Digital Arrest को पूरी तरह समझने से पहले इन तीनों केसों को पढ़िए…
केस -एक
31 जुलाई 2024 डालनवाला क्षेत्र स्थिति मॉडल कॉलोनी के एक घर में एक महिला के मोबाइल पर एक फोन आया। दोपहर का समय था। फोन करने वाले ने महिला से कहा-आपने एक कुरियर थाईलैंड के लिए बुक कराया है। इसमें कुछ गड़बड़ी है। इसलिए रोक दिया गया है। चूंकि, महिला ने कुछ दिनों पहले एक कुरियर बुक कराया था। इसलिए वह फोन करने वालों की बातों में आई। उसने कहा, बहुत गड़बड़ है, इसमें गैरकानूनी चीजें हैं। इस मामले में आपको जेल हो सकती है। मामला पुलिस तक पहुंच चुका है। मैं मुंबई क्राइम ब्रांच को कॉल ट्रांसफर कर रहा हूं। आपको वीडियो कॉल से जोड़ा जा रहा है। इसके बाद महिला को एक वीडियो कॉल से जोड़ दिया गया। सामने पुलिस की वर्दी पहने एक शख्स दिखा। उसने कहा, कुरियर आपके नाम से ही बुक है। आपसे पूछताछ की जा रही है। यह ऑफिशियल है। इसलिए आपको सही-सही जवाब देने होंगे। नहीं तो आपके मुकदमे में गुमराह करने की धारा अलग से जोड़ दी जाएगी। इसके बाद महिला से वीडियो कॉल पर 30 घंटे तक पूछताछ की गई। इस दौरान वीडियो कॉल पर कई लोग आए। खास बात यह थी सब के सब पुलिस की वर्दी में थे। जहां से कॉल की जा रही थी वहां का सेटअप भी थाने जैसे ही था। महिला को बार-बार मुंबई क्राइम ब्रांच बुलाने की धमकी दी जा रही थी। जब महिला परेशान हो गई तो पूछताछ करने वाले एक व्यक्ति ने कहा कि वह उसे बचा सकता है। लेकिन, उसे 10 लाख 50 हजार रुपये देने होंगे। लगातार पूछताछ से डरी महिला इसके लिए तैयार हो गई। उसने रुपये ट्रांसफर कर दिए। कुछ घंटे बाद महिला को लगा कि उसके साथ ठगी हो गई। तब उसने पुलिस स्टेशन पहुंचकर एफआईआर दर्ज कराई। पुलिस ने जांच की तो पता चला कि साइबर ठगों ने जिस खाते में रुपये ट्रांसफर कराए थे वह कानपुर में है। साथ ही यह भी पता चला कि महिला ने कुछ दिनों पहले एक कुरिअर किया था। जिसका डाटा ठगों ने चोरी कर लिया। इसलिए महिला डर गई थी।
केस – 2
देहरादून में कोतवाली पटेल नगर निवासी सेवानिवृत्त शिक्षक महिपाल के मोबाइल पर 9 सितंबर को एक फोन आया। बुजुर्ग शिक्षक के हैलो, बोलते ही सामने से आवाज आई-मैं विनोय कुमार चौबे, मुंबई साइबर क्राइम ब्रांच से। बुजुर्ग हकबका गए। विनोय ने कहा, आपसे एक मुकदमे के सिलसिले में बात करनी है। इसके लिए आपको वीडियो कॉल पर आना होगा। इसके बाद कुछ सेकेंड के बाद मोबाइल पर वीडियो कॉल की गई। यहां पर खुद को विनोय कुमार चौबे बताने वाल शख्स पुलिस की वर्दी में बैठा दिखा। उसने कहा-आपके आधार कार्ड और मोबाइल नंबर से 20 लाख रुपये का लेनदेन हुआ है। जिनसे लेनदेन हुआ है, उनकी गतिविधियां संदिग्ध है। इस वजह से आपके नाम अरेस्ट वारंट निकला है। बुजुर्ग ने बचाव के लिए उपाय पूछा। सामने से बताया कि आपको लगातार हमारी निगरानी में रहना होगा। कहीं बाहर न जाएं। साथ ही किसी भी सदस्य से बातचीत न करें। चूंकि, यह जांच गोपनीय है इसलिए इस बारे में किसी को भी न बताएं,नहीं तो आपकी मुसीबत बढ़ जाएगी। हर तीन घंटे