Caste Census : लोकसभा चुनाव 2024 के बाद देश की राजनीति में बड़ा बदलाव आया है। पिछले दस वर्षों में पहली बार विपक्ष दिख रहा है। दिख ही नहीं रहा बल्कि फ्रंट फुट पर खेल भी रहा है। इसका सबसे अहम कारण जाति गणना और आरक्षण है। फिलहाल भाजपा के पास इसकी काट नहीं नजर आ रही है। इस बीच जाति गणना और आरक्षण पर आरएसएस यानी स्वयंसेवक संघ के बदले रुख को सबसे बड़े घटनाक्रम के रूप में देखा जा रहा है। संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा कि यह संवदेनशील मामला है। इसका इस्तेमाल राजनीतिक या चुनावी उद्देश्यों के लिए नहीं किया जाना चाहिए। उनका कहना है कि जाति गणना पिछड़ रहे समुदाय और जातियों के कल्याण के लिए होना चाहिए न कि राजनीतिक फायदे के लिए। साथ ही उन्होंने कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के उप वर्गीकरण की दिशा में बिना किसी सर्वसम्मति के कोई कदम नहीं उठाया जाना चाहिए।
“समाज में पिछड़े वर्ग की भलाई हेतु जनकल्याणकारी कार्यों के लिए जातिगत जनगणना के डेटा के उपयोग में हमें कोई असहमति नहीं है।
हालांकि, सामाजिक विघटन करने अथवा चुनाव में लाभ पाने के स्वार्थ से इसका उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।”- सुनील आंबेकर, अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख, राष्ट्रीय… pic.twitter.com/9FF9lEsOg0— RSS (@RSSorg) September 3, 2024
आंबेकर ने कहा कि हमारा मानना है कि संवैधानिक आरक्षण बहुत महत्वपूर्ण है। संघ ने इसका हमेशा समर्थन किया है। कोर्ट में जो बात हुई वो बहुत संवेदनशील मुद्दा है। इस पर सरकार फैसला लेना चाहिए। लेकिन ये सुनिश्चित करना चाहिए कि आरक्षण का लाभ लेने वालों समेत सभी समुदायों के बीच सहमति बनाने की कोशिश हो। इससे पहले कोई कदम नहीं उठाया जाना चाहिए।
जातिगत जनगणना पर संघ का बयान ऐसे समय आया है, जब देश में चार विधानसभाओं के चुनाव होने वाले हैं। विपक्ष इन राज्यों में भी जातिगत जनगणना को मुद्दा बना रहा है। ऐसे में संघ ने यह बयान देकर विपक्ष के इस मुद्दे की धार को कुंद करने की कोशिश की है। क्योंकि आरक्षण पर संघ प्रमुख मोहन भागवत के एक बयान की वजह से 2015 में बिहार विधानसभा का चुनाव परिणाम बदल गया था.ऐसे संघ विपक्ष के हाथ में कोई हथियार नहीं देना चाहता है, जिससे बीजेपी कमजोर हो।
वर्गीकरण के मुद्दे पर दलित और आदिवासी समूहों की ओर से तीखे विरोध के चलते बीजेपी और अन्य राजनीतिक दल इस पर कोई साफ स्टैंड लेने से बचती रही हैं। विपक्षी गठबंधन ने जाति आधारित जनगणना को अपना प्रमुख मुद्दा बना लिया है। ऐसे वक्त में संघ का यह रुख काफी मायने रखता है। संघ का यह बयान आते ही सियासी गलियारों में तमाम तरह की चर्चाएं होने लगीं। सियासी जानकार कहते हैं कि भविष्य में भाजपा इस मुद्दे पर कुछ घोषणाएं कर विपक्ष के हाथ से यह मुद्दा छीनना चाहेगी। क्यों कि 2014 के बाद पहली बार उसकी इतनी कड़ी राजनीतिक घेराबंदी की गई है। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी देश भर में घूमघूम कर आरक्षण बढ़ाने और जाति गणना की मांग कर रहे हैं। काफी हद तक उन्हें समर्थन भी मिल रहा है तभी तो वह इस मुद्दे को जमकर पकड़े हुए हैं। हाल यह है कि उनके साथ की पार्टियों को जो पिछड़ों की राजनीति करती हैं, उन्हें अपना वोट बैंक छीनने का डर भी सताने लगा है।
आंबेकर के बयान के बाद प्रतिक्रियाओं की बाढ़
जाति आधारित जनगणना पर संघ के रुख के बाद तमाम राष्ट्रीय और क्षेत्रीय नेताओं ने प्रतिक्रियाएं व्यक्त कीं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर लिखा -आरएसएस स्पष्ट रूप से देश को बताए कि वो जातिगत जनगणना के पक्ष में है या विरोध में है? देश के संविधान की बजाय मनुस्मृति के पक्ष में होने वाले संघ परिवार को क्या दलित, आदिवासी, पिछड़े वर्ग और गरीब-वंचित समाज की भागीदारी की चिंता है या नहीं?
बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने मीडिया से बातचीत में कहा कि आज कोई खुल कर नहीं कह सकता कि जाति जनगणना न हो। लेकिन उनके मन में है कि यह न हो। लेकिन बीजेपी बार-बार इन मुद्दों को खड़ा करती है। वहीं, लालू प्रसाद यादव ने कहा कि आरएसएस जातिगत जनगणना को रोक नहीं सकता है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने आरएसएस पर निशाना साधते हुए एक्स पर लिखा-जातीय जनगणना को लेकर आरएसएस की उपदेशात्मक बातों से कुछ बुनियादी सवाल उठते हैं। पहला, क्या आरएसएस के पास जाति जनगणना पर निषेधाधिकार है? दूसरा, जाति जनगणना के लिए इजाज़त देने वाला आरएसएस कौन है? तीसरे, आरएसएस का क्या मतलब है, जब वह कहता है कि चुनाव प्रचार के लिए जाति जनगणना का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए? क्या यह जज या अंपायर बनना है?
अब क्या होगा भाजपा का रुख
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कई बार कह चुके हैं कि हिंदुओं को जाति के नाम पर बांटने की कोशिश हो रही है जाति आधारित जनगणना पर संघ का यह बयान इसलिए भी अहम है क्योंकि इस मुद्दे पर बीजेपी विपक्ष के निशाने पर है। अभी तक बीजेपी ने खुले तौर पर जाति आधारित जनगणना का विरोध नहीं किया है लेकिन उसने इस पर कोई टिप्पणी भी नहीं की है। क्यों कि जाति आधारित जनगणना में अपने हिंदू वोट बैंक के बिखरने का खतरा दिखता है। इसलिए वो खुलकर इसका न तो समर्थन कर पा रही है और न विरोध। हालांकि, उसके तमाम नेता इसका विरोध कर चुके हैं। हाल ही में फिल्म अभिनेत्री और हिमाचल के मंडी से सांसद कंगना रनौत ने एक निजी चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा कि जाति आधारित जनगणना नहीं होनी चाहिए। अब चूंकि आरएसएस ने जाति आधारित जनगणना को कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने में अहम बताया है तो बीजेपी को इस मामले में फैसला लेने में आसानी हो सकती है।
आरएसएस और जातियां
बीजेपी सीटों के बंटवारे में जातीय समीकरण का भी खासा ध्यान रखती है। हिंदुत्व की राजनीति पर गहरी नजर रखने वाले फ़्रांसीसी विद्वान क्रिस्टोफर जेफरलो ने साल 2020 में अपने एक लेख में लिखा था कि मराठी ब्राह्मणों द्वारा बनाए गए आरएसएस ने सभी जातीय पृष्ठभूमि वाले हिंदुओं को धीरे-धीरे अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश की है। संघ को पता है कि सत्ता में बने रहना है तो बहुजनों को साथ जोड़ना होगा। इसी के तहत बीजेपी अब संगठन और सरकार में जाति का ख़ासा ख़्याल रख रही है। हाल ही में रेलवे बोर्ड का चेयरमैन एक दलित को बनाया गया है। राष्ट्रपति के पद पर भी बीजेपी ने जनजाति समुदाय से आने वाली द्रौपदी मुर्मू को बनाया। 1925 में गठन के बाद से अब तक आरएसएस के कुल छह सरसंघचालक हुए हैं और इनमें चौथे सरसंघचालक रज्जू भैया यानी राजेंद्र सिंह को छोड़ दिया जाए तो सभी ब्राह्मण हैं। रज्जू भैया भी ठाकुर थे यानी सभी आरएसएस प्रमुख सवर्ण ही हुए हैं। हालांकि, पिछले दस वर्षों में संघ बहुत बदला है। संघ का दावा है कि देश भर में उसके कुल प्रचारकों में करीब 20 फीसदी दलित हैं।