उत्तराखंड के सुप्रसिद्ध लोक गायक, गीतकार, निदेशक व नाटककार जीत सिंह नेगी की जयंती पर उत्तराखंड लोक-भाषा साहित्य मंच की ओर से दिल्ली में एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया। उत्तराखंड लोक-भाषा साहित्य मंच दिल्ली के संयोजक दिनेश ध्यानी ने कहा कि वैसे तो कई दस्तावेजों में जीत सिंह नेगी जी की जयंती 2 फरवरी 1925 लिखी है पर कुछ में 1927 लिखी है। ये आयोजन स्वर्गीय जीत सिंह नेगी जी की शताब्दी जयंती की शुरुआत है। उन्होंने घोषणा करते हुए कहा कि वर्ष 2027 में देहरादून में एक विशाल आयोजन किया जाएगा और उसी वर्ष से जीत सिंह नेगी जी के नाम पर मंच लोक संस्कृति कला सम्मान की भी शुरुआत होगी। ध्यानी ने कहा कि जीत सिंह नेगी जी की जीवनी उत्तराखंड के स्कूलों में पढ़ाई जाए इसके लिए हम सरकार से बात करेंगे।
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गढ़वाली कुमाऊनी, जौनसारी भाषा अकादमी के पूर्व उपाध्यक्ष मनबर सिंह रावत, उत्तराखंड लोक-भाषा साहित्य मंच दिल्ली के संरक्षक डॉ. विनोद बछेती, साहित्यकार व चिट्ठी पत्री का संपादक मदन मोहन डुकलाण, गढ़वाल अध्ययन प्रतिष्ठान के अध्यक्ष उपन्यासकार रमेश चन्द्र घिल्डियाल सरस, युवा कवि आशीष सुन्दरियाल, जीत सिंह नेगी की सुपुत्री मधु नेगी, पौत्री ऋतिका नेगी, संगीतकार व गायक कृपाल सिंह रावत, मनोरमा तिवारी भट्ट, सर्वेश बिष्ट, कुमारी पलछिन रावत आदि लोगों ने नेगी जी को संस्मरणों व उनके गीतों को गाकर उन्हें याद किया।
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उत्तराखंड लोक-भाषा साहित्य मंच, दिल्ली के संरक्षक डॉ विनोद बछेती ने इस आयोजन को ऐतिहासिक पहल बताते हुए कहा कि हम लोगों को जीत सिंह नेगी के गीतों व उनके कामों को नई पीढ़ी को सम्प्रेषित करने पड़ेंगे। कहा कि जब देश आजाद भी नहीं हुआ था उस जमाने में नेगी ने गढ़वाली गीत, नाटकों को गांवों और शहरों से लेकर देश, विदेश तक मंचों के माध्यम से लोगों तक पहुंचाया। जीत सिंह नेगी ने आजादी से पूर्व लगभग सन् 1944 से देश के बाहर वर्तमान म्यांमार (वर्मा/रंगून ) से ग्रामोफोन में गीत रिकॉर्ड करके गढ़वाली गीतों को नया आयाम दिया।
गढ़वाली-कुमाउनी -जौनसारी अकादमी का पूर्व उपाध्यक्ष मनबर सिंह रावत ने कहा कि जिस काम का बेड़ा सांस्कृतिक संगठनों को उठाना चाहिए था उसे उत्तराखंड लोक-भाषा साहित्य मंच लगातार भाषाई सरोकारों व संस्कृति कर्मियों को याद कर उठा रहा है। वरिष्ठ उपन्यासकार गढ़वाल अध्ययन प्रतिष्ठान के अध्यक्ष रमेश चन्द्र घिल्डियाल ने कहा कि वे लोक के पहले गीतकार, लोकगायक, नाटककार, फिल्म निर्देशक थे जो विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। वहीं, चिट्ठीपत्री के संपादक वरिष्ठ साहित्यकार मदन मोहन डुकलाण ने कहा कि ये हमारा सौभाग्य है कि हमने सन 80 के दशक में उनके साथ मंच साझा किया। उनकी लोक संस्कृति विरासत पर शोध करने चाहिए।