में व्हाट्सएप पर मौजूदगी के मैसेज करने होंगे। उसके बाद 10 सितंबर को विनोय कुमार नाम ने फिर फोन किया। कहाकि आपको हमारे सीनियर पुलिस अधिकारी आकाश कुल्हारी से बात करनी होगी। इस दौरान उसने बुजुर्ग को नोटिस और कोर्ट के दस्तावेज भी भेजे। इस बीच बुजुर्ग से उनके सभी बैंक खातों की जानकारी भी ली गई। इसके बाद 11 सितंबर से 17 सितंबर के बीच ठगों के खातों में पीड़ित ने दो करोड़ 27 लाख रुपए ट्रांसफर कर दिए। उसके बाद साइबर ठगों ने और धनराशि जमा करने के लिए कहा तो तब बुजुर्ग को अपने साथ ठगी का अहसास हुआ। यानी, नौ दिनों तक साइबर ठगों ने बुजुर्ग को डिजिटल अरेस्ट किए रहे। इस बीच दो करोड़ 27 लाख रुपये अपने खातों में ट्रांसफर करा लिए।
केस -तीन
प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाला देहरादून निवासी उदय शर्मा के पास 24 अगस्त की रात एक फोन आया। सामने वाले ने कहा कि आपके नाम से आए एक कुरियर को कस्टम विभाग ने पकड़ा है। फोन करने वाले ने खुद को दिल्ली पुलिस की साइबर सेल का कर्मचारी बताया। कहा कि इसमें अवैध पासपोर्ट व प्रतिबंधित नशे की सामग्री है। कस्टम विभाग ने कुरियर जांच के लिए साइबर थाने को भेजा है। इसी सिलसिले में तुमसे बात करनी है। अगर तुम जांच में सहयोग नहीं किया तो तुम्हारे नाम अरेस्ट वारंट जारी कर गिरफ्तार कर लिया जाएगा। एक बार गिरफ्तार हो गए तो तुम्हारा करियर चौपट हो जाएगा। उदय बुरी तरह डर गया। उसे कहा गया कि किसी से बात न करना अगर किसी का फोन आता भी है तो इस बारे में न बताना नहीं तो केस ओपन हो जाएगा। तब तुम्हारे बचने की संभावना बिल्कुल भी खत्म हो जाएगी। वीडियो कॉल पर कई लोग उदय के सामने आए। सब पुलिस की वर्दी में थे। बैकग्राउंड भी पुलिस स्टेशन वाला था। सबके बात करने का लहजा भी सख्त था। उदय के खाते में माता-पिता के पैसे थे। ठगों ने कुल 2 लाख 38 हजार रुपये बैंक खातों में ट्रांसफर करा लिए। कुछ घंटों बाद छात्र को एहसास हुआ कि उसके साथ ठगी की गई है।
महिला, बुजुर्ग और प्रतियोगी छात्र। नजीर के तौर पर दिए गए मामलों में यह तीन लोग पीड़ित हैं। यानी, साइबर ठगों के निशाने में हर वर्ग, हर उम्र के लोग हैं। इसमें एक बात आपको खटक रही होगी कि प्रतियोगी छात्र कैसे इन ठगों के झांसे में आ गया। वह तो पढ़ने लिखने वाला युवक था। इन चीजों से वाकिफ था। उसे कैसे झांसा दिया जा सकता है। महिला, जिसे कहा कि आपके नाम थाईलैंड के लिए एक पार्सल बुक है आखिर वह यह क्यों नहीं सोच पाई कि उसने गलत नहीं किया है तो डरें क्यों। यही बात बुजुर्ग शिक्षक पर लागू होती है। तीनों मामलों में इन्हें डरने की कोई जरूरत नहीं थी। यह लोग कोई ऐसा काम नहीं किए थे, जिस वजह से ठगों के झांसे में आ जाते। मगर, यह साइबर ठगों का जाल ही है जिसमें अच्छे-अच्छे फंस जाते हैं।
