Close Menu
तीरंदाज़तीरंदाज़
    अतुल्य उत्तराखंड


    सभी पत्रिका पढ़ें »

    Facebook X (Twitter) Instagram YouTube Pinterest Dribbble Tumblr LinkedIn WhatsApp Reddit Telegram Snapchat RSS
    अराउंड उत्तराखंड
    • टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स में अग्निवीरों की होगी सीधी तैनाती
    • Uttarakhand के धार्मिक स्थलों में धारण क्षमता के अनुरूप ही दिया जाएगा प्रवेश
    • Uttarakhand में और सख्त होगा धर्मांतरण कानून
    • Mann ki Baat… पांच साल में 200 से ज्यादा स्पेस स्टार्टअप्स : पीएम मोदी
    • मनसा देवी मंदिर में भगदड़ में छह श्रद्धालुओं की मौत, कई घायल
    • त्रिवेंद्र सिंह रावत ने हरिद्वार में हैलीपोर्ट के बारे में सीएम धामी से मांगी जानकारी
    • उत्तराखंड में सुदृढ़ और सुरक्षित सड़क नेटवर्क के लिए केंद्र सरकार का प्रयास सराहनीय: Trivendra Singh Rawat
    • वोकल फॉर लोकल को बढ़ावा देने के लिए धामी सरकार ने कसी कमर
    • ‘जानलेवा सिस्टम’, दम तोड़ती उम्मीद और टूट चुका भाई
    • Oh My Pigeons! छोटा सा कबूतर, खतरा बड़ा!
    Facebook X (Twitter) Instagram YouTube WhatsApp Telegram LinkedIn
    Tuesday, July 29
    तीरंदाज़तीरंदाज़
    • होम
    • स्पेशल
    • PURE पॉलिटिक्स
    • बातों-बातों में
    • दुनिया भर की
    • ओपिनियन
    • तीरंदाज LIVE
    तीरंदाज़तीरंदाज़
    Home»कवर स्टोरी»Inspirational Stories …मेहनत की महक से जिंदगी गुलजार
    कवर स्टोरी

    Inspirational Stories …मेहनत की महक से जिंदगी गुलजार

    अल्मोड़ा के पनेरगांव में फूलों की खेती करने वाले ललित लोहनी बताते हैं कि जब पहले साल मैंने यह काम शुरू किया तो कुछ गांव वालों ने भी शुरुआत की थी। हालांकि, अधिकतर लोग नकारात्मक बातें ही करते थे। बोलते थे, यार कुछ नहीं होगा। एक साल के भीतर कई लोगों ने खेती छोड़ दी। लेकिन, मैंने यह काम जारी रखा।
    Arjun Singh RawatBy Arjun Singh RawatAugust 10, 2024Updated:August 11, 2024No Comments
    Share now Facebook Twitter WhatsApp Pinterest Telegram LinkedIn
    Share now
    Facebook Twitter WhatsApp Pinterest Telegram LinkedIn

    मिसालें खोजने के लिए कहीं दूर नहीं जाना पड़ता, ये हमारे आसपास होती हैं। अक्सर हम बात करते हैं कि पहाड़ों में लोगों के पास काम नहीं है। यही वजह है कि बड़ी संख्या में लोग पलायन कर रहे हैं। दो जिलों का जिक्र बहुत होता है, अल्मोड़ा और पौड़ी, जिनके बारे में कहा जाता है कि सबसे ज्यादा पलायन इन्हीं दो जिलों से हुआ। क्या यही सच है या कुछ ऐसा भी है, जिसे दिखाना और बताना चाहिए। यही तलाश हमें अल्मोड़ा के ताकुला ब्लॉक के पनेरगांव तक ले गई। यहां हमें मिले प्रगतिशील और कर्मठ किसान ललित लोहनी, जिन्होंने अपनी मेहनत के दम पर बदलाव की एक नई कहानी लिखी है।

