक सर्वेक्षण बताता है कि राज्य की अर्थव्यवस्था अब मजबूत स्थिति में है। 2022-23 में उत्तराखंड का सकल घरेलू उत्पाद 3.02 लाख करोड़ रहने का अनुमान लगाया गया है। वहीं, आर्थिक विकास की दर 7.08% रहने का अनुमान है। वहीं, प्रति व्यक्ति आय में भी बढ़ोतरी का अनुमान है। 2022-23 में इसके 2.33 लाख रहने का अनुमान है। आर्थिक सर्वेक्षण बताता है कि उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था कृषि, बागवानी, पशुपालन, वन, खनन, विनिर्माण, निर्माण, व्यापार, होटल एवं रेस्त्रां समेत अन्य कई क्षेत्रों पर निर्भर है। इन क्षेत्रों में जब भी कोई उतार-चढ़ाव आता है तो राज्य की अर्थव्यवस्था पर असर देखने को मिलता है। इन आंकड़ों से उत्तराखंड अर्थव्यवस्था की स्थिति मजबूत दिखती है। राज्य सरकार ने भी अर्थव्यवस्था को अगले 5 सालों में 5.5 लाख करोड़ की बनाने का लक्ष्य रखा है यानि कि 15% सीएजीआर हासिल करने का लक्ष्य।
अब तक का हासिल
2 लाख करोड़ का करार
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के मुताबिक सरकार ने देश और विदेश में ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट से पहले 2 लाख करोड़ का करार कर लिया है। सिर्फ हरिद्वार और देहरादून के उद्यमियों के साथ 37 हजार करोड़ के एमओयू साइन किए गए हैं।
कम होगी बढ़ते कर्ज की चुनौती?
वर्तमान परिदृश्य में उत्तराखंड की इकोनॉमी बेहतर स्थिति में नजर आती है। एक तरफ सरकार के लक्ष्य सकारात्मक तस्वीर पेश करते हैं, वहीं दूसरी तरफ राज्य पर बढ़ता कर्ज का बोझ चिंता खड़ी करता है। उत्तराखंड पर अगले साल के अंत तक कर्ज का बोझ राज्य के बजट के बराबर होने की आशंका जताई जा रही है। इस साल उत्तराखंड सरकार ने 77 हजार 400 करोड़ का बजट पेश किया। विधानसभा में सरकार की तरफ से जो वार्षिक वित्तीय विवरण रखा गया, उसके मुताबिक 31 मार्च, 2024 तक राज्य पर कर्ज का कुल बोझ भी 77 हजार करोड़ के करीब पहुंच जाएगा। मौजूदा स्थिति देखें तो इसका आंकड़ा 68 हजार 844 करोड़ हो चुका है। दूसरे राज्यों के मुकाबले बेहतर स्थिति में आने के लिए राज्य के सामने कर्ज बड़ी चुनौती है। इसीलिए सरकार को कर्ज कम करने पर फोकस करने की जरूरत है। अब सवाल उठता है कि क्या इन्वेस्टर समिट इसमें कुछ मदद कर पाएगा? तो जवाब है ‘हां’।
निवेश घटाएगा दबाव
इस इन्वेस्टर समिट में उत्तराखंड सरकार ने 12 से ज्यादा सेक्टर को निवेश के लिए खोला है। इसमें टूरिज्म के साथ ही एनर्जी सेक्टर भी अहम है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी उत्तराखंड को ऊर्जा क्षेत्र में आगे लेकर जाना चाहते हैं। यही वजह है कि इस क्षेत्र में इस बार काफी ज्यादा फोकस किया जा रहा है। ये इन्वेस्टर समिट राज्य के कर्ज के बोझ को कम कर सकता है। सरकार को अगर प्रभावी और असरदार सेक्टर्स में निवेश ज्यादा मिलता है तो इससे राज्य की जीडीपी की रफ्तार बढ़ेगी। इससे इकोनॉमी मजबूत होगी और कर्ज का बोझ भी कम होगा। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि जितने एमओयू पर साइन हो रहे हैं वो जमीन पर भी उतरें। एमओयू अगर जमीन पर निवेश के तौर पर उतरते हैं तो इससे ना सिर्फ कारोबार के बल्कि रोजगार के मौके बढ़ेंगे। जब भी राज्य में नया निवेश आता है तो फैक्ट्रियां लगती हैं। प्रोडक्शन, मैन्युफैक्चरिंग समेत कई तरह के काम शुरू होते हैं। इन कामों की पूर्ति के लिए नौकरी के मौके निकलते हैं और लोगों को रोजगार मिलता है।
कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) के मुताबिक 2023 की पहली छमाही में उत्तराखंड से रोजगार का आंकड़ा काफी बेहतर रहा है। रिपोर्ट में फॉर्मल सेक्टर से जुड़ने वाले कर्मचारियों के आंकड़े दिए गए हैं। इसके मुताबिक देश के कुल डाटा में उत्तराखंड का 28.6% योगदान है। यानी कि उत्तराखंड से 28.6% लोग फॉर्मल सेक्टर से जुड़े। फॉर्मल सेक्टर के कर्मचारियों की जॉब के मामले में उत्तराखंड पहली छमाही में दूसरे नंबर पर रहा है।
ईपीएफओ का डाटा साफ कहता है कि उत्तराखंड में स्थिति रोजगार के मामले में काफी बेहतर है। पिछले कुछ सालों से उत्तराखंड में बेरोजगारी दर में गिरावट नजर आती रही है, जो अभी तक कम से कम जारी है। अब जब निवेश बढ़ेगा तो उम्मीद है कि रोजागर की स्थिति और भी बेहतर होगी। उत्तराखंड में नए रोजगार के मौके बढ़ेंगे। हालांकि इसके लिए वही शर्त लागू होती है कि जो एमओयू साइन हों तो वो लागू भी हो जाएं।
मौजूदा मुख्यमंत्री के पास इस इन्वेस्टर समिट को बेहतर बनाने के लिए एक उदाहरण है। 2018 में उत्तराखंड सरकार ने पहला इन्वेस्टर समिट किया था। दो दिन चले इस इन्वेस्टर समिट में तत्कालीन सरकार ने 1 लाख 20 हजार करोड़ रुपये का निवेश जुटाया था। इस दौरान कुल 601 निवेश प्रस्तावों के एमओयू पर हस्ताक्षर हुए। इस निवेश से प्रदेश में 3.50 लाख लोगों को सीधा रोजगार मिलने की संभावनाएं जताई गईं।
2018 का इन्वेस्टर समिट कितना सफल?
त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार में हुए इन्वेस्टर समिट में 1.20 लाख करोड़ का निवेश जुटाया गया था लेकिन इसमें से सितंबर 2022 तक महज 35,000 करोड़ का निवेश ही राज्य में हो पाया। खुद राज्य सरकार ने ये डाटा पेश किया है। राज्य सरकार ने बताया कि उसने 2018 के इन्वेस्टर समिट में हुए निवेश को फॉलोअप किया और करीब 70 छोटी-बड़ी कंपनियों ने उत्तराखंड में निवेश किया है। सरकार ने इससे उम्मीद जताई कि वह करीब 90 हजार रोजगार उपलब्ध करा पाएगी। 1.20 लाख करोड़ के आंकड़े के सामने वैसे तो 35 हजार करोड़ का आंकड़ा ज्यादा बड़ा नजर नहीं आता। हालांकि यहां पर हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि 2018 में हुए 600 से ज्यादा एमओयू में कई ऐसे भी प्रपोजल शामिल हैं जिनका निवेश लंबी अवधि में नजर आएगा। ऐसे में यह कहना गलत होगा कि 2018 का इन्वेस्टर समिट पूरी तरह से विफल रहा है। पिछला इन्वेस्टर समिट निवेश तो लाया है और आगे भी संभवत: लाता रहेगा लेकिन 2018 के बाद अब 2023 में एक और इन्वेस्टर समिट किया जा रहा है। यहां पर एक सवाल जरूर बनता है कि क्या सरकार को पहले 2018 के निवेश प्रस्तावों को भुनाने पर फोकस नहीं करना चाहिए? ये सवाल इसलिए क्योंकि इन्वेस्टर समिट में जो भी प्रस्ताव सरकार को मिलते हैं, वह सरकारी विभाग की तरफ से फॉलोअप करने जरूरी होते हैं। नए इन्वेस्टर समिट में नए इन्वेस्टमेंट प्रपोजल आएंगे। ऐसे में पुराने प्रपोजल को भुला दिए जाने की आशंका भी बढ़ जाती है।
ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि धामी सरकार ने पिछले इन्वेस्टर समिट की समीक्षा के बाद एक बेहतर रणनीति बनाई है और इस समीक्षा में उसने पिछले इन्वेस्टर समिट की कमियों को सुधारने का इंतजाम कर दिया होगा। इस बार के इन्वेस्टर समिट में पहले के इन्वेस्टर समिट या किसी दूसरे राज्यों के समिट से क्या अलग और अनोखा होता है? ये दिसंबर में इन्वेस्टर समिट निपटने के बाद ही पता चलेगा।
(अतुल्य उत्तराखंड के लिए विकास जोशी)