दरअसल, बात यह है कि साइबर ठगों के पास आपकी कई जानकारियां होती हैं। इन्हीं के माध्यम से वह जाल बुनकर आपको फंसाता है। मसलन, छात्र को नशा तस्करी में फंसाने का डर दिखाया गया। युवक इस बात से डर गया कि अगर उसका नाम नशा तस्करी में आता है तो समाज के लोग इसे सही मान लेंगे। घरवाले उसे आगे की पढ़ाई करने से रोक देंगे। साथ ही एक बार एफआईआर दर्ज हो गई तो नौकरी मिलनी मुश्किल हो जाएगी। बुजुर्ग को अवैध लेनदेन का डर दिखाया गया। ठगों को यह पता था कि उनके खाते में दो करोड़ रुपये से ज्यादा हैं। ताज्जुब की बात है कि ठगों ने बुजुर्ग को नौ दिनों तक बंधक बनाए रखा। इस दौरान बुजुर्ग की जान सांसत में रही। डिजिटल अरेस्ट की एक खास बात यह भी है कि इसमें पढ़ेलिखे लोग ज्यादा फंस रहे हैं। कई मामलों में सॉफ्टवेयर इंजीनियर भी फंसे हैं। कुछ दिनों पहले उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव भी साइबर ठगों के जाल में फंसकर साढ़े तीन लाख रुपये गंवा चुके थे। उत्तराखंड जैसे छोटे राज्यों में 150 फीसदी की दर से इस अपराध का बढ़ना चिंताजनक है।
यह भी पढ़ें : Munsiyari के जिस रेडियो प्रोजेक्ट का पीएम मोदी ने किया शिलान्यास, उसमें हो रहा ‘खेल’ !
सबसे अहम पहलू यह है कि भारतीय कानून में ‘डिजिटल अरेस्ट’ का कोई प्रावधान है ही नहीं। और किसी को भी हर वक्त वीडियो या माइक्रोफोन चालू रखने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। सरकार इस बारे में जागरूकता फैला रही है। इसके बावजूद ऐसे मामले रुकने की बजाय बढ़ रहे हैं।
उत्तराखंड में तेजी से बढ़े मामले
उत्तराखंड में पिछले साल की तुलना में इस साल अब तक Digital Arrest के मामलों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। 2023 में, राज्य साइबर पुलिस द्वारा केवल एक मामला दर्ज किया गया था जिसमें शिकायतकर्ता को आरोपी द्वारा 11.84 लाख रुपये का चूना लगाया गया था। इस साल सितंबर तक कुल 15 मामले दर्ज किए गए हैं। इनसे कुल 12.70 करोड़ रुपये की ठगी की गई है।
वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी), विशेष कार्य बल (एसटीएफ), और राज्य साइबर पुलिस, नवनीत सिंह के मुताबिक, इस साल दर्ज किए गए कुल 15 मामलों में से 12 गढ़वाल मंडल से थे, जबकि शेष तीन कुमाऊं मंडल से थे। बतादें कि उत्तराखंड में सबसे बड़ी साइबर ठगी तीन करोड़ रुपये की थी। साइबर सेल में तैनात डिप्टी एसपी अंकुश मिश्रा बताते हैं, लोगों को लगता है कि उनके साथ साइबर क्राइम नहीं होगा। क्यों वह सारे सेफ्टी ले रखी है। लेकिन, कई बार साइबर ठग ऐसे ट्रैप में फंसाते हैं जहां से निकलना मुश्किल होता है। लोगों को समाज का डर सताने लगता है।
देश का हाल… चार महीने में 120 करोड़ से ज्यादा की ठगी
एक रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी से अप्रैल 2024 के बीच Digital Arrest वाली धोखाधड़ी से भारतीयों को 120.3 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। इसमें गृह मंत्रालय (एमएचए) के आंकड़ों का हवाला दिया गया है। अन्य प्रमुख मामलों में 2.3 करोड़ रुपये और 1.7 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी शामिल है। केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार, डिजिटल अरेस्ट के जरिये धोखाधड़ी की वारदातें काफी ज्यादा बढ़ गई हैं। इस अपराध को अंजाम देने वाले ज्यादातर क्रिमिनल्स दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों, म्यांमार, लाओस और कंबोडिया जैसे देशों में रहते हैं।
राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल (एनसीआरपी) के आंकड़ों से पता चलता है कि इस साल यानी 2024 में एक जनवरी से 30 अप्रैल के बीच 7.4 लाख शिकायतें दर्ज की गईं। जबकि, 2023 में कुल 15.56 लाख शिकायतें प्राप्त हुई थीं। 2022 में कुल 9.66 लाख शिकायतें दर्ज की गईं थीं।
मीडिया से बातचीत में मुख्य कार्यकारी अधिकारी राजेश कुमार ने मई में जनवरी से अप्रैल तक के आंकड़े जारी करते हुए बताया कि भारतीयों ने डिजिटल अरेस्ट में 120.3 करोड़ रुपये गंवा चुके हैं। इसके अलावा साइबर ठगी के अन्य मामलों जैसे-ट्रेडिंग में 1420.48 करोड़ रुपये, निवेश के नाम पर 22.58 करोड़, रोमांश-डेटिंग के नाम पर 13.23 करोड़ रुपये गंवा चुके हैं। कुल मिलाकर यह रकम करीब 1776 करोड़ रुपये पहुंचती है। ध्यान देने वाली बात यह है यह ठगी चार महीनों में की गई है।
डिजिटल अरेस्ट क्या होता है?
डिजिटल अरेस्ट साइबर ठगी का एक नया तरीका है। जिसके जरिए साइबर अपराधी लोग अपने शिकार को बंधक बना लेते हैं। खुद को पुलिस, सीबीआई, कस्टम या अन्य किसी एजेंसी का बड़ा अधिकारी बात कर धमकी देते हैं कि उनके खिलाफ कानून उल्लंघन का गंभीर मामला दर्ज है। साइबर क्राइम करने वाले ठग, शिकार बनाने वाले लोगों के बारे में पहले ही पूरी जानकारी जुटा लेते हैं और फिर गिरफ्तार करने की धमकी देते हैं। काफी देर तक वह लोगों को ऑनलाइन बंधक बनाकर अपने काबू में रखते हैं। डर के कारण व्यक्ति वही करता है, जो साइबर अपराधी उसे निर्देश देते हैं। व्यक्ति अपने घर में होने के बावजूद भी मानसिक और डिजिटल रूप उन साइबर ठगों के काबू में होता है। कई मामलों में साइबर ठगों ने हफ्तों तक पीड़ित को बंधक बनाए रखता है।
डिजिटल अरेस्ट से बचने का रास्ता क्या है?
डिजिटल अरेस्ट से बचने का आसान रास्ता जानकारी है। इसकी शुरुआत ही आपके डर के साथ होती है। ऐसे में यदि आपके पास भी इस तरह की धमकी वाले फोन कॉल आते हैं तो आपको डरने की जरूरत नहीं है। कोई कॉल करके धमकाता है तो डरें नहीं, बल्कि डटकर सामना करें, क्योंकि यदि आपने कोई पार्सल मंगवाया ही नहीं है तो फिर डरने की जरूरत नहीं है।
ठगी से ऐसे बचें
- किसी भी अनजान नंबर से आए हुए किसी भी लिंक पर क्लिक करने से बचें।
- किसी भी अनजान फोन काल पर अपनी पर्सनल या बैंक संबंधी जानकारी न दें।
- पर्सनल डेटा और किसी भी तरह के ट्रांजेक्शन प्लेटफार्म पर मजबूत पासवर्ड लगाकर रखें।
- कोई भी थर्ड पार्टी ऐप डाउनलोड ना करें, किसी भी अनाधिकारिक प्लेटफार्म से कुछ इंस्टाल न करें।
- अपने डिवाइस मसलन लैपटाप व मोबाइल समेत उनमें अपलोड एप को अपडेटेड रखें।
ठगी होने पर तुरंत करें ये काम