    सरकार हेल्प करती है। जैसे शुरू में हमको फ्री में पौधे दिए गए। सब्सिडी के पैसे खाते में आ गए। लेकिन, इसके लिए प्रयास करने पड़ते हैं। कुछ अलग दिखाई देना चाहिए। अभी हम सोचते हैं कि पहले सरकार सबकुछ कर दे, फिर हम करें, तो ऐसे काम नहीं चलेगा। अगर उन्हें लगता है कि व्यक्ति मेहनत कर रहा है तो उसे पूरी मदद मिलती है। बाकी न करने के कई बहाने होते हैं।
    ललित लोहनी
    प्रगतिशील किसान

    पनेरगांव में फूलों की बगिया की महक मुग्ध करने वाली है। गुलाब के फूल एक अलग अनुभूति कराते हैं। इस बगिया को सजाने वाले ललित लोहनी ने इसके लिए बड़ी मेहनत की है। दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, हल्द्वानी जैसी कई जगहों पर नौकरी कर चुके ललित बताते हैं- अपना घर-परिवार छोड़कर सैकड़ों किलोमीटर दूर रहने के बाद भी बामुश्किल रोजी-रोटी चलती थी। कई साल बाहर काम किया। बाद में सोचा कि क्यों न अपने यहां कुछ किया जाए। फिर मैंने अपने घर पर ही एक दुकान खोली। उसमें घर की सारी पूंजी लगा दी। मगर यहां भी घाटा ही सहना पड़ा। इसी दौरान एक दिन सगंध पौधा केंद्र (कैप) के कुछ लोग मिले। उन्होंने डैमस्क गुलाब की खेती के बारे में बताया।

    यह भी पढ़ें : Inspirational Stories … सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग!

    इसकी खेती कैसे की जाती है, कैसे इसका उपयोग किया जाता है। उन्होंने जोशीमठ के कुछ गांवों के बारे में बताया, जहां किसान इसकी खेती कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस खेती में जंगली जानवरों से नुकसान भी कम होता है। साथ ही इसमें बाड़ बांधने की जरूरत नहीं होती है। यह आइडिया मुझे काफी पसंद आया। इसके बाद मैं इस विषय में और जानकारी जुटाने लगा। इसके लिए मैं देहरादून के सेलाकुईं में सगंध पौधा केंद्र भी गया। वहां से मुझे काफी जानकारी मिली। इसके बाद मैंने गुलाब की खेती करने का मन बना लिया।
    ललित बताते हैं- सगंध केंद्र वालों ने पहली बार मुफ्त में 800 पौधे दिए थे। इस पर मुझे कुछ सब्सिडी भी मिली। उस साल पानी की काफी किल्लत थी, इसलिए अपेक्षित परिणाम नहीं मिला। इसकी एक बड़ी वजह अब समझ में आती है, उस समय मुझे इस फील्ड के बारे में ज्यादा समझ नहीं थी। यहां मेहनत के साथ जानकारी होना भी जरूरी होता है।

    उस समय मुझे बड़ी मायूसी हुई। गर्मी की वजह से काफी पौधे सूख गए थे। लेकिन, कैप के लोगों ने मेरा उत्साहवर्धन किया। उन्होंने कहा, आप मेहनत कर रहे हो, जरूरी नहीं कि शुरुआत में ही आपको मनमुताबिक परिणाम मिल जाए। धैर्य रखो, मेहनत करो। उन्होंने मुझे जोशीमठ के किसानों के वीडियो भी दिखाए। फिर मैं कई बार कैप गया। वहां कार्यशाला में भाग लिया। सगंध खेती करने वाले कई लोगों से मिला, उनसे बात की। तब समझ में आया कि कमी कहां हो रही है।

