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    Home»उत्तराखंड 360»Uttarakhand : कैसे बुझे आग! जब एक वन रक्षक पर औसतन 2,448 हेक्टेयर की जिम्मेदारी
    उत्तराखंड 360

    Uttarakhand : कैसे बुझे आग! जब एक वन रक्षक पर औसतन 2,448 हेक्टेयर की जिम्मेदारी

    एनजीटी को सौंपी गई अमिकस क्यूरी की रिपोर्ट में बताया गया कि उत्तराखंड में वनाग्नि नियंत्रण के लिए बुनियादी ढांचे की भारी कमी है। अमिकस क्यूरी ने सुझाव दिया है कि वन विभाग के उन कर्मियों को जो अपनी सेवा में प्राण गंवाते हैं, शहीद का दर्जा दिया जाना चाहिए।
    teerandajBy teerandajNovember 1, 2024Updated:November 3, 2024No Comments
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    Uttarakhand : ऋषिकेश-देहरादून मार्ग के बरकोट वन क्षेत्र में पत्तियों के जलने के मुद्दे पर नियुक्त अमिकस क्यूरी (अदालत का मित्र) ने अपनी रिपोर्ट नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) को सौंप दी है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि उत्तराखंड में वनों में आग को रोकने के लिए जरूरी बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी है। इसे ऐसे समझिए, प्रत्येक वन रक्षक पर औसतन 2,448 हेक्टेयर का क्षेत्र आता है। अवैध कटाई, खनन, वन्यजीव शिकार और अन्य वन्यजीव संबंधी अपराधों पर नियंत्रण का दायित्व भी उन्हीं पर है। रिपोर्ट में कहा गया, सबसे गंभीर बात यह है कि राज्य में अवैध कटाई से होने वाले राजस्व हानि की भरपाई वन रक्षक या वनपाल के वेतन से की जाती है, जो वन संरक्षण के प्रयासों में बड़ी बाधा है।

     यह भी पढ़ें :  Report : ज्यादा गर्मी के कारण कृषि को 71.9 अरब डॉलर का नुकसान

    अप्रैल में NGT ने इस मामले में सहायता के लिए वकील गौरव बंसल को अमिकस क्यूरी नियुक्त किया था, जिनकी रिपोर्ट 14 अक्टूबर को तैयार हुई और पिछले सप्ताह NGT को सौंप दी गई। एनजीटी को जो रिपोर्ट सौंपी गई है उसके अनुसार, उत्तराखंड में वन आग प्रबंधन के लिए आवश्यक उपकरणों की भारी कमी है। इसमें अग्निशमन उपकरण (जैसे सुरक्षात्मक चश्मे, सुरक्षात्मक उपकरण, शस्त्र आदि), गश्त करने के वाहन, और वायरलेस व सैटेलाइट फोन जैसी संचार सुविधाएं शामिल हैं। जो समय पर प्रतिक्रिया देने और समन्वय के लिए आवश्यक है। रिपोर्ट में बताया गया है कि राज्य में वनों की सुरक्षा के लिए आधारभूत संरचना की कमी है, साथ ही वन रक्षक और वनपाल के पदों पर स्थित कर्मियों को दूरस्थ क्षेत्रों में तैनात किया गया है, जहां बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं।

    Uttarakhand Forest Fire
    Uttarakhand Forest Fire

    वनों में आग प्रबंधन के लिए ‘फायर लाइन्स’ (आग रोकने के लिए बनाई गई रेखाएं) का निर्माण और रखरखाव महत्वपूर्ण है, लेकिन राज्य सरकार ने लंबे समय से इन लाइनों का पुनर्निरीक्षण नहीं किया है, जो वनाग्नि प्रबंधन में रुकावट बन रही है।

    रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि वन विभाग के दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों और अस्थायी कर्मचारियों को बीमा कवरेज प्राप्त नहीं है, जिससे उनके जीवन पर खतरा बना रहता है। अमिकस क्यूरी ने सुझाव दिया कि वन विभाग के उन कर्मियों को जो अपनी सेवा में प्राण गंवाते हैं, शहीद का दर्जा दिया जाना चाहिए। साथ ही यह सिफारिश की गई कि वन अग्नि प्रबंधन की जिम्मेदारी संभालने वाले नोडल कार्यालय को राज्य सरकार द्वारा अन्य कार्यभार नहीं सौंपा जाना चाहिए। यह रिपोर्ट राज्य के वन अग्नि प्रबंधन के प्रयासों और आवश्यकताओं को लेकर एक महत्वपूर्ण चेतावनी के रूप में देखी जा रही है, जो दर्शाता है कि वनों के संरक्षण के लिए आधारभूत ढांचे को सुदृढ़ करना अति आवश्यक है।

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