भारतीय समाज में एक दौर वह था जब व्यक्ति कुलीन कहलाया जाना पसंद करता था। एक दौर अब है जब कि वह होड़ लगा रहा है कि मुझे आरक्षित वर्ग में शामिल करो। जो अभी तक आरक्षित वर्ग में हैं उनके अपने वर्ग में दो वर्ग बन गए हैं। आरक्षित वर्ग में जो साधन संपन्न हो गए हैं वे अपने ही वर्ग के अत्यंत पिछड़े लोगों के लिए आरक्षण नहीं छोड़ना चाहते हैं। जब सरकारी नौकरियों में अनारक्षित वर्ग के हिस्से में से सामान्य वर्ग के अति पिछड़े लोगों के लिए 10 प्रतिशत हिस्सा आरक्षित किया जा सकता है तो अन्य आरक्षित वर्ग के हिस्से में से कुछ हिस्सा अत्यंत पिछड़े वर्ग को क्यों नहीं दिया जा सकता है? क्यों साधन संपन्न लोग अपने ही आरक्षित वर्ग के लोगों के लिए जगह खाली नहीं करते?
इस प्रश्न का उत्तर यह है कि उसे धीरे-धीरे कठोर नहीं बनाया गया है। परिवारवादी विचारधारा के मुखिया इसके लिए दोषी हैं क्योंकि वे कोई अन्य सक्षम नहीं होना चाहते। इसके लिए जातीय आधार बनाना क्या आवश्यक है? प्रकृति का लाभ उसे क्यों न मिला क्योंकि स्वाधीनता के सूरज की पहली किरण भी दिखाई नहीं दी। कभी गुगल करे और 2 फरवरी 1835 का वह पत्र जो भारत में आधुनिक शिक्षा का मूलमंत्र माना जाता है। उन्होंने अपने 6 उपन्यासों के पत्र में ब्रिटिश प्रधानमंत्री को क्या लिखा था? भारत में कुछ लोग उस सिद्धांत को बचाये हुए हैं। भारत में सारांश अनुमान बनाने की एक प्रक्रिया है। जो लोग इसे अंतिम रूप देते हैं वे कार्य पूर्ण होने तक वही रहते हैं, किसी से कोई संपर्क नहीं करते हैं। कार्य पूर्ण होने पर वे हलवा चकमा देते हैं वित्त मंत्री को भी बुलाते हैं।
इस बात पर संसद में एक मासूम सा सवाल उठाया गया कि किस जाति के लोगों ने वित्त मंत्रालय का हलवा बनाया? अमुक अमुक लोग कहाँ थे? प्रश्न तो सही है। होना तो चाहिए। लेकिन वे यह क्यों नहीं बने कि भारत में एक ही परिवार के तीन प्रधानमंत्री क्यों हैं? जाति का आधार क्या है और प्रधानमंत्री नहीं चाहते? उन्हें यह भी बताना चाहिए कि डॉ. सरकार में 10 साल तक संवैधानिक शक्तियों से हटकर स्टॉक एक्सचेंज का काम क्या हुआ? लाखों की संख्या में भारी समान उसकी हवेली। अवलोकन का मतलब लाठी उसकी बफ़ेलो की कहावत चरितार्थ होगी। अँधेरे में गुड़िया और दादी ने किया अभिनय, भारत के तीन टुकड़े नीचे दिए गए हैं। ब्रिटिश ने सिखों को बढ़ाया उस विचार ने खालिस्तानी विचार को आगे बढ़ाया।
अब इंडिया अलायंस भारतीय सनातन समाज के टुकड़े-टुकड़े करने पर अमादा है। भाजपा के सांसद अनुराग ठाकुर ने सही कहा था कि जो लोग अपनी जाति नहीं बताते वे अपने धर्म की बात करते हैं। अब किसी को पता नहीं क्या यह देश विभाजन की एक और तैयारी नहीं है? इस फॉर्मूले से भारतीय समाज में बार बढ़ाने वालों को यह भी बताना चाहिए कि वे स्वयं को किस जन समुदाय में मानते हैं? उन्हें भी शर्म आनी चाहिए जो संवैधानिक लाभ के लिए नित नए प्रचार करते हैं। एक प्रश्न यह भी हो सकता है कि लगभग 57 वर्ष तक जिस राजनीतिक दल ने भारत पर राज किया था, तब जातिगत जनगणना क्यों नहीं की? वित्त मंत्रालय का बजट हलवा पहली बार घोषित किया गया था। यह प्रवर्ति भारत कोटिकोटि में चमक की है। यह अच्छी साज़िश नहीं है.