    दूसरे साल 90-100 किलो फूल खिले। इसकी पत्तियां सुखाकर गुलाब जल तैयार किया। इसको सगंध केंद्र वालों ने खरीदा। पैसे मेरे खाते में आ गए। इसके बाद हौसला बढ़ गया। फिर मैंने तेज पत्ता के पौधे लगाए। रोजमैरी को भी तैयार करता हूं। इसकी भी बाजार में खूब मांग है। अब मेरा काम भी ठीक चल रहा है। मुझे आज इससे 5 लाख रुपये सालाना की कमाई भी हो रही है। साथ ही चार लोगों को रोजगार भी दे रहा हूं। इस काम का सबसे बड़ा फायदा यह है कि आपको पैसे तुरंत मिल जाते हैं। भटकना नहीं पड़ता है। बस एक बार आप अपना काम जमा लो। हां, मेहनत करनी पड़ती है।

    ललित बताते हैं कि जब पहले साल मैंने यह काम शुरू किया तो कुछ गांववालों ने भी शुरुआत की थी। हालांकि, अधिकतर लोग नकारात्मक बातें ही करते थे। बोलते थे, यार कुछ नहीं होगा। एक साल के भीतर कई लोगों ने खेती छोड़ दी। लेकिन, मैंने यह काम जारी रखा। जरूरी नहीं कि आपको किसी भी काम में पहले साल में ही अपेक्षित परिणाम मिल जाए। तीसरे साल जब मेरे खेत में फूल खिले तो लोगों को एहसास हुआ कि हमने गलती कर दी। जिन खेतों से कुछ नहीं हो रहा था, वहां मैंने यह खेती शुरू की। नकारात्मक बातें करने वाले तो आपको हर क्षेत्र में मिल जाएंगे। सरकार इस क्षेत्र में विशेष ध्यान दे रही है। अधिकारी निरीक्षण करने को आते हैं, जो भी कमी होती हो उसे बताते हैं।

    ललित बताते हैं कि वह जब भी कैप देहरादून जाते हैं वहां उनका खूब हौसला बढ़ाया जाता है। कैप के डायरेक्टर नृपेंद्र चौहान अक्सर कहते – आप अच्छा काम कर रहे हैं। वह नए-नए वैज्ञानिक तरीके बताते हैं। इसके अलावा सगंध पौधा केंद्र में ढेर सारी जानकारियां दी जातीं। मैं जब भी देहरादून जाता हूं कुछ न कुछ नया सीखकर लौटता हूं। उत्तराखंड के कई लोग वहां जाते हैं। किसानों के लिए वहां बहुत कुछ है। कुल मिलाकर एरोमेटिक प्लांट से काफी सहायता मिली।

    पारंपरिक खेती न करने वालों के लिए क्या सगंध पौधों की खेती बेहतर विकल्प है, इस सवाल पर ललित कहते हैं, देखिए, ग्लोबल वार्मिंग की वजह से जब बारिश होनी चाहिए तो नहीं होती है। बेमौसम बारिश होती है। इससे किसानों को काफी नुकसान होता है। जंगली जानवरों का उत्पात अलग से है। इसलिए खेती से लोग दूर होते जा रहे हैं। मैं भी पारंपरिक खेती करता था। लेकिन, अब यह करना आसान नहीं है। पहाड़ पर कई जगहें ऐसी हैं जो सगंध की खेती काम आ सकती है। यह सच है कि सगंध की खेती बेहतर विकल्प है। गुलाब, तेज पत्ता या लेमन ग्रास के पौधों को जंगली जानवरों से नुकसान की गुंजाइश कम होती है। मौसम की मार से इन्हें बचाना आसान होता है। कोरोना काल के बाद से गुलाब जल की मांग में काफी तेजी आई है। हमारा गुलाब जल ऑर्गेनिक है। हम घर में शुद्ध बनाते हैं। किसी तरह के केमिकल का इस्तेमाल नहीं करते हैं। इसके साथ ही मैं पारंपरिक खेती भी करता हूं। लेकिन, एरोमेटिक प्लांट से आमदनी का एक अच्छा जरिया बन जाता है। लोगों को इसके बारे में जरूर जानना चाहिए। इस क्षेत्र में काफी संभावनाएं हैं।