ऑनलाइन फ्रॉड का दायरा बेहद बड़ा है और आप भी इस दायरे से बाहर नहीं हैं। यह समझकर चलिए कि आपकी एक गलती आपको इसका शिकार बना सकती है। रोजाना हजारों लोग इन जालसाजों का शिकार होते हैं लेकिन आधे से ज्यादा बिना कोई रिपोर्ट कराए रह जाते हैं या फिर रिपोर्ट करवाने में देरी कर देते हैं। जिससे उनका डूबा हुआ पैसा मिलने की संभावनाएं कम होती जाती हैं। आपकी थोड़ी सी सतर्कता आपके डूबे पैसे बचा सकती है। आइए जानते हैं ऑनलाइन ठगी होने की स्थिति में कहां और कैसे रिपोर्ट करवाएं। इसे एक उदाहरण से समझते हैं-
गाजियाबाद में रहने वाले आनंद कुमार के पास एक फोन आया…फोन करने वाले ने खुद को बैंककर्मी बताया और उनके अकाउंट में दर्ज आधार कार्ड नंबर मैच न होने की बात कहकर आधार कार्ड और पैन कार्ड की जानकारी मांग ली। बैंक का फोन समझकर आनंद ने फोन पर सारी जानकारी दे भी दी लेकिन ये क्या…? इधर फोन कटा उधर उनके अकाउंट से 90,000 रुपए उड़ गए। आनंद परेशान…आनन-फानन में उन्होंने दोस्तों को फोन करके बताया। एक दोस्त ने इसकी शिकायत साइबर सेल में करने को कहा। शिकायत करने पर कुछ दिन बाद उनका पैसा वापस आ गया लेकिन हर कोई आनंद की तरह जागरूक और किस्मत वाला नहीं होता।
साइबर सेल के एक अधिकारी बताते हैं कि हमारे देश में आज भी ऐसे कई लोग हैं जिन्हें ये नहीं पता कि शिकायत कैसे और कहां करवानी है। कितने समय में करनी है क्योंकि आप शिकायत दर्ज कराने में जितना लेट करते हैं हमें पैसा ट्रैक करने में उतनी ही परेशानी होती है। इसलिए अगर किसी के साथ किसी तरह का ऑनलाइन फ्रॉड होता है तो उन्हें जल्द से जल्द इसकी शिकायत करवानी चाहिए। इसके लिए एक हेल्पलाइन नंबर और पोर्टल भी मौजूद हैं जहां आप अपनी शिकायत दर्ज करवा सकते हैं।
शुरू के 30 मिनट बेहद अहम
एक पुलिस अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि ऑनलाइन ठगी में एक-एक मिनट अहम होता है। क्योंकि सारा खेल ऑनलाइन खेला जाता है। मिनटों में पैसा यहां से वहां ट्रासंफर होता है। इसलिए इसमें पहले 30 मिनट बेहद मायने रखते हैं। इस समय के गणित को ऐसे समझिए। साइबर ठग एक बार पीड़ित का पैसा अकाउंट से निकालने में अगर सफल हो जाते हैं तो उनका सारा जोर इस बात पर होता है कि किसी तरह ये पैसा कैश के रूप में ATM से निकाल लिया जाए या फिर देश से बाहर पहुंचा दिया जाए। ये दोनों ही स्थिति किसी केस में पैसे की रिकवरी बेहद मुश्किल कर देती हैं।
उदाहरण के लिए अगर आपके साथ साइबर ठगी होती है तो ठग उस पैसे को अनजान अकाउंट या मनी वॉलेट में पहुंचाता है। फिर वहां से किसी एटीएम से रकम बाहर निकालने की कोशिश करता है। इसमें बहुत तेजी दिखाई जाए तो भी ठग को करीब 30 मिनट का समय लगता है। यही वो समय है जिसमें अपने साथ हुई ठगी की जानकारी साइबर सेल में देनी होती है। 30 मिनट बीत जाने पर ये पैसा कहीं का कहीं पहुंच जाता है और बैंकिंग सिस्टम से निकाल लिया जाता है जिसके बाद इसे ऑनलाइन प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है। अब ये पैसा तभी रिकवर हो पाता है जब मुजरिम को गिरफ्तार कर लिया जाए और उसके पास से पैसे बरामद हो जाएं।
कैसे होता है पैसा बचाने का काम?