कहीं भी जाट और राजपूतों में भेद पैदा कर दिए जाते हैं। कहीं भी हिंदू-सिख में फूट स्टालिन राजनीति करनेवाले समाज में वामनस्यता का जन्म कर देते हैं। सच तो यह है कि इस देश का गरीब से गरीब भी हो जाता है। लेकिन गरीबी हटाने वालों का नारा लगाने वाले धारा के लोग प्रधानमंत्री पद पाने के लिए भारतीय समाज में कलह पैदा करने का प्रयास कर रहे हैं। इसके उदाहरण के लिए भारतडिवीजन की घटना तो है ही, हज ही में अयोध्या में एक बच्ची के साथ जो गैंग रेप हुआ उस पर इंडी अलायंस ने तीव्र प्रतिक्रिया नहीं दी। एक महानुभाव ने प्रतिक्रिया दी कि जो जलेबी बनाई गई, वो बता सकते हैं कि उनका मंतव्य क्या था। फिलीस्तीन की जय-जयकार करने वाले/सेकुलरिए लोगों ने भी यही कहा था कि जब बांग्लादेश में हाथी पर प्रहार हुआ, तो उनकी महिलाओं का साथ मिला, बांग्लादेश के घर जला दिए गए। इनमें से ज्यादातर को सांप सूंघ गया था, किसी ने अपने समर्थन में कुछ नहीं कहा।
महापंजियक, भारतीय मोटापा, दशकीय मोटापे में भारतीय नागरिकों का नाम, पता, पिता का नाम, धर्म, जाति, आर्थिक स्थिति, शिक्षा, जीवन स्थिति, संताने, लड़की/लड़का, मकान टीवी, पंखा, फोन, अंतिम विवरण ।। साल 2011 में 34 लोगों को रिहा कर दिया गया था। इन आँकड़ों से यह पता नहीं चल पाया कि किस देश में कितने लोग पशुवत जीवन जी रहे हैं। प्राइमरी के कुछ ही समय में जब यह बात दी गई कि किस जनहितैषी को किस समुदाय के कितने वोट मिले तो प्रत्येक राज्य में अति पिछड़ा, पिछड़ा, अन्य पिछड़ा वर्ग आदि का पता लगाने में कोई कमी नहीं है। सही बात है समाज को बांटना ही इनका उद्देश्य है। ताकि वोट बढ़ें। जैसे कि कुछ लोगों ने दिल्ली में कुछ ने उत्तराखंड में रोहिंग्या को बसाकर वोटर बना दिया। अच्छा होता है हम सामाजिक वैमनस्यता को बढ़ाने की बजाय जो लोग पिछड़े हैं, गरीब हैं, नारकीय जीवन बिता रहे हैं उन्हें सक्षम बनाने का प्रयास करें। जाति एक को वह पहचानता है जिसका उपयोग मैसाचुसेट्स में, नागाबाँसी तय करने में होता है।
सामान्य भारतीय समाज में हमें जाति की गणना के बजाय बुद्धि और ज्ञानवान लोगों की गणना करनी चाहिए। इसके लिए बिना भेदभाव के शिक्षा, स्वास्थ्य की सुविधाओं को आधुनिक बनाना चाहिए। विदेशी लोगों को पूछताछ मिलनी चाहिए। गरीब नागरिकों को आर्थिक रूप से स्टॉक करना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि समाज में अपराधी, माफिया और घटिया लोगों/नेताओं को आगे न बढ़ाया जाए।
कबीरदास जी ने कहा है-
जाति न प्रश्नो साधु की प्रार्थना ज्ञान
मोल करो तलवार का पड़ना दो मियां।
ये लेखक के निजी विचार हैं।