    100 से 1600 लीटर
    रोज वाटर और रोजमैरी से होने वाली आमदमी के सवाल पर ललित कहते हैं, जब मैंने शुरुआत की थी तो पहले साल 100 लीटर के करीब गुलाब जल बनाया था। उस समय काफी परेशानी हुई थी। क्योंकि मैं नया था। कोई मुझे पहचानता नहीं था। बाजार के बारे में जानकारी नहीं थी। इसके बाद सगंध पौधा केद्र वालों को मैंने गुलाब जल दिया। 10-15 हजार रुपये हमारे खाते में आ गए। इसके बाद मैंने सोचा कि अगर और उत्पादन करूं तो फायदा बढ़ जाएगा। पिछले वर्ष मैंने 500 लीटर गुलाब जल बनाया था। इस बार उम्मीद है कि 1600 लीटर बना लूंगा। रोजमैरी से इस बार 800 लीटर तैयार किया है। यह आयुर्वेदिक दवाओं में काम आता है। अब तो चेन्नई और दिल्ली से भी खरीदार मेरे संपर्क में हैं।

    ललित ने बताया कि वह सेल्फ हेल्प ग्रुप बनाकर भी ब्लॉक स्तर पर इस काम को कर रहे हैं। हमारे समूह का नाम भागीरथी स्वयं सहायता समूह है। मेरी पत्नी समूह में सचिव हैं। इससे हमको बहुत मदद मिलती है। बीडीओ भी हमको बताते हैं आपको पैकेजिंग के लिए क्या करना है। जब भी हमें कोई जरूरत पड़ती है, वह हम लोगों के पास आते हैं। ललित की पत्नी अनीता लोहनी कहतीं हैं, 2017 से ही मैं सगंध खेती कर रही हूं। हम लोगों ने धीरे-धीरे अपना काम बढ़ाया। अब काम बढ़िया चल रहा है। घरेलू काम और इस काम में तालमेल बिठाने के सवाल पर वह बतातीं हैं कि सुबह-सुबह हम फूल तोड़ लेते हैं। जब शुरू किया था तो यह नहीं सोचा था कि काम इतना बड़ा हो जाएगा। वह अपने काम से बहुत खुश हैं। इनका कहना है कि बाहर जाकर 10-15 या 20 हजार की नौकरी करने से अच्छा है कि अपने घर पर कुछ किया जाए। यह काफी सुकून पहुंचाता है।

    अक्सर कहा जाता है कि गांव में अंदरूनी इलाकों में सरकार से मदद नहीं मिलती, ये कितना सही है, आपका क्या अनुभव है, इस सवाल पर ललित कहते हैं – देखिए, सरकार हेल्प करती है। जैसे शुरू में हमको फ्री में पौधे दिए गए। सब्सिडी के पैसे खाते में आ गए। लेकिन, इसके लिए प्रयास करने पड़ते हैं। कुछ अलग दिखाई देना चाहिए। अभी हम सोचते हैं कि पहले सरकार सबकुछ कर दे, फिर हम करें, तो ऐसे काम नहीं चलेगा। अगर उन्हें लगता है कि व्यक्ति मेहनत कर रहा है तो उसे पूरी मदद मिलती है। बाकी न करने के कई बहाने होते हैं।

    Inspirational Stories आम लोगों की खास कहानियां किसान ललित लोहनी
    Follow on Facebook Follow on X (Twitter) Follow on Pinterest Follow on YouTube Follow on WhatsApp Follow on Telegram Follow on LinkedIn
    Share. Facebook Twitter WhatsApp Pinterest Telegram LinkedIn
    Arjun Singh Rawat
    • Website

    पत्रकारिता का लंबा करियर। एजेंसी,टीवी, अखबार, मैग्जीन, रेडियो और डिजिटल मीडिया का अनुभव। राष्ट्रीय मीडिया में 15 साल काम करने के बाद पहाड़ों का रुख। पहाड़ के मुद्दों पर खुलकर बोलने का दम। जमीन पर काम करने का जज़्बा और जुनून आज भी वैसा ही, जैसा पहले दिन था।