शिकायत के बाद साइबर सेल ट्रांजेक्शन आईडी और रेफरेंस नंबर सर्च करती है। मालूम हो कि बैंकिंग सिस्टम में हर पेमेंट ट्रांसफर होने की एक ट्रांजेक्शन आईडी और रेफरेंस नंबर होता है। साइबर पुलिस उस बैंक में अपने नोडल अधिकारी को ईमेल पर सूचित करके पैसा फ्रीज करवाती है। हर बैंक में साइबर सेल का एक नोडल अधिकारी होता है जो इस तरह की ही ट्रांजेक्शंस पर काम करता है। ऑनलाइन फ्रॉड को लेकर हर बैंक की अपनी अपनी पॉलिसी है। ऐसे में कई बैंक उस अकाउंट को ही फ्रीज कर देते हैं जिसमें पैसे ट्रांसफर हुए हैं और कुछ बैंक पूरे अकाउंट को फ्रीज न करके उतनी रकम को फ्रीज कर देते हैं जितने की ट्रांजेक्शन हुई हो। लेकिन अगर उस अकाउंट या बैंकिंग सिस्टम से पैसे निकल चुके हैं तो फिर इसकी जांच दूसरे तरीके से की जाती है। आपको इस सारे प्रोसेस की जानकारी मैसेज के द्वारा आपके फोन पर लगातार दी जाती है ताकि आप भी अपने मामले की पूरी प्रोग्रेस जान सकें।
ऐसे की जाती है ठगों की लोकेशन ट्रेस
इसके बाद साइबर पुलिस अधिकारी उस नंबर या लिंक को ट्रेस करते हैं जिससे फोन आया हो या जिस लिंक पर क्लिक करके पैसा कटा हो। मालूम हो कि हर फोन का एक IMEI नंबर होता है ऐसे ही हर कंप्यूटर का एक IP Address होता है जिसे ट्रेस करके फोन और कंप्यूटर की लोकेशन का पता लगाया जा सकता है। हालांकि, आजकल साइबर जालसाज विदेशी VPN का इस्तेमाल करते हैं जिससे लोकेशन का पता लगाना थोड़ा मुश्किल होता है क्योंकि इसमें विदेशों की लोकेशन दिखाई देती है। ऐसे में फोन की लोकेशन को ट्रेस किया जाता है।
इसके अलावा जिस बैंक अकाउंट से पेमेंट गई है उस बैंक अकाउंट से लिंक्ड नंबर और पते की भी जांच की जाती है। इस तरह उनकी जांच का दायरा बढ़ता जाता है और अपराध की कड़ियों को जोड़ा जाता है। जिससे ऐसे जालसाजों को पकड़ना आसान हो जाता है। बड़े अमाउंट की धोखाधड़ी के लिए साइबर सेल की एक अलग टीम काम करती है। इसे IFSO यूनिट के नाम से जाना जाता है। ये काफी जल्दी और अलग तरीके से केस को डील करते हैं।
ठगी कर विदेशों में हो रहा पैसा ट्रांसफर
ऑनलाइन अपराध का दायरा काफी बड़ा है लेकिन आजकल सबसे ज्यादा अपराध टेलीग्राम ऐप के जरिए किया जा रहा है। इस तरह की ठगी का शिकार पढ़े लिखे लोग यहां तक कि सरकारी टीचर, सॉफ्टवेयर इंजीनियर और कई बड़े व्यवसायी भी हो चुके हैं। जिनसे 30,000 रुपये से लेकर 30 लाख रुपए तक की ठगी की जा चुकी है। इसकी जांच से पता लगता है कि पैसा मनी म्यूल (Money Mule) के कई खातों से होता हुआ विदेशों तक जाता है। मनी म्यूल वो लोग होते हैं जो चंद पैसों के लालच में अपने अकाउंट से पैसों की ट्रांजेक्शन दूसरे अकाउंट्स में करते हैं। इनमें पैसा एक अकाउंट से दूसरे अकाउंट में फिर तीसरे अकाउंट में घूमता रहता है और अंत में विदेशों में बैठे लोगों के पास पहुंच जाता है। हमारे देश में जो इस तरह के फ्रॉड हो रहे हैं वो पैसा दुबई, मलेशिया, थाईलैंड और श्रीलंका जैसे देशों में ट्रांसफर हो रहा है।