उपराष्ट्रपति पद के लिए एनडीए उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन क्रिकेट और बॉलीबॉल खेल के शौकीन हैं। वह अब भी क्रिकेट मैच बड़े चाव से देखते हैं। रविवार को उनके नाम की घोषणा के साथ ही वह सोशल मीडिया पर खूब सर्च किए जा रहे हैं। आइए, उनके बारे में विस्तार से जानते हैं…
सीपी राधाकृष्णन का जन्म तमिलनाडु के तिरुपुर में 20 अक्तूबर, 1957 को हुआ था। ओबीसी समुदाय से आने वाले 67 वर्षीय राधाकृष्णन वर्तमान में महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं। इससे पहले वह करीब डेढ़ साल तक झारखंड के राज्यपाल रहे। झारखंड की जिम्मेदारी संभालते हुए राधाकृष्णन को तेलंगाना का राज्यपाल और पुडुचेरी का उपराज्यपाल का अतिरिक्त प्रभार भी सौंपा गया था।
सीपी राधाकृष्णन ने बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में स्नातक की पढ़ाई की। 16 साल की उम्र में वह आरएसएस के स्वयंसेवक के तौर पर सार्वजनिक जीवन में आए और 1974 में भारतीय जनसंघ की तमिलनाडु कार्यकारिणी में शामिल हुए। साल 1996 में उन्हें तमिलनाडु भाजपा का प्रदेश महासचिव बनाया गया। वह 1998 में कोयंबटूर से पहली बार लोकसभा पहुंचे और 1999 में दोबारा चुने गए। हालांकि, इसके बाद उन्हें लगातार तीन बार लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। सांसद रहते हुए उन्होंने कपड़ा मामलों की स्थायी समिति के अध्यक्ष के तौर पर काम किया और कई अहम संसदीय समितियों के सदस्य भी रहे।
राधाकृष्णन साल 2004 में संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करने वाले भारतीय संसदीय दल का हिस्सा बने। वह ताइवान जाने वाले पहले संसदीय प्रतिनिधिमंडल के सदस्य भी रहे। वह 2004 से 2007 तक तमिलनाडु भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे। इस दौरान उन्होंने सभी भारतीय नदियों को जोड़ने, आतंकवाद को मिटाने, समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू करने, छुआछूत खत्म करने और नशे के खतरे से निपटने जैसी मांगों को लेकर 93 दिनों में 19 हजार किलोमीटर की रथ यात्रा निकाली।
राधाकृष्णन को 2016 में कोच्चि के जूट बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। उनके नेतृत्व में जूट निर्यात 2,532 करोड़ रुपये के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा। साल 2020 से 2022 तक वह केरल में भाजपा के अखिल भारतीय प्रभारी रहे। फरवरी 2023 में झारखंड के राज्यपाल बने और शुरुआती चार महीनों में ही 24 जिलों का दौरा किया। वह खेलों में भी सक्रिय रहे। क्रिकेट और वॉलीबॉल का भी उन्हें शौक है। वह अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, जापान और चीन समेत कई देशों की यात्रा कर चुके हैं।
दक्षिण भारत पर नजर
सियासी जानकार मानते हैं कि सीपी राधाकृष्णन को सामने लाकर भाजपा ने कई दांव साधे हैं। वे धनखड़ से अलग नरम स्वभाव के नेता हैं और दक्षिण भारत में बीजेपी के विस्तार की रणनीति का हिस्सा हैं। राधाकृष्णन का जनसंघ और आरएसएस से गहरा नाता है। इससे बीजेपी आरएसएस फैक्टर को भी साध पाएगी। धनखड़ की तुलना में वह एकदम अलग मिजाज के हैं। राधाकृष्णन दक्षिण भारत के अनुभवी नेता हैं, जिनका जनसंघ और आरएसएस से गहरा नाता है। धनखड़ की मुखर और टकराव भरी शैली के उलट राधाकृष्णन का स्वभाव नरम और सबको जोड़े रखने वाला है। यह बदलाव बीजेपी की रणनीति में एक बड़े चेंज की ओर इशारा करता है।
धनखड़ का चयन 2022 में जाट आंदोलनों के बीच हुआ था। यह जाट समुदाय को यह संदेश देने की कोशिश थी कि उनकी आवाज सुनी जा रही है। वहीं, राधाकृष्णन का चयन ओबीसी समुदाय और दक्षिण भारत में बीजेपी के विस्तार की रणनीति को दिखाता है। कर्नाटक को छोड़कर, दक्षिण में बीजेपी को अब तक मजबूत जमीन नहीं मिली है। राधाकृष्णन ने तमिलनाडु में डीएमके की आलोचनाओं का जवाब सूझबूझ से दिया है। हाल ही में उन्होंने मुख्यमंत्री एमके स्टालिन से सियासी मुलाकात की। उदयनिधि स्टालिन के सनातन धर्म वाले बयान पर उन्होंने नरमी से जवाब दिया और उन्हें ‘बच्चा’ कहकर टिप्पणी को खारिज कर दिया था। महाराष्ट्र में भी उन्होंने विवादित पब्लिक सिक्योरिटी बिल पर विपक्ष की याचिका को संभाला था, लेकिन उनके एक्शन्स उनकी वैचारिक निष्ठा और अनुभव पर आधारित थीं।
आरएसएस से गहरा नाता
धनखड़ का आरएसएस से कोई गहरा रिश्ता नहीं था। उनके लिए कहा जाता है कि वह एक व्यवहारिक सियासी चेहरा थे। दूसरी ओर, राधाकृष्णन 17 साल की उम्र से जनसंघ और आरएसएस से जुड़े रहे हैं। उनकी वैचारिक जड़ें बीजेपी के लिए अहम हैं। धनखड़ की तीखी और कानूनी दलीलें संसद में सहमति बनाने में मुश्किल पैदा करती थीं। राधाकृष्णन का चयन संसद के सुचारु संचालन के लिए एक संतुलित व्यक्तित्व की जरूरत को दिखाता है। वह सियासी बोझ से मुक्त हैं और विपक्ष उन्हें सहमति वाला उम्मीदवार मान सकता है। जहां धनखड़ की सियासत जाति और क्षेत्र तक सीमित थी, राधाकृष्णन राष्ट्रीय समावेशिता का प्रतीक हैं।