    Related Posts

    Uttarakhand के धार्मिक स्थलों में धारण क्षमता के अनुरूप ही दिया जाएगा प्रवेश

    July 29, 2025 कवर स्टोरी By teerandaj4 Mins Read2K
    Read More

    ‘जानलेवा सिस्टम’, दम तोड़ती उम्मीद और टूट चुका भाई

    July 16, 2025 कवर स्टोरी By teerandaj5 Mins Read2K
    Read More

    Dehradun Basmati Rice: कंकरीट के जंगल में खो गया वजूद!

    July 15, 2025 एक्सक्लूसिव By Arjun Singh Rawat16 Mins Read2K
    Read More
    Leave A Reply Cancel Reply

    अतुल्य उत्तराखंड


    सभी पत्रिका पढ़ें »

    Top Posts

    Delhi Election Result… दिल्ली में 27 साल बाद खिला कमल, केजरीवाल-मनीष सिसोदिया हारे

    February 8, 202513K

    Uttarakhand : ये गुलाब कहां का है ?

    February 5, 202512K

    Delhi Election Result : दिल्ली में पहाड़ की धमक, मोहन सिंह बिष्ट और रविंदर सिंह नेगी बड़े अंतर से जीते

    February 8, 202512K

    UCC In Uttarakhand : 26 मार्च 2010 के बाद शादी हुई है तो करा लें रजिस्ट्रेशन… नहीं तो जेब करनी होगी ढीली

    January 27, 202511K
    हमारे बारे में

    पहाड़ों से पहाड़ों की बात। मीडिया के परिवर्तनकारी दौर में जमीनी हकीकत को उसके वास्तविक स्वरूप में सामने रखना एक चुनौती है। लेकिन तीरंदाज.कॉम इस प्रयास के साथ सामने आया है कि हम जमीनी कहानियों को सामने लाएंगे। पहाड़ों पर रहकर पहाड़ों की बात करेंगे. पहाड़ों की चुनौतियों, समस्याओं को जनता के सामने रखने का प्रयास करेंगे। उत्तराखंड में सबकुछ गलत ही हो रहा है, हम ऐसा नहीं मानते, हम वो सब भी दिखाएंगे जो एकल, सामूहिक प्रयासों से बेहतर हो रहा है। यह प्रयास उत्तराखंड की सही तस्वीर सामने रखने का है।

    एक्सक्लूसिव

    Dehradun Basmati Rice: कंकरीट के जंगल में खो गया वजूद!

    July 15, 2025

    EXCLUSIVE: Munsiyari के जिस रेडियो प्रोजेक्ट का पीएम मोदी ने किया शिलान्यास, उसमें हो रहा ‘खेल’ !

    November 14, 2024

    Inspirational Stories …मेहनत की महक से जिंदगी गुलजार

    August 10, 2024
    एडीटर स्पेशल

    Uttarakhand : ये गुलाब कहां का है ?

    February 5, 202512K

    Digital Arrest : ठगी का हाईटेक जाल… यहां समझिए A TO Z और बचने के उपाय

    November 16, 20249K

    ‘विकास का नहीं, संसाधनों के दोहन का मॉडल कहिये…’

    October 26, 20237K
    तीरंदाज़
    Facebook X (Twitter) Instagram YouTube Pinterest LinkedIn WhatsApp Telegram
    • होम
    • स्पेशल
    • PURE पॉलिटिक्स
    • बातों-बातों में
    • दुनिया भर की
    • ओपिनियन
    • तीरंदाज LIVE
    • About Us
    • Atuly Uttaraakhand Emagazine
    • Terms and Conditions
    • Privacy Policy
    • Disclaimer
    © 2025 Teerandaj All rights reserved.

    Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.