युवा कवि आशीष सुदरियाल ने कहा, नाटक हमको उस समय की सामाजिक परिस्थिति व परिवेश को समझने का मौका देते हैं। जीत सिंह नेगी की सुपुत्री मधु नेगी ने कहा कि हमने संगीत व नाटकों की पहली शिक्षा अपने पिताजी से ली, हमें उनपर गर्व है। जीत सिंह नेगी की पौत्री फिल्म मेकर, लेखिका ऋतु नेगी ने कहा कि हम उम्मीद करते है कि ऐसे आयोजन होने से नई पीढ़ी को अपने पुरखों को समझने में मदद मिलेगी।
वरिष्ठ रंगकर्मी साहित्यकार दर्शन सिंह रावत ने बताया कि नेगी जी का जन्म 2 फरवरी 1925 पौड़ी गढ़वाल के पैडलस्यूं के अयाल गांव के सुल्तान सिंह नेगी व रूपदेयी नेगी के घर हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा पौडी गढ़वाल (भारत), मेम्यो (वर्तमान, म्यांमार) लाहौर (पाकिस्तान) जैसे अलग-अलग जगहों पर हुई क्योंकि उनके पिताजी फौज में कार्यरत थे। जीत सिंह नेगी ने अपने गीत-संगीत की शुरुआत 1940 के दशक के लगभग की। वह ऐसे पहले गढ़वाली गायक थे जिनके छह गढ़वाली लोक गीतों का संकलन 1949 में बॉम्बे की यंग इंडिया ग्रामोफोन कंपनी द्वारा ग्रामोफोन पर रिकॉर्ड हुए थे। 1940 के दशक में गढ़वाली भाषा और भावनाओं को आवाज देने वाले पहले व्यक्ति थे। उन्होंने नेशनल ग्रामोफोन कंपनी, मुंबई में डिप्टी म्यूजिक डायरेक्टर के रूप में भी काम किया । जीत सिंह नेगी जी ऐसे पहले गढ़वाली लोकगायक थे जिनका गाना पहली बार ऑल इंडिया रेडियो से 1950 के दशक में प्रसारित हुआ तो उत्तराखंड से लेकर देश के महानगरों तक प्रवासी उत्तराखंडियों के बीच बहुत लोकप्रिय हुआ। ‘तू होली उंचि डांड्यूं मा बीरा-घसियारी का भेष मां-खुद मा तेरी सड़क्यां-सड़क्यों रूणूं छौं परदेश मा…।
रावत ने बताया कि नेगी जी के नाटक भारी भूल का मंचन पहली बार 1952 में गढ़वाल भ्रातृ मंडल के कार्यक्रम में दामोदर हॉल, मुंबई में हुआ। जीत सिंह नेगी ने भारी भूल की संकल्पना, लेखन, निर्देशन व मंच संचालन किया था। उनके द्वारा रचित मलेथा की कूल वह ऐतिहासिक नाटक था जो गढ़वाली साम्राज्य के सेनाध्यक्ष, तिब्बत विजेता योद्धा अर बहादुर भड़ गजेंद्र सिंह भंडारी के पिता माधो सिंह द्वारा निर्मित मलेथा नहर पर आधारित है। वहीं जीतू बगड्वाल, गढ़वाल की लोककथाओं में प्रसिद्ध है।
पर्वतीय मंच दिल्ली ने 1956 में जीत सिंह नेगी द्वारा परिकल्पित व रचित हिंदी नाटक रामी बौराणी का मंचन किया था। टैगोर शताब्दी वर्ष के अवसर पर, रामी गढ़वाली संगीत नाटक (गीत नाटिका) का मंचन पहली बार 1961 में नरेंद्र नगर में हुआ था। राजू पोस्टमैन यह एक धाबड़ी गढ़वाली नाटक है। इसके संवाद हिंदी व गढ़वाली मिश्रित है। धाबड़ी नाटक का मंचन सबसे पहले राजू पोस्टमैन गढ़वाल सभा चंडीगढ़ न किया। इन सब नाटकों का मंचन दर्जनों बार देश के विभिन्न छेत्रों में हुआ।
जीत सिंह नेगी का निधन 21 जून, 2020 देहरादून, धरमपुर में उनके निवास पर हुआ। उनके जाते ही लोक विधाओं के एक युग का अंत हो गया लेकिन उनके गीत, नाटक व लोक की बिरासत सदियों तक जिंदा रहेगी।