Ground Reality : बेटियों को पढ़ाने पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काफी जोर देते हैं। बेटियों की शिक्षा के लिए देश में तमाम योजनाएं भी हैं। लेकिन, पहाड़ों का हाल इससे काफी जुदा है। यहां स्कूलों में शिक्षक ही नहीं हैं। बेटियां पढ़ेंगी कैसे? मुनस्यारी के बालिका इंटर कॉलेज नमजला की बेटियां इसके लिए सड़क पर उतर आई हैं। धरना पर बैठीं, प्रदर्शन भी किया। इन्होंने डीएम को एक ज्ञापन सौंपकर मांग की है कि जल्द ही 11वीं और 12वीं में शिक्षकों की नियुक्ति की जाए। यह विडंबना ही है, स्कूल में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए छात्राओं को धरना प्रदर्शन करना पड़ रहा है।
बालिका इंटर कॉलेज में लंबे समय से शिक्षकों के पद रिक्त चल रहे हैं। इन कक्षाओं में 50 से ज्यादा बच्चियां पंजीकृत हैं। यहां किस तरह पढ़ाई होती होगी यह समझाने के लिए कुछ लिखने की जरूरत नहीं है। अगर यहां पर शिक्षक ही नहीं हैं तो बच्चों का प्रवेश किस आधार पर लिया जा रहा है। खास बात यह है कि छात्राओं की मांग का कई संगठनों ने भी समर्थन किया है। 27 अगस्त से धरना प्रदर्शन की चेतावनी दी गई है। छात्राओं के साथ अभिभावक भी धरने पर बैठेंगे। कमोबेश यही परिस्थितियां पहाड़ के अन्य स्कूलों की भी हैं। मुनस्यारी के सबसे बड़े अटल उत्कृष्ट स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शहीद त्रिलोक सिंह पांगती राजकीय इंटर कॉलेज में भी शिक्षकों की भारी कमी है।
ऐसे कैसे आगे बढ़ेंगी बेटियां ? #Munsiyari के नमजला राजकीय इंटर कॉलेज में 11वीं, 12वीं में टीचर नहीं, अपने हक के लिए अब सड़क पर उतरने को मजबूर। #Groundreality @PMOIndia @pushkardhami @drdhansinghuk pic.twitter.com/ngwOU3TjWm
— Arjun Rawat (@teerandajarjun) August 26, 2024
अटल उत्कृष्ट स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शहीद त्रिलोक सिंह पांगती राजकीय इंटर कॉलेज
यहां पर करीब 410 बच्चे अध्ययनरत हैं। लेकिन, भूगोल, गणित, जीव विज्ञान, भौतिक विज्ञान इतिहास, राजनीति विज्ञान, जीव विज्ञान और हिंदी के प्रवक्ता के पद खाली चल रहे हैं। अंग्रेजी विषय में दो पद हैं एक पर अतिथि शिक्षक की नियुक्ति है। इसके अलावा एलटी ग्रेड पदों पर नजर डालें तो हिंदी में अतिथि शिक्षक नियुक्त हैं। जबकि, सामान्य विज्ञान, अंग्रेजी, कला, वाणिज्य और संस्कृत पढ़ाने के लिए एक भी शिक्षक नहीं हैं। इसके अलावा लिपिक तक के पद खाली पड़े हैं। अभिभावक स्कूल आते हैं, प्रिंसिपल से शिकायत भी करते हैं लेकिन, वह भी क्या कर सकते हैं। जब शासन ही आंख मूंदे पड़ा है।
बेरुखी या कुछ और…
सवाल यह है कि आखिर पहाड़ी क्षेत्र के स्कूलों के प्रति बेरुखी का कारण क्या है। जबकि, पहाड़ों को आबाद करने के लिए राजधानी के चमचमाते पांच सितारा होटलों में तमाम बैठकें होती रहती हैं। नेता से लेकर तमाम तथाकथित समाजसेवी अपने ओजस्वी भाषणों से वहां मौजूद लोगों को ताली बजाने पर मजबूर कर देते हैं। सोशल मीडिया पर पहाड़ों को लेकर अनगिनत पोस्ट किए जा रहे हैं। पर धरातल पर हालात देखने के बाद निष्कर्ष निकलता है कि यह सब महज एक दिखावा है।
ट्रांसफर पॉलिसी भी एक कारण
नाम न छापने की शर्त पर विद्यालय के एक कर्मचारी ने कहा कि जब पहाड़ के लोग ही पहाड़ पर नहीं रहना चाहते हैं तो हरिद्वार, देहरादून के लोगों से यह उम्मीद करना बेमानी है कि वह यहां आकर स्कूलों को आबाद करेंगे। सरकार को चाहिए कि वह अपनी स्थानांतरण नीति में कुछ बदलाव करे। ताकि, लोगों को यह लगे कि चलो दो-तीन साल पहाड़ पर काम करते हैं। कुछ वर्ष पहले तक जो यहां आ जाता था उसका ट्रांसफर नहीं होता था। शायद इसलिए अब लोग यहां पर आना नहीं चाहते हैं। तमाम बहाने बनाकर ट्रांसफर रुकवा लेते हैं। पिछले दो-तीन वर्षों से कुछ बदलाव देखने को मिला है। देखते हैं आगे क्या होता है।