एक पेड़ की समाधि – अपने संसाधनों के अंधाधुंध दोहन और बेतरतीब शहरीकरण की ओर बढ़ रहा उत्तराखंड इस समय कुदरत की ऐसी मार झेल रहा है, जिसने इस राज्य के पहाड़ी इलाकों को लेकर नई तरह की आशंकाएं खड़ी कर दी हैं। गर्मियों में बढ़ता तापमान और बरसात के मौसम में बेहिसाब बारिश। भरभरा कर दरकते पहाड़ों की तस्वीरें हर तरफ नजर आ रही हैं। ये वही उत्तराखंड हैं, जिसकी महिलाओं ने पर्यावरण और पेड़ों को बचाने के लिए ‘चिपको आंदोलन’ का रास्ता अपनाया। इसी उत्तराखंड में एशिया के सबसे ऊंचे पेड़ की ‘समाधि’ है, जी हां, एक पेड़ की समाधि।
आपने अक्सर साधुओं, संत-महात्माओं की समाधि के बारे में सुना होगा। बहुत कम लोग जानते हैं कि देवभूमि उत्तराखंड में एक पेड़ की समाधि है। कोई ऐसे-वैसे पेड़ नहीं 220 साल पुराने पेड़ की समाधि। उत्तराखंड अपने प्राकृतिक सौंदर्य, ग्लेशियरों, नदियों, झीलों, तालों, बुग्यालों के लिए दुनिया भर में विख्यात है। यहां का सौंदर्य सैलानियों को अपनी तरफ खींच लाता है। फिर उत्तरकाशी के टोंस नदी के इलाके की खूबसूरती के तो क्या ही कहने। यहीं पुरोला वन रेंज में चीड़ के पेड़ की समाधि है। ये पेड़ टूरिस्टों के लिए आकर्षण का केंद्र है।
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उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से 160 किमी दूर पुरोला विकासखंड में पुरोला त्यूणी मोटर मार्ग पर देवता वन रेंज में टौंस नदी के प्रवाह क्षेत्र में चीड़ का 220 साल से भी पुराना एक पेड़ था, जिसे एशिया महाद्वीप का सबसे लंबा पेड़ कहलाने का गौरव हासिल रहा। चीड़ के इस पेड़ की लंबाई 60.65 मीटर से ज्यादा और चौड़ाई 2.70 मीटर थी। साल 1997 में भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण विकास मंत्रालय को पहली बार पुरोला के देवता रेंज के इस चीड़ के पेड़ की जानकारी मिली। इसके बाद इस पेड़ को मंत्रालय द्वारा ‘महावृक्ष’ की उपाधि से नवाजा गया।
इस पेड़ के बारे में कहावत है कि साल 1964-65 में रुपिन-सुपिन नदी वन क्षेत्र के तहत वन गुर्जरों का एक दल यहां डेरा डालने आया था, उसी समय तत्कालीन वन प्रभारी भी क्षेत्र के दौरे पर थे। इस दौरान वन प्रभारी ने गुर्जरों से यह कहते हुए शर्त रखी कि अगर उनमें से कोई भी इस वृक्ष पर चढ़ जाएगा तो यह वन भूमि उन सभी को लीज पर दे दी जाएगी। बताया जाता है कि गुर्जरों में से एक साहसी महिला ने वन प्रभारी की उस चुनौती को स्वीकार कर लिया वह इस महावृक्ष पर चढ़ गई। कहते हैं कि साहसी महिला महावृक्ष पर चढ़ तो गई लेकिन नीचे उतरते समय उसका पैर फिसल गया। चोट लगने की वजह से उसकी मृत्यु हो गई, जिसके बाद वन भूमि को लीज पर नहीं दिया गया।
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यह पेड़ गैनोडर्मा एप्लेनेटम कवक नाम के रोग के कारण अंदर ही अंदर खोखला हो गया था। साल 2007 में भारतीय वन अनुसंधान संस्थान देहरादून के पैथोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष डा. ए. एन. शुक्ला के नेतृत्व में विशेषज्ञों की एक टीम ने चीड़ के महावृक्ष का ट्रीटमेंट भी किया। लेकिन ये कोशिश ज्यादा समय तक टिक नहीं पाई। 8 मई 2007 को आए एक भीषण तूफान में एशिया महाद्वीप का चीड़ का यह सबसे लंबा महावृक्ष टूट गया। चीड़ के इस महावृक्ष को काटकर वन विभाग ने पुरोला के कार्यालय में पर्यटकों के लिए संरक्षित कर रखा है। पर्यटक जब भी यमुना और टौंस घाटी की यात्रा पर पहुंचते हैं तो एशिया के महावृक्ष की समाधि का दीदार जरूर करते